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ठाणं (स्थान)
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स्थान ८ : सूत्र १६-१८
महाणिहि-पदं महानिधि-पदम्
महानिधि-पद १६. एगमेगे णं महाणिही अट्टचक्क- एककः महानिधिः अष्टचक्रवालप्रतिष्ठानः १६. प्रत्येक महानिधि आठ-आठ पहियों पर
वालपतिट्टाणे अट्ठजोयणाई उड्ड अष्टाष्टयोजनानि ऊर्ध्वं उच्चत्वेन आधारित है और आठ-आठ योजन ऊंचा उच्चत्तणं पण्णत्ते।
प्रज्ञप्तः।
समिति-पदं समिति-पदम्
समिति-पद १७. अट्ठ समितीओ पण्णत्ताओ, तं अष्ट समितयः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १७. समितियां आठ हैं
जहाइरियासमिती, भासासमिती, ईर्यासमितिः, भाषासमितिः,
१. ईर्यासमिति, २. भाषासमिति, एसणासमिती, आयाणभंड-मत्त- एषणासमितिः, आदानभण्ड-अमत्र
३. एषणासमिति, ४. आदान-भांडणिक्खेवणासमिती, उच्चार- निक्षेपणासमितिः, उच्चार
अमत्र-निक्षेपणासमिति,
५. उच्चार-प्रस्रवण-क्ष्वेल-सिंघाणपासवण-खेल-सिंघाण जल्ल-परि- प्रस्रवण-क्ष्वेल, सिङ्घाण, जल्लठावणियासमिती, मणसमिती, पारिष्ठापनिकासमिति, मनःसमितिः,
जल्ल-परिष्ठापनासमिति, वइसमिती, कायसमिती। वाकसमितिः, कायसमितिः ।
६. मनसमिति, ७. वचनसमिति,
८. कायसमिति। आलोयणा-पदं आलोचना-पदम्
आलोचना-पद १८. अहि ठाणेहि संपण्णे अणगारे अष्टभिः स्थानः सम्पन्नः अनगार: अर्हति १८. आठ स्थानों से सम्पन्न अनगार आलोअरिहति आलोयणं पडिच्छित्तए, आलोचनां प्रत्येषितुम्, तद्यथा
चना देने के योग्य होता है
१. आचारवान्-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तं जहा
तप और वीर्य-इन पांच आचारों से आयारवं, आधारवं, ववहारवं, आचारवान्, आधारवान्, व्यवहारवान्,
युक्त।
२. आधारवान्-आलोचना लेने वाले के ओवीलए, पकुव्वए, अपरिस्साई, अपवीडकः, प्रकारी, अपरिश्रावी, द्वारा आलोच्यमान समस्त अतिचारों को णिज्जावए, अवायदंसी। निर्यापकः, अपायदर्शी।
जानने वाला, ३. व्यवहारवान् -आगम, श्रुत, आज्ञा, धारणा और जीत--इन पांच व्यवहारों को जानने वाला। ४. अपनीडक आलोचना करने वाले व्यक्ति में, वह लाज या संकोच से मुक्त होकर सम्यक आलोचना कर सके वैसा, साहस उत्पन्न करने वाला। ५. प्रकारी-आलोचना करने पर विशुद्धि कराने वाला। ६. अपरिश्रावी-आलोचना करने वाले के आलोचित दोषों को दूसरे के सामने प्रकट न करने वाला। ७. निर्यापक-बड़े प्रायश्चित्त को भी निभा सके-ऐसा सहयोग देने वाला। ८. अपायदर्शी-प्रायश्चित्त-भङ्ग से तथा सम्यक् आलोचना न करने से उत्पन्न दोषों को बताने वाला।
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