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________________ ठाणं (स्थान) ८५० स्थान ६ : सूत्र १३-१५ रोगुप्पत्ति-पदं रोगोत्पत्ति-पदम् रागोत्पत्ति-पद १३. णवहिं ठाणेहि रोगुप्पत्ती सिया नवभिः स्थानः रोगोत्पत्तिः स्यात्, १३. रोग की उत्पत्ति के नौ स्थान है'तं जहातद्यथा १. निरन्तर बैठे रहना या अतिभोजन अच्चासणयाए, अहितासणयाए, अत्यशनतया (अत्यासनतया), करना। अतिणिद्दाए, अतिजागरितेणं, अहिताशनतया, अति निद्रया, २. अहितकर आसन पर बैठना या अहितउच्चारणिरोहेणं, पासवणणिरोहेणं, अति जागरितेन, उच्चारनिरोधेन, कर भोजन करना। अद्धाणगमणेणं, भोयणपडिकूलताए, प्रस्रवणनिरोधेन, अध्वगमनेन, ३. अतिनिद्रा। ४. अतिजागरण। इंदियत्यविकोवणयाए। भोजनप्रतिकूलतया, ५. उच्चार [मल] का निरोध । इन्द्रियार्थविकोपनतया। ६.प्रश्रवण का निरोध । ७. पंथगमन । ८. भोजन की प्रतिकूलता। ६. इन्द्रियार्थविकोपन-कामविकार। दरितणावरणिज्ज-पदं दर्शनावरणीय-पदम् दर्शनावरणीय-पद १४. णवविधे दरिसणावरणिज्जे कम्मे नवविधं दर्शनावरणीयं कर्म प्रज्ञप्तम्, १४. दर्शनावरणीय कर्म के नौ प्रकार हैंपण्णत्ते, तं जहातद्यथा १. निद्रा-सोया हुआ व्यक्ति सुख से जाग जाए, वैसी निद्रा। णिद्दा, गिद्दानिद्दा, पयला, निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला.प्रचलाप्रतला. २. निद्रानिद्रा-घोरनिद्रा, सोया हुआ पयलापयला, थीणगिद्धी, स्त्यानगृद्धिः, चक्षुर्दर्शनावरणं, व्यक्ति कठिनाई से जागे, वैसी निद्रा। चक्खुदंसणावरणे, अचक्षुर्दर्शनावरणं, अवधिदर्शनावरणं, ३. प्रचला–खड़े या बैठे हुए जो निद्रा आए। अचक्खुदंसणावरणे, केवलदर्शनावरणम् । ४. प्रचला-प्रचला-चलते-फिरते जो ओहिदसणावरणे, निद्रा आए। केवलदसणावरणे। ५. स्त्यानद्धि-संकल्प किए हुए कार्य को निद्रा में कर डाले, वैसी प्रगाढतम निद्रा। ६. चक्षुदर्शनावरणीय-चक्ष के द्वारा होने वाले दर्शन [सामान्य ग्रहण] का आवरण। ७. अचक्षुदर्शनावरणीय-चक्षु के सिवाय शेष इन्द्रिय और मन से होने वाले दर्शन का आवरण। ८. अवधिदर्शनावरणीय—मूर्त द्रव्यों के साक्षात् दर्शन का आवरण। ६. केवलदर्शनावरणीय-सर्व द्रव्य-पर्यायों के साक्षात् दर्शन का आवरण। जोइस-पदं ज्योतिष-पदम् ज्योतिष-पद १५. अभिई णं णक्खत्ते सातिरेगे णव अभिजित् नक्षत्रं सातिरेकान् नव १५. अभिजित् नक्षत्र चन्द्रमा के साथ नौ मुहूर्त मुहुत्ते चंदेण सद्धि जोगं जोएति। मुहुर्तान् चन्द्रेण साधं योग योजयति। से कुछ अधिक काल तक योग करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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