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ठाणं (स्थान)
स्थान ६ : सूत्र ५३-५७ ५३. जंबुद्दीवे दीवे पम्हे दीहवेयड्डे णव जम्बूद्वीपे द्वीपे पक्ष्मणि दीर्घवैताढ्ये ५३. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के पक्ष्मवर्ती
कूडा पण्णत्ता, तं जहा- नव कूटानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा- दीर्घवैताढ्य के नौ कूट हैं१. सिद्धे पम्हे खंडग, १. सिद्धः पक्ष्म खण्डकः,
१. सिद्धायतन, २. पक्षम, माणी वेयड्ड 'पुण्ण तिमिसगुहा। माणिः वैताढ्यः पूर्णः तमिस्रगुहा। ३. खण्डकप्रपातगुहा, ४. माणिभद्र, पम्हे वेसमणे या, पक्ष्म वैश्रमणश्च,
५. वैताढ्य, ६. पूर्णभद्र, पम्हे कूडाण णामाई॥ पक्ष्मणि कूटानां नामानि ।। ७. तमिस्रगुहा, ८. पक्षम,
६. वैश्रमण। ५४. एवं चेव जाव सलिलावतिम्मि एवं चैव यावत् सलिलावत्यां दीर्घ- ५४. इसी प्रकार सुपक्ष्म, महापक्ष्म, पक्ष्मका. दोहवेयड्ड। वैताढ़ये।
वती, शंख, नलिन, कुमुद और सलिलावती, में विद्यमान दीर्घताढ्य के नौ-नौ
कुट हैं। ५५ एवं वप्पे दीहवेयड्डे । एवं वप्रे दीर्घवैताढ्ये।
५५. इसी प्रकार वप्र में विद्यमान दोघंवैताढ्य
के नौ कूट हैं। ५६. एवं जाव गंधिलावतिम्मि दोह- एवं यावत् गन्धिलावत्यां दीर्घवैताढ्ये ५६. इसी प्रकार सुवप्र, महावप्र, वप्रकावती, वेयड्ड णव कूडा पण्णत्ता, तं जहा- नव कुटानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा
वल्गु, सुवल्गु, गंधिल और गंधिलावती में में विद्यमान दीर्घवैताढ्य के नौ-नौ कूट
१.सिद्ध गंधिल खंडग, १. सिद्धो गन्धिलः खण्डकः, माणी वेयड्ड पुण्ण तिमिसगुहा ।। माणिः वैताढ्यः पूर्णः तमिस्रगुहा । गंधिलावति वेसमणे, गन्धिलावती वैश्रमणः, कूडाणं होंति णामाई। कूटानां भवन्ति नामानि ॥ एवं सव्वेसु दोहवेग्रड्ड सु दो कूडा एवं सर्वेषु दीर्घवैताढ्ये द्वे कूट सरिसणामगा, सेसा ते चेव। सदृशनामके, शेषाणि तानि चैव ।
१. सिद्धायतन, २. गंधिलावती, ३. खण्डकप्रपातगुहा, ४. माणिभद्र, ५. वैताढ्य, ६. पूर्णभद्र, ७. तमिस्रगुहा ८. गंधिलावती, ६. वैश्रमण। सभी दीर्घवैताढ्यों के दो-दो [दूसरा और
आठवां] कूट एक ही नाम के [उसी विजय के नाम के हैं और शेष सात कूट सबमें एक रूप हैं।
५७. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य ५७. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के उत्तर में
उत्तरे णं णेलवते वासहरपवते उत्तरस्मिन् नीलवत् वर्षधरपर्वते नव नीलवान् वर्षधर पर्वत के नो कूट हैंणव कूडा पण्णता, तं जहा- कूटानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा१. सिद्धे लवंते विदेहे, १. सिद्धो नीलवान् विदेहः,
१. सिद्धायतन, २. नीलवान्, सीता कित्ती य णारिकताय । शीता कीर्तिश्च नारीकान्ता च ।
३. पूर्वविदेह, ४. शीता, ५. कीति, अवर विदेहे रम्मगकूडे, अपरविदेहो रम्यककूट,
६. नारिकांता, ७. अपरविदेह, उवदंसणे चेव ॥
उपदर्शनं
चैव ॥ ८. रम्यक, है. उपदर्शन।
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