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________________ ठाणं (स्थान) ८०६ स्थान ८: सूत्र ५३-५७ कण्ह-अग्गमहिसी-पदं कृष्ण-अग्नमहिषी-पदम् कृष्ण-अग्रमहिषी-पद ५३. कण्हस्स णं वासुदेवस्स अट्ठ अग्ग- कृष्णस्य वासुदेवस्य अष्टाग्रमहिष्यः ५३. वासुदेव कृष्ण की आठ अग्रमहिषिया अर्हत् महिसोओ अरहतो णं अरिद्व- अर्हतः अरिष्टनेमे: अन्तिके मुण्डाः अरिष्टनेमि के पास मुण्डित होकर, अगार मिस्स अंतिते मुंडा भवेत्ता भूत्वा अगाराद् अनगारिता प्रव्रजिताः से अनगार अवस्था में प्रवजित होकर अगाराओ अणगारितं पवइया सिद्धाः बुद्धाः मुक्ताः अन्तकृताः । सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत सिद्धाओ 'बुद्धाओ मुत्ताओ परिनिर्वृताः सव्वदुःखप्रक्षीणाः, और समस्त दुःखों से रहित हुईअंतगडाओ परिणिव्वुडाओ' तद्यथासव्वदुक्खप्पहीणाओ, तं जहा संगहणी-गाहा १.पउमावती य गोरी, गंधारी लक्खणा सुसीमा य।। जंबवती सच्चभामा, रुप्पिणी अग्गमाहिसीओ॥ संग्रहणी-गाथा १. पद्मावती च गौरी, गान्धारी लक्ष्मणा सुसीमा च । जाम्बवती सत्यभामा, रुक्मिणी अग्रमहिष्यः ॥ १. पद्मावती, २. गोरी, ३. गांधारी, ४. लक्ष्मणा, ५. सुसीमा, ६. जाम्बवती, ७. सत्यभामा, ८. रुक्मिणी। पुव्ववत्थु-पदं पुर्ववस्तु-पदम् ५४. वीरियपुव्वस्स णं अट्ठ वत्थू अट्ठ वीर्यपूर्वस्य अष्ट वस्तूनि चूलवत्थू पण्णत्ता। चूलावस्तूनि प्रज्ञप्तानि। पुर्ववस्तु-पद अष्ट ५४. वीर्यप्रवाद पूर्व के आठ वस्तु [मूल अध्ययन] और आठ चूलिका-वस्तु हैं। गति-पदं गति-पदम् गति-पद ५५. अट्ठगतीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- अष्टगतयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा ५५. गतिया आठ है। णिरयगती, तिरियगती, निरयगतिः, तिर्यग्गतिः, मनुजगतिः, । १. नरकगति, २.तिर्यञ्चगति, •मणुयगती, देवगती, देवगतिः, सिद्धिगतिः, गुरुगतिः, ३. मनुष्यगति, ४. देवगति सिद्धिगती, गुरुगती, प्रणोदनगतिः, प्राग्भारगतिः। ५. सिद्धिगति, ६. गुरुगति, पणोल्लणगती, पब्भारगती। ७. प्रणोदनगति, ८. प्राग्भारगति । दीवसमुद्द-पदं द्वीपसमुद्र-पदम् द्वीपसमुद्र-पद ५६. गंगा-सिंधु-रत्त-रत्तवति-देवीणं दीवा गङ्गा-सिन्धू-रक्ता-रक्तवती-देवीना ५६. गंगा, सिन्धू, रक्ता और रक्तवती नदियों अट्ठ-अट्ठ जोयणाई आयामविक्खं- द्वीपा: अष्टाऽष्ट योजनानि आयाम- की अधिष्ठात्री देवियों के द्वीप आठ-आठ भेणं पण्णत्ता। विष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः। योजन लम्बे-चौड़े हैं। ५७. उक्कामुह-मेहमुह-विज्जमुह-विज्जु- उल्कामुख-मेघमुख विद्युन्मुख-विद्युद्दन्त- ५७. उल्कामुख, मेघमुख, विद्युत्मुख और विद्यु दंतदीवा णं दीवा अट्ठ-अट्ठ जोयण- द्वीपा द्वीपाः अष्टाऽष्ट योजनशतानि दन्त द्वीप आठ-आठ सौ योजन लम्बेसयाइं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ता। आयामविष्कम्भेण प्रज्ञप्ताः । चौड़े हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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