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________________ ठाणं (स्थान) ८५५ स्थान ६: सूत्र २६-२८ पावायतण-पदं पापायतन-पदम् पापायतन-पद २६. णव पावस्सायतणा पण्णत्ता, तं नव पापस्यायतनानि प्रज्ञप्तानि, २६. पाप के आयतन [स्थान] नौ हैंजहातद्यथा १.प्राणातिपात, २. मृषावाद, पाणातिवाते, मुसावाए, प्राणातिपात:, मषावादः, अदत्तादानं, ३. अदत्तादान, ४. मैथुन, ५. परिग्रह, 'अदिण्णादाणे, मेहुणे, मैथुनं, परिग्रहः, क्रोधः, मानं, माया, ६. क्रोध, ७. मान, ८. माया, परिग्गहे, कोहे, माणे, लोभः । ६. लोभ । माया, लोभे। पावसुयपसंग-पदं पापश्रुतप्रसंग-पदम् पापश्रुतप्रसंग-पद २७. णवविध पावसुयपसंगे पण्णत्ते, तं नवविधः पापश्रुतप्रसङ्गः प्रज्ञप्तः, २७. पापश्रुत-प्रसंग" के नौ प्रकार हैंजहा तद्यथासंगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा १. उप्पाते णिमित्त मते, १. उत्पात: निमित्तं मन्त्रः, १. उत्पात-प्रकृति-विप्लव और राष्ट्र विप्लव का सूचक शास्त्र। आइक्खिए तिगिच्छिए। आख्यातं चैकित्सिकं । २. निमित्त-अतीत, वर्तमान और कला आवरणे अण्णाणे कला आवरणं अज्ञानं भविष्य को जानने का शास्त्र । ३.मंत्र-मंत्र-विद्या का प्रतिपादक शास्त्र मिच्छापवयणे ति य॥ मिथ्याप्रवचनमिति च॥ ४. आख्यायिका-मातंग-विद्या-एक विद्या जिससे अतीत आदि की परोक्ष बातें जानी जाती हैं। ५. चिकित्सा आयुर्वेद आदि। ६. कला-७२ कलाओं का प्रतिपादक शास्त्र। ७. आवरण-बास्तुविद्या। ८. अज्ञान-लौकिकश्रुत-भरतनाट्य आदि। ६. मिथ्याप्रवचन--कुतीथिकों के शास्त्र। उणिय-पदं नैपुणिक-पदम् नैपुणिक-पद २८. णव उणिया वत्थू पण्णत्ता, तं नव नैपुणिकानि वस्तूनि प्रज्ञप्तानि, २८. नपुणिक" वस्तु [पुरुष] नौ हैं १. संख्यान-गणित को जानने वाला। जहातद्यथा २. नैमित्तिक-निमित्त को जानने वाला। १. संखाणे णिमित्ते काइया १. संख्यान: नैमित्तिक: कायिकः ३. कायिक-इडा, पिंगला आदि प्राणपोराणे पारिहथिए। तत्त्वों को जानने वाला। पुराणः पारिहस्तिकः। ४. पौराणिक-इतिहास को जानने वाला, परपंडिते वाई य, परपण्डितः वादी च, ५. पारिहस्तिक--प्रकृति से ही समस्त भूतिकम्मे तिगिच्छिए॥ भतिकर्मा चैकित्सिकः ॥ कार्यों में दक्ष। ६. परपण्डित-अनेक शास्त्रों को जानने वाला। ७. वादी-वाद-लब्धि से सम्पन्न । ८. भूतिकर्म-भस्मलेप या डोरा बांधकर ज्वर आदि की चिकित्सा करने वाला। ६. चैकित्सिक-चिकित्सा करने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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