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ठाणं (स्थान)
स्थान ८ : सूत्र ८८-६३ ५८. एवं पच्चत्थिमद्धेवि महाधातइ- एवं पाश्चात्यार्धेऽपि महाधातकीरुक्षात् ८८. इसी प्रकार धातकीषण्ड के पश्चिमार्द्ध में
रुक्खातो आढवेत्ता जाव मंदर- आरभ्य यावत् मन्दरचूलिकेति । महाधातकी वृक्ष से लेकर मन्दरचूलिका तक चूलियत्ति।
का वर्णन जम्बूद्वीप की भांति वक्तव्य है।
पुक्खरवर-पदं पुष्करवर-पदम्
पुष्करवर-पद ८६. एवं पुक्खरवरदीवडपुरथिमद्धेवि एवं पुष्करवरद्वीपार्धपौरस्त्याऽपि ८६. इसी प्रकार अर्द्धपुष्करवरद्वीप के पूर्वार्द्ध
पउमरुक्खाओ आढवेत्ता जाव पद्मरुक्षात् आरभ्य यावत् मन्दर- में पद्म वृक्ष से लेकर मन्दरचूलिका तक मंदरचूलियत्ति। चूलिकेति ।
का वर्णन जम्बूद्वीप की भांति वक्तव्य है। ६०. एवं पुक्खरवरदीवड्पच्चत्थिमद्धेवि एवं पुष्करवरद्वीपार्धपाश्चात्याधेऽपि ६०. इसी प्रकार अर्धपुष्करवरद्वीप के पश्चि
महापउमरुक्खातो जाव मंदर- महापद्म रुक्षात् यावत् मन्दरचूलिकेति। मार्द्ध में महापद्म वृक्ष से लेकर मन्दरचलियत्ति।
चूलिका तक का वर्णन जम्बूद्वीप की भांति वक्तव्य है।
कूड-पदं कूट-पदम्
कूट-पद ६१. जंबुद्दीवे दीवे मंदरे पन्वते भद्द- जम्बद्वीपे द्वीपे मन्दरे पर्वते भद्रशालवने ६१. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के भद्र
सालवणे अट्ठ दिसाहत्थिकूडा अष्ट दिशाहस्तिकूटानि प्रज्ञप्तानि, शालवन में आठ दिशा-हस्तिकूट [पूर्व पण्णत्ता, तं जहातद्यथा
आदि दिशाओं में हाथी के आकार वाले
शिखर हैंसंगहणी-गाहा
संग्रहणी-गाथा १. पउमुत्तर णीलवंते, १. पद्मोत्तरं नीलवान्,
१. पद्मोत्तर, २. नीलवान् ३. सुहस्ती, सुहत्थि अंजणागिरी। सुहस्ती अञ्जनगिरिः।
४. अंजनगिरि, ५. कुमुक, ६. पलाश, कुमुदे य पलासे य, कुमुदश्च पलाशश्च,
७. अवतंसक, ८. रोचनगिरि । वडेसे रोयणागिरी॥
अवतंस: रोचनगिरिः ॥
जगती-पदं जगती-पदम्
जगती-पद ६२. जंबूदीवस्स णं दीवस्स जगती अट्ठ जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य जगती अष्ट ६२. जम्बूद्वीप द्वीप की जगती आठ योजन
जोयणाई उड्ड उच्चत्तेणं, बहुमज्झ- योजनानि ऊर्ध्व उच्चत्वेन, बहुमध्यदेश- ऊंची और वहुमध्यदेशभाग में आठ योजन देसभाए अद्र जोयणाई विक्खंभेणं भागे अष्ट योजनानि विष्कम्भेण चौड़ी है। पण्णत्ता।
प्रज्ञप्ता ।
मण
कूड-पदं कूट-पदम्
कूट-पद ६३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे ६३. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के दक्षिण
दाहिणे णं महाहिमवंते वासहर- महाहिमवति वर्षधरपर्वते अष्ट कूटानि में महाहिमवान् वर्षधर पर्वत के आठ कूट पव्वते अट्ठ कूडा पण्णत्ता, तं जहा– प्रज्ञप्तानि, तद्यथा
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