SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 852
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) स्थान ८: सूत्र ८३-८७ णवरमेत्थ रत्त-रत्तावती, तासि नवरं-अत्र रक्ता-रक्तवती, तासां नृत्यमालक देव, आठ रक्ताकुण्ड, आठ चेव कुंडा। चैव कुण्डानि। रक्तवतीकुण्ड, आठ रक्ता, आठ रक्तवती, आठ ऋषभकूट पर्वत और आठ ऋषभकूट देव है। ८३. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वोपे मन्दरस्य पर्वतस्य ८३. जम्बूद्वीप द्वीप के मन्दर पर्वत के पश्चिम पच्चस्थिमे णं सीतोयाए महाणदीए पाश्चात्ये शीतोदायाः महानद्याः दक्षिणे में शीतोदा महानदी के दक्षिण में आठ दाहिणे णं अटु दीयवेयड्डा जाव अष्ट दीर्घवैताढ्याः यावत् अष्ट नृत्य- दीर्घवैताढ्य, आठ तमिस्रगुफाएं, आठ अट्ठ णट्टमालगा देवा,अट्ट गंगाकुंडा, मालकाः देवाः, अष्ट गंगाकुण्डानि, खण्डकप्रपातगुफाएं, आठ कृतमालक देव, अट्ट सिंधुकंडा, अट्ठ गंगाओ, अट्ठ अष्ट' सिन्धूकुण्डानि, अष्ट गंगाः, आठ नृत्यमालक देव, आठ गंगाकुण्ड, सिंधूओ, अट्ट उसभकूडा पव्वता, अष्ट सिन्धवः, अष्ट ऋषभकूटाः पर्वताः, आठ सिन्धू कुण्ड, आठ गंगा, आठ सिन्धू, अट्ट उसभकूडा देवा पण्णत्ता। अष्ट ऋषभकूटाः देवाः प्रज्ञप्ताः । आठ ऋषभकूट पर्वत और आठ ऋषभकूट देव हैं। ८४. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य ८४. जम्बुद्वीप द्वीप से मन्दर पर्वत के पश्चिम पच्चत्थिमे णं सीओयाए महाणदीए पाश्चात्ये शीतोदायाः महानद्याः उत्तरे में शीतोदा महानदी के उत्तर में आठ उत्तरे णं अट्ठ दीहवेयड्डा जाव अट्ठ अष्ट दीर्घवैताढ्याः यावत् अष्ट नृत्य- दीर्घवैताढ्य, आठ तमित्रगुफाएं, आठ णट्टमालगा देवा पण्णत्ता । अट्ठ मालकाः देवाः प्रज्ञप्ताः ।। खण्डकप्रपातगुफाएं, आठ कृतमालक देव, रत्ता कुंडा, अट्ठ रत्तावतिकुंडा, अट्ट अष्ट रक्ताकुण्डानि, आठ नृत्यमालक देव, आठ रक्ताकुण्ड, रत्ताओ, अट्ठ रत्तावतीओ, अट्ठ अष्ट रक्तवतीकुण्डानि, अष्ट रक्ताः, आठ रक्तवतीकुण्ड, आठ रक्ता, आठ उसभकूडा पव्वता, अट्ठ उसभ- अष्ट रक्तवत्यः, अष्ट ऋषभकूटा: रक्तवती, आठ ऋषभकूट पर्वत और कूडा देवा पण्णत्ता। पर्वताः, अष्ट ऋषभकूटा देवाः प्रज्ञप्ताः । आठ ऋषभकूट देव हैं । ८५. मंदरचूलिया णं बहुमज्झदेसभाए मन्दरचूलिका बहुमध्यदेशभागे अष्ट ८५. मन्दरचूलिका बहुमध्य-देशभाग में आठ अट्ट जोयणाई विक्खंभेणं पण्णत्ता। योजनानि विष्कम्भेण प्रज्ञप्ता। योजन चौड़ी है। धायइसंड-पदं धातकीषण्ड-पदम् धातकीषण्ड-पद ८६. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं धातकीषण्डद्वीपपौरस्त्यार्धे धातकीरुक्षः ८६. धातकीषण्डद्वीप के पूर्वार्ध में धातकीवृक्ष धायइरुक्खे अट्ठ जोयणाई उड्ड अष्ट योजनानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन, आठ योजन ऊंचा है। वह बहुमध्यदेशभाग उच्चत्तेणं, बहुमज्झदेसभाए बहुमध्यदेशभागे, अष्ट योजनानि में आठ योजन चौड़ा और सर्वपरिणाम में अट्ट जोयणाई विक्खंभेणं, विष्कम्भेण, सातिरेकाणि अष्ट योजनानि आठ योजन से अधिक है। साइरेगाइं अट्ठ जोयणाई सव्वग्गेणं सर्वाग्रेण प्रज्ञप्तः । पण्णत्ते। ८७. एवं धायइरुक्खाओ आढवेत्ता एवं धातकीरुक्षात् आरभ्य सा एव ८७. इसी प्रकार धातकीषण्ड के पूर्वार्ध में सच्चेव जंबूदीववत्तव्वता भाणि- जम्बूद्वीपवक्तव्यता भणितव्या यावत् धातकीवृक्ष से लेकर मन्दरचूलिका तक यव्वा जाव मंदरचूलियत्ति। मन्दरचूलिकेति । का वर्णन जम्बूद्वीप की भांति वक्तव्य हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy