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ठाणं (स्थान)
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स्थान ७ : सूत्र १३७-१३८ १३७. लोगोवयारविणए सत्तविधे पण्णत्ते, लोकोपचारविनयः सप्तविधः प्रज्ञप्तः, १३७. लोकोपचारविनय के सात प्रकार हैंतं जहातद्यथा
१. अभ्यासवर्तित्व-श्रुत-ग्रहण करने के अब्भासवत्तितं, परच्छंदाणुवत्तितं, अभ्यासवर्तितं, परच्छन्दानुवतितं, लिए आचार्य के समीप बैठना। कज्जहेडं, कतपडिकतिता, कार्यहेतोः, कृतप्रतिकृतिता, आर्त्त- २. परछन्दानुवतित्व-दूसरों के अभिअत्तगवेसणता, देसकालण्णता, गवेषणता, देशकालज्ञता, सर्वार्थेषु प्राय के अनुसार वर्तन करना। सव्वत्थेसु अपडिलोमता। अप्रतिलोमता।
३. कार्य हेतु-'इसने मुझे ज्ञान दिया'इसलिए उसका विनय करना। ४. कृतप्रतिकृतिता—प्रत्युपकार की भावना से विनय करना। ५. आर्तगवेषणता-रोगी के लिए औषध आदि की गवेषणा करना। ६. देशकालज्ञता—अवसर को जानना। ७. सर्वार्थ अप्रतिलोमता--सब विषयों में अनुकूल आचरण करना।
समुग्घात-पदं १३८. सत्त समुग्धाता पण्णत्ता, तं जहा
वेयणासमुग्घाए, कसायसमुग्धाए, मारणंतियसमुग्घाए, वेउब्वियसमुग्धाए, तेजससमुग्घाए, आहारगसमुग्घाए, केवलिसमुग्धाए।
समुद्घात-पदम्
समुद्घात-पद सप्त समुद्घाताः, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १३८. समुद्घात सात हैंवेदनासमुद्घातः,
१. वेदनासमुद्घात–असात वेदनीय कर्म कषायसमुद्घातः,
के आश्रित होने वाला समुद्घात । मारणान्तिकसमुद्घातः,
२. कषाय समुद्घात-कषाय मोहकर्म के वैक्रियसमुद्घातः,
आश्रित होने वाला समुद्घात। तेजससमुद्घातः,
३. मारणान्तिक समुद्घात-आयुष्य के आहारकसमुद्घातः,
अन्तर्मुहर्त अवशिष्ट रह जाने पर उसके केवलिसमुद्घातः ।
आश्रित होने वाला समुद्घात । ४. वैक्रिय समुद्घात-वक्रिय नामकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात । ५. तेजस समुद्घात-तैजनसनामकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात । ६. आहारक समुद्घात-आहारक नामकर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात। ७. केवली समुद्धात–वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य कर्म के आश्रित होने वाला समुद्घात।
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