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________________ ठाणं (स्थान) ८६२ होती है। उसी प्रकार इस कर्म के उदय से नपुंसक व्यक्ति के मन में स्त्री और पुरुष के प्रति अभिलाषा होती है। ( ४ ) हास्य- इस कर्म के उदय से सनिमित्त या अनिमित्त हास्य उत्पन्न होता है। (५) रति- इस कर्म के उदय से पदार्थों के प्रति रुचि उत्पन्न होती है । (६) अरति - इस कर्म के उदय से पदार्थों के प्रति अरुचि उत्पन्न होती है । ( ७ ) भय - इस कर्म के उदय से सात प्रकार का भय उत्पन्न होता है । (८) शोक - इस कर्म के उदय से आक्रन्दन आदि शोक उत्पन्न होता है । (e) जुगुप्सा - इस कर्म के उदय से जीव में घृणा के भाव उत्पन्न होते हैं । ' तत्त्वार्थं ८।६ में 'नोकषाय' के स्थान पर 'अकषाय' शब्द का प्रयोग है। यहां 'अ' निषेध अर्थ में नहीं किन्तु ईषद् अर्थ में प्रयुक्त है ।' अकषाय वेदनीय के नौ प्रकारों का वर्णन इस प्रकार है ( १ ) हास्य- इसके उदय से हास्य की प्रवृत्ति होती है। (२) रति- इसके उदय से देश आदि को देखने की उत्सुकता उत्पन्न होती है । Jain Education International स्थान : टि०६१ (३) अरति - इसके उदय से अनोत्सुक्य उत्पन्न होता है। (४) भय - इसके उदय से उद्वेग उत्पन्न होता है। उद्वेग का अर्थ है भय । वह सात प्रकार का होता है । (५) शोक - इसका परिणाम चिन्ता होता है । (६) जुगुप्सा -- इसके उदय से व्यक्ति अपने दोषों को ढांकता है। (७) स्वीवेद - इसके उदय से मृदुता, अस्पष्टता, बलीवता, कामावेश, नेत्रविभ्रम, आस्फालन और पुंस्कामिता आदि स्त्रीभावों की उत्पत्ति होती है । (८) पुंवेद - इसके उदय से पुंस्त्वभावों की उत्पत्ति होती है । ( 8 ) नपुंसक वेद - इसके उदय से नपुंसकभावों की उत्पत्ति होती है। १. स्थानांगवृत्ति, पत्र ४४५ २. तत्त्वार्थवार्तिक, पृष्ठ ५७४ ईपदर्थत्वात् नमः । ३. वही, पृष्ठ ५७४ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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