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________________ ठाणं (स्थान) ७४१ स्थान ७ : सूत्र ६८-१०६ ६८. सक्कस्त णं देविदस्स देवरणो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अग्रमहि- ९८. देवेन्द्र देवराज शक्र के अग्रमहिषी देवियों अग्गम हिसीणं देवीणं सत्त पलि- षीणां देवीनां सप्त पल्योपमानि स्थितिः की स्थिति सात पल्योपम की है। ओवमाई ठिती पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता । ६६. सोहम्मे कप्पे परि गहियाणं देवीणं सौधर्मे कल्पे परिगृहीतानां देवीनां ६६. सौधर्मकल्प में परिगृहीत देवियों की उक्कोसेणं सत्त पलिओवमाइं उत्कर्षेण सप्त पल्योपमानि स्थितिः उत्कृष्ट स्थिति सात पल्योपम को है। ठिती पण्णता। प्रज्ञप्ता। १००. सारस्सयमाइच्चाणं (देवाणं?) सारस्वतादित्यानां (देवानां ?) सप्त १००. सारस्वत और आदित्य जाति के देव सत्त देवा सत्तदेवसता पण्णत्ता। देवाः सप्तदेवशतानि प्रज्ञप्तानि । स्वामीरूप में सात हैं और उनके सात सौ देवों का परिवार है। १०१. गद्दतोयतुसियाणं देवाणं सत्त देवा गर्दतोयतुषितानां देवानां सप्त देवाः १०१. गर्दतोय और तुषित जाति के देव स्वामीसत्त देवसहस्सा पण्णत्ता। सप्त देवसहस्राणि प्रज्ञप्तानि। रूप में सात हैं और उनके सात हजार देवों का परिवार है। १०२. सणंकमारे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं सनत्कुमारे कल्पे उत्कर्षेण देवानां सप्त १०२. सनत्कुमारकल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति सत्त सागरोवमाई ठिती पण्णत्ता। सागरोपमाणि स्थिति: प्रज्ञप्ता। सात सागरोपम की है। मडिटे कप्पे उक्कोसेणं देवाणं माहेन्द्र कल्पे उत्कर्षण देवानां सातिरे- १०३. माहेन्द्रकल्प के देवों की उत्कृष्ट स्थिति मानिशा सत्त सागरोवमा काणि सप्न सागरोपमाणि स्थिति: कुछ अधिक सात सागरोपम की है। ठिती पण्णत्ता। प्रज्ञप्ता। १०४. बंभलोगे कप्पे जहण्णणं देवाणं सत्त ब्रह्मलोके कल्पे जघन्येन देवानां सप्त १०४. ब्रह्मलोककल्प के देवों की जघन्य स्थिति सागरोवमाइं ठिती पण्णत्ता। सागरोपमाणि स्थिति: प्रज्ञप्ताः। सात सागरोपम की है। १०५. बंभलोय-लंतएसुणं कप्पेसु विमाणा ब्रह्मलोक-लान्तकयोः कल्पयोः विमा- १०५. ब्रह्मलोक और लान्तक कल्पों में विमानों सत्त जोयणसताई उद्धृ उच्चत्तेणं नानि सप्त योजनशतानि ऊर्ध्व उच्चत्वेन की ऊंचाई सात सौ योजन की है। पण्णत्ता। प्रज्ञप्तानि । १०६. भवणवासोणं देवाणं भवधारणिज्जा भवनवासिनां देवानां भवधारणीयानि १०६. भवनवासी देवों के भवधारणीय शरीर की सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ शरीरकाणि उत्कर्षेण सप्त रत्नीः ऊवं उत्कृष्ट ऊंचाई सात रत्नि की है। उडू उच्चत्तेणं पण्णत्ता। उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि। १०७. 'वाणमंतराणं देवाणं भवधार- वानमन्तराणां देवानां भवधारणीयानि १०७. वानमंतर देवों के भवधारणीय शरीर की णिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं सत्त शरीरकाणि उत्कर्षेण सप्त रत्नी: ऊवं उत्कृष्ट ऊंचाई सात रत्नि की है। रयणीओ उड्ड उच्चत्तेणं पण्णत्ता। उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि । १०८. जोइसियाणं देवाणं भवधारणिज्जा ज्योतिष्काणां देवानां भवधारणीयानि १०८. ज्योतिष्क देवों के भवधारणीय शरीर की सरीरगा उक्कोसेणं सत्त रयणीओ शरीरकाणि उत्कर्षेण सप्त रत्नीः ऊवं उत्कृष्ट ऊंचाई सात रनि की है। उड्डू उच्चत्तेणं पण्णत्ता। उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि। १०६. सोहम्मीसाणेसु णं कप्पेसु देवाणं सौधर्मेशानयोः कल्पयोः देवानां भव- १०६. सौधर्म और ईशानकल्प के देवों के भव भवधारणिज्जा सरीरगा उक्कोसेणं धारणीयानि शरीरकाणि उत्कर्षेण सप्त धारणीय शरीर की उत्कृष्ट ऊंचाई सात सत्त रयणीओ उड्ड उच्चत्तेणं रत्नीः ऊर्ध्व उच्चत्वेन प्रज्ञप्तानि। रनि की है। पण्णत्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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