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________________ ठाणं (स्थान) ७३० स्थान ७ : सूत्र ४६-५४ कायकिलेस-पदं कायक्लेश-पदम् ४६. सत्तविधे कायकिलेसे पण्णत्ते, सप्तविधः कायक्लेशः प्रज्ञप्तः, तं जहा तद्यथाठाणातिए, उक्कुडुयासणिए, स्थानायतिकः, उत्कुटुकासनिकः, पडिमठाई, वीरासणिए, णेसज्जिए, प्रतिमास्थायी, वीरासनिकः, नैषधिकः, दंडायतिए, लगंडसाई। दण्डायतिकः, लगण्डशायी। कायक्लेश-पद ४६. कायक्लेश के सात प्रकार हैं १.स्थानायतिक, २. उत्कुटकासनिक, ३. प्रतिमास्थायी. ४. वीरासनिक, ५.नषधिक, ६. दण्डायतिक, ७. लगंडशायी। खेत्त-पव्वय-णदी-पदं क्षेत्र-पर्वत-नदी-पदम् क्षेत्र-पर्वत-नदी-पद ५०. जंबुद्दीवे दीवे सत्त वासा पण्णत्ता, जम्बूद्वीपे द्वीपे सप्त वर्षाणि प्रज्ञप्तानि, ५०. जम्बूद्वीप द्वीप में सात वर्ष-क्षेत्र हैंतं जहा... तद्यथा--- १. भरत, २. ऐरवत, ३. हैनवत, भरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, भरतं, ऐरवतं, हैमवतं, हैरण्यवतं, ४. हैरण्यवत, ५. हरिवर्ष, ६. रम्यकवर्ष, हरिदासे, रम्भगवासे, महाविदेहे। हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, महाविदेहः । ७. महाविदेह। ५१. जंबुद्दीवे दीवे सत्त वास हरपक्वता जम्बूद्वीपे द्वीपे सप्त वर्षधरपर्वताः ५१. जम्बूद्वीप द्वीप में सात वर्षधर पर्वत हैं--- पण्णत्ता, तं जहा.- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा १. क्षुद्रहिमवान्, २. महाहिमवान्, चुल्ल हिमवंते, महाहिमवंते, णिस ढे, क्षुद्रहिमवान्, महाहिमवान्, निषधः, ३. निषध, ४. नीलवान्, ५. रुक्मी, णीलवंते, रुप्पी, सिहरी, मंदरे। नीलवान्, रुक्मी, शिखरी, मन्दरः। ६. शिखरी, ७. मन्दर। ५२. जंबुद्दीवे दीवे सत्त महाणदीओ जम्बू द्वीपे द्वीपे सप्त महानद्यः, पूर्वाभि- ५२. जम्बुद्वीप द्वीप में सात महानदियां पूर्या पुरत्याभिमुहीओ लवणसमुदं मुखाः लवणसमुद्रं समर्पयन्ति, तद्यथा- भिमुख होती हुई लवण-समुद्र में समाप्त समप्पति, तं जहा होती हैंगंगा, रोहिता, हरी, सीता, गङ्गा, रोहिता, हरित्, शीता, १. गंगा, २. रोहिता, ३. हरित्, णरकता, सुवण्णकूला, रत्ता। नरकान्ता, स्वर्णकूला, रक्ता। ४. शीता, ५. नरकान्ता, ६. सुवर्णकूला, ७. रक्ता । ५३. जंबुद्दीवे दीवे सत्त महाणदीओ जम्बूद्वीपे द्वीपे सप्त महानद्यः पश्चिमाभि- ५३. जम्बूद्वीप द्वीप में सात महानदियां पच्चत्वाभिमुहीओ लवणसमुदं मुखाः लवणसमुद्रं समर्पयन्ति, तद्यथा- पश्चिमाभिमुख होती हुई लवण-समुद्र में समप्पंति, तं जहा समाप्त होती हैंसिंधू, रोहितंसा, हरिकता, सिन्धूः, रोहितांशा, हरिकान्ता, शीतोदा, । १. सिंध, २. रोहितांशा, ३.हरिकांता, सीतोदा, णारिकता, रुप्पकूला, नारीकान्ता, रूप्यकूला, रक्तवती। ४. शीतोदा, ५. नारीकांता, ६. रुप्याला, रत्तावतो। ७. रक्तवती। ५४. धायइसंडदीवपुरथिमद्धे णं सप्त धातकीषण्डद्वीपपौरस्त्याधं सप्त वर्षाणि ५४. धातकोषण्डद्वीप के पूर्वार्द्ध में सात क्षेत्र वासा पण्णत्ता, तं जहा- प्रज्ञप्तानि, तद्यथाभरहे, एरवते, हेमवते, हेरण्णवते, भरतं, ऐरवतं, हैमवतं, हैरण्यवतं, १. भरत, २. ऐरवत, ३. हैमवत, हरिवासे, रम्मगवासे, महाविदेहे। हरिवर्ष, रम्यकवर्ष, महाविदेहः । ४. हैरण्यवत, ५. हरिवर्ष, ६. रम्यकवर्ष, ७. महाविदेह। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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