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१. एकलविहार प्रतिमा ( सू० १)
एकलविहार प्रतिमा का अर्थ है-अकेला रहकर साधना करने का संकल्प जैन परंपरा के अनुसार साधक तीन स्थितियों में अकेला रह सकता है'
१. एकाकिविहार प्रतिमा स्वीकार करने पर ।
२. जिनकल्प प्रतिमा स्वीकार करने पर ।
३. मासिक आदि भिक्षु प्रतिमाएं स्वीकार करने पर ।
प्रस्तुत सूत्र में एकाकिविहार प्रतिमा स्वीकार करने की योग्यता के आठ अंग बतलाए गए हैं। वे ये हैं
१. श्रद्धावान् — अपने अनुष्ठानों के प्रति पूर्ण आस्थावान् । ऐसे व्यक्ति का सम्यक्त्व और चारित्र मेरु की भांति होता है।
२. सत्य पुरुष - सत्यवादी। ऐसा व्यक्ति अपनी प्रतिज्ञा के पालन में निडर होता है, सत्याग्रही होता है।
टिप्पणियाँ
स्थान- ८
मान कहा जाता है। छह मास तक भोजन न मिलने पर भी जो भूख से पराजित न हो, ऐसा अभ्यास तपस्या- तुला है । भय और निद्रा को जीतने का अभ्यास सत्त्व तुला है। उन्हें जीतने के लिए वह पहली रात को, सब साधुओं के सो जाने पर, उपाश्रय में ही कायोत्सर्ग करता है । दूसरी बार उपाश्रय से बाहर, तीसरे चरण में किसी चौक में, चौथे में शून्य घर में और पांचवें क्रम में श्मशान में रात में कायोत्सर्ग करता है। तीसरी तुला है सूत्र भावना । वह सूत्र के परावर्तन से उच्छ्वास आदि काल के भेद को जानने की क्षमता प्राप्त कर लेता है। एकत्व तुला के द्वारा वह आत्मा को शरीर से भिन्न जानने का अभ्यास कर लेता
है। बल-तुला के द्वारा यह मानसिक बल को इतना विकसित कर लेता है कि जिससे भयंकर उपसर्ग उपस्थित होने पर भी उनसे विचलित नहीं होता ।
समर्थ ।
३. मेधावी - श्रुतग्रहण की मेधा से सम्पन्न ।
४. बहुश्रुत - जघन्यतः नौवें पूर्व की तीसरी वस्तु को तथा उत्कृष्टतः असम्पूर्ण दस पूर्वो को जानने वाला ।
५. शक्तिमान् –तपस्या, सत्त्व, सूत्र, एकत्व और बल इन पाँच तुलाओं से जो अपने आपको तोल लेता है उसे शक्ति
जो साधक जिनकल्प प्रतिमा स्वीकार करता है. उसके लिए ये पांच तुलाएं हैं। इनमें उत्तीर्ण होने पर ही वह जिनकल्प प्रतिमा स्वीकार कर सकता है।
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६. अल्पाधिकरण - उपशान्त कलह की उदीरणा तथा नए कलहों का उद्भावन न करने वाला ।
७. धृतिमान् - अरति और रति में समभाव रखने वाला तथा अनुलोम और प्रतिलोम उपसर्गों को सहने में
८. वीर्यसंपन्न स्वीकृत साधना से सतत उत्साह रखने वाला ।
१. स्थानांगवृत्ति, पत्र ३९५ एकाकिनो विहारो - ग्रामादिचर्या स एव प्रतिमाभिग्रहः एकाकिविहार प्रतिमा जिनकल्प प्रतिमा मासिक्यादिका वा भिक्षु प्रतिमा ।
२. वही, पत्र, ३६५ ।
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