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________________ ठाणं (स्थान) ७६६ स्थान ८ : सूत्र १६-१८ महाणिहि-पदं महानिधि-पदम् महानिधि-पद १६. एगमेगे णं महाणिही अट्टचक्क- एककः महानिधिः अष्टचक्रवालप्रतिष्ठानः १६. प्रत्येक महानिधि आठ-आठ पहियों पर वालपतिट्टाणे अट्ठजोयणाई उड्ड अष्टाष्टयोजनानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन आधारित है और आठ-आठ योजन ऊंचा उच्चत्तणं पण्णत्ते। प्रज्ञप्तः। समिति-पदं समिति-पदम् समिति-पद १७. अट्ठ समितीओ पण्णत्ताओ, तं अष्ट समितयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १७. समितियां आठ हैं जहाइरियासमिती, भासासमिती, ईर्यासमितिः, भाषासमितिः, १. ईर्यासमिति, २. भाषासमिति, एसणासमिती, आयाणभंड-मत्त- एषणासमितिः, आदानभण्ड-अमत्र ३. एषणासमिति, ४. आदान-भांडणिक्खेवणासमिती, उच्चार- निक्षेपणासमितिः, उच्चार अमत्र-निक्षेपणासमिति, ५. उच्चार-प्रस्रवण-क्ष्वेल-सिंघाणपासवण-खेल-सिंघाण जल्ल-परि- प्रस्रवण-क्ष्वेल, सिङ्घाण, जल्लठावणियासमिती, मणसमिती, पारिष्ठापनिकासमिति, मनःसमितिः, जल्ल-परिष्ठापनासमिति, वइसमिती, कायसमिती। वाकसमितिः, कायसमितिः । ६. मनसमिति, ७. वचनसमिति, ८. कायसमिति। आलोयणा-पदं आलोचना-पदम् आलोचना-पद १८. अहि ठाणेहि संपण्णे अणगारे अष्टभिः स्थानः सम्पन्नः अनगार: अर्हति १८. आठ स्थानों से सम्पन्न अनगार आलोअरिहति आलोयणं पडिच्छित्तए, आलोचनां प्रत्येषितुम्, तद्यथा चना देने के योग्य होता है १. आचारवान्-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तं जहा तप और वीर्य-इन पांच आचारों से आयारवं, आधारवं, ववहारवं, आचारवान्, आधारवान्, व्यवहारवान्, युक्त। २. आधारवान्-आलोचना लेने वाले के ओवीलए, पकुव्वए, अपरिस्साई, अपवीडकः, प्रकारी, अपरिश्रावी, द्वारा आलोच्यमान समस्त अतिचारों को णिज्जावए, अवायदंसी। निर्यापकः, अपायदर्शी। जानने वाला, ३. व्यवहारवान् -आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत--इन पांच व्यवहारों को जानने वाला। ४. अपनीडक आलोचना करने वाले व्यक्ति में, वह लाज या संकोच से मुक्त होकर सम्यक आलोचना कर सके वैसा, साहस उत्पन्न करने वाला। ५. प्रकारी-आलोचना करने पर विशुद्धि कराने वाला। ६. अपरिश्रावी-आलोचना करने वाले के आलोचित दोषों को दूसरे के सामने प्रकट न करने वाला। ७. निर्यापक-बड़े प्रायश्चित्त को भी निभा सके-ऐसा सहयोग देने वाला। ८. अपायदर्शी-प्रायश्चित्त-भङ्ग से तथा सम्यक् आलोचना न करने से उत्पन्न दोषों को बताने वाला। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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