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ठाणं (स्थान)
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स्थान ६: सूत्र २६-२८ पावायतण-पदं पापायतन-पदम्
पापायतन-पद २६. णव पावस्सायतणा पण्णत्ता, तं नव पापस्यायतनानि प्रज्ञप्तानि, २६. पाप के आयतन [स्थान] नौ हैंजहातद्यथा
१.प्राणातिपात, २. मृषावाद, पाणातिवाते, मुसावाए,
प्राणातिपात:, मषावादः, अदत्तादानं, ३. अदत्तादान, ४. मैथुन, ५. परिग्रह, 'अदिण्णादाणे, मेहुणे, मैथुनं, परिग्रहः, क्रोधः, मानं, माया, ६. क्रोध, ७. मान, ८. माया, परिग्गहे, कोहे, माणे, लोभः ।
६. लोभ । माया, लोभे।
पावसुयपसंग-पदं पापश्रुतप्रसंग-पदम्
पापश्रुतप्रसंग-पद २७. णवविध पावसुयपसंगे पण्णत्ते, तं नवविधः पापश्रुतप्रसङ्गः प्रज्ञप्तः, २७. पापश्रुत-प्रसंग" के नौ प्रकार हैंजहा
तद्यथासंगहणी-गाहा
संग्रहणी-गाथा १. उप्पाते णिमित्त मते, १. उत्पात: निमित्तं मन्त्रः,
१. उत्पात-प्रकृति-विप्लव और राष्ट्र
विप्लव का सूचक शास्त्र। आइक्खिए तिगिच्छिए। आख्यातं चैकित्सिकं ।
२. निमित्त-अतीत, वर्तमान और कला आवरणे अण्णाणे कला आवरणं अज्ञानं
भविष्य को जानने का शास्त्र ।
३.मंत्र-मंत्र-विद्या का प्रतिपादक शास्त्र मिच्छापवयणे ति य॥ मिथ्याप्रवचनमिति च॥
४. आख्यायिका-मातंग-विद्या-एक विद्या जिससे अतीत आदि की परोक्ष बातें जानी जाती हैं। ५. चिकित्सा आयुर्वेद आदि। ६. कला-७२ कलाओं का प्रतिपादक शास्त्र। ७. आवरण-बास्तुविद्या। ८. अज्ञान-लौकिकश्रुत-भरतनाट्य आदि। ६. मिथ्याप्रवचन--कुतीथिकों के शास्त्र।
उणिय-पदं नैपुणिक-पदम्
नैपुणिक-पद २८. णव उणिया वत्थू पण्णत्ता, तं नव नैपुणिकानि वस्तूनि प्रज्ञप्तानि, २८. नपुणिक" वस्तु [पुरुष] नौ हैं
१. संख्यान-गणित को जानने वाला। जहातद्यथा
२. नैमित्तिक-निमित्त को जानने वाला। १. संखाणे णिमित्ते काइया १. संख्यान: नैमित्तिक: कायिकः ३. कायिक-इडा, पिंगला आदि प्राणपोराणे पारिहथिए।
तत्त्वों को जानने वाला। पुराणः पारिहस्तिकः।
४. पौराणिक-इतिहास को जानने वाला, परपंडिते वाई य, परपण्डितः वादी च,
५. पारिहस्तिक--प्रकृति से ही समस्त भूतिकम्मे तिगिच्छिए॥ भतिकर्मा चैकित्सिकः ॥
कार्यों में दक्ष। ६. परपण्डित-अनेक शास्त्रों को जानने वाला। ७. वादी-वाद-लब्धि से सम्पन्न । ८. भूतिकर्म-भस्मलेप या डोरा बांधकर ज्वर आदि की चिकित्सा करने वाला। ६. चैकित्सिक-चिकित्सा करने वाला।
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