________________
ठाणं (स्थान)
८१६
स्थान ८ : सूत्र ११२-११५
विमाण-पदं विमान-पदम्
विमान-पद ११२. महासुक्क-सहस्सारेसु णं कप्पेसु महाशुक्र-सहस्रारेषु कल्पेषु विमानानि ११२. महाशुक्र और सहस्रार कल्पों में विमान
विमाणा अट्ठ जोयणसताई उड्ड अष्ट योजनशतानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन आठ सौ योजन ऊंचे हैं। उच्चत्तेणं पण्णत्ता।
प्रज्ञप्तानि।
वादि-पदं वादि-पदम्
वादि-पद ११३. अरहतो णं अरिटणे मिस्स अट्ठसया अर्हतः अरिष्टनेमे: अष्टशतानि वादिनां ११३. अर्हत् अरिष्टनेमि के आठ सौ साधु वादी
वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए सदेवमनुजासुरायां परिषदि वादे थे। वे देव, मनुष्य और असुर-किसी वादे अपराजिताणं उक्कोसिया अपराजितानां उत्कर्षिता वादिसंपत् । की भी परिषद् में वादकाल में पराजित वादिसंपया हुत्था। अभवत्।
नहीं होते थे। यह उनकी उत्कृष्टवादी सम्पदा थी।
केवलिसमुग्घात-पदं केवलिसमुद्घात-पदम्
केवलिसमुद्घात-पद ११४. अटुसमइए केवलिसमुग्घाते अष्ट सामयिक: केवलिसमुद्घात: ११४. केवली-समुद्घात आठ समय का पण्णत्ते, तं जहाप्रज्ञप्तः, तद्यथा
होता है--- पढमे समए दंडं करेति, प्रथमे समये दण्डं करोति, १. केवली पहले समय में दण्ड करते हैं। बीए समए कवाडं करेति, द्वितीये समये कपाटं करोति,
२. दूसरे समय में कपाट करते हैं।
३. तीसरे समय में मंथान करते हैं। ततिए समए मंथं करेति, तृतीये समये मन्थं करोति,
४. चौथे समय में समूचे लोक को भर चउत्थे समए लोगं करेति, चतुर्थ समये लोकं करोति, देते हैं। पंचमे समए लोग पडिसाहरति, पञ्चमे समये लोकं प्रतिसंहरति, ५. पांचवें समय में लोक का-लोक में
परिव्याप्त आत्म-प्रदेशों का संहरण करते छट्टै समए मंथं पडिसाहरति, षष्ठे समये मन्थं प्रतिसंहरति, सत्तमे समए कवाडं पडिसाहरति, सप्तमे समये कपाट प्रतिसंहरति, ६. छठे समय में मंथान का संहरण करते अट्ठमे समए दंडं पडिसाहरति । अष्टमे समये दण्डं प्रतिसंहरति ।
७. सातवें समय में कपाट का संहरण करते
८. आठवें समय में दण्ड का संहरण करते
अणुत्तरोववाइय-पदं अनुत्तरोपपातिक-पदम्
अनुत्तरोपपातिक-पद ११५. समणस्स णं भगवतो महावीरस्स श्रमणस्य भगवतः महावीरस्य अष्ट ११५. श्रमण भगवान् महावीर के अनुत्तरविमान
अट्ठ सया अणुतरोववाइयाणं शतानि अनुत्तरोपपातिकानां गति- में उत्पन्न होने वाले साधु आठ सौ थे। वे गतिकल्लाणाणं 'ठितिकल्लाणाणं,' कल्याणानां स्थितिकल्याणानां कल्याण-गतिवाले, कल्याण-स्थिति आगमेसिभद्दाणं उक्कोसिया आगमिष्यद्भद्राणां उत्कर्षिता अनु- वाले तथा भविष्य में निर्वाण प्राप्त करने अणुत्तरोववाइयसंपया हुत्था। तरोपपातिकसंपत् अभवत् ।
वाले थे। वह उनकी उत्कृष्ट अनुत्तरोपपातिक सम्पदा थी।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org