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________________ ठाणं (स्थान) ७५० स्थान ७ : सूत्र १३७-१३८ १३७. लोगोवयारविणए सत्तविधे पण्णत्ते, लोकोपचारविनयः सप्तविधः प्रज्ञप्तः, १३७. लोकोपचारविनय के सात प्रकार हैंतं जहातद्यथा १. अभ्यासवर्तित्व-श्रुत-ग्रहण करने के अब्भासवत्तितं, परच्छंदाणुवत्तितं, अभ्यासवर्तितं, परच्छन्दानुवतितं, लिए आचार्य के समीप बैठना। कज्जहेडं, कतपडिकतिता, कार्यहेतोः, कृतप्रतिकृतिता, आर्त्त- २. परछन्दानुवतित्व-दूसरों के अभिअत्तगवेसणता, देसकालण्णता, गवेषणता, देशकालज्ञता, सर्वार्थेषु प्राय के अनुसार वर्तन करना। सव्वत्थेसु अपडिलोमता। अप्रतिलोमता। ३. कार्य हेतु-'इसने मुझे ज्ञान दिया'इसलिए उसका विनय करना। ४. कृतप्रतिकृतिता—प्रत्युपकार की भावना से विनय करना। ५. आर्तगवेषणता-रोगी के लिए औषध आदि की गवेषणा करना। ६. देशकालज्ञता—अवसर को जानना। ७. सर्वार्थ अप्रतिलोमता--सब विषयों में अनुकूल आचरण करना। समुग्घात-पदं १३८. सत्त समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउब्वियसमुग्धाए, तेजससमुग्घाए, आहारगसमुग्घाए, केवलिसमुग्धाए। समुद्घात-पदम् समुद्घात-पद सप्त समुद्घाताः, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १३८. समुद्घात सात हैंवेदनासमुद्घातः, १. वेदनासमुद्घात–असात वेदनीय कर्म कषायसमुद्घातः, के आश्रित होने वाला समुद्घात । मारणान्तिकसमुद्घातः, २. कषाय समुद्घात-कषाय मोहकर्म के वैक्रियसमुद्घातः, आश्रित होने वाला समुद्घात। तेजससमुद्घातः, ३. मारणान्तिक समुद्घात-आयुष्य के आहारकसमुद्घातः, अन्तर्मुहर्त अवशिष्ट रह जाने पर उसके केवलिसमुद्घातः । आश्रित होने वाला समुद्घात । ४. वैक्रिय समुद्घात-वक्रिय नामकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात । ५. तेजस समुद्घात-तैजनसनामकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात । ६. आहारक समुद्घात-आहारक नामकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात। ७. केवली समुद्धात–वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य कर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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