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________________ ठाणं (स्थान) ७२२ छउमत्थ-पदं छद्मस्थ-पदम् २८. सतह ठाणेहि छउ मत्थं जाणेज्जा, सप्तभिः स्थानैः छद्मस्थं जानीयात्, तं जहा तद्यथा— पाणे अइवात्ता भवति । मुसं वइत्ता भवति । अदिणं आदित्ता भवति । सफरिसर सरूवगंधे आसादेत्ता भवति । प्राणान् अतिपातयिता भवति । मृषा वदिता भवति । अदत्तमादाता भवति । शब्दस्पर्शरसरूपगन्धानास्वादयिता भवति । यासक्कारं अणुवत्ता भवति । इमं सावज्जति पण्णवेत्ता पडिसेवेत्ता भवति । पूजासत्कारं अनुबू हयिता भवति । इदं सावद्यमिति प्रज्ञाप्य प्रतिषेवयिता भवति । णो जहावादी तहाकारी यावि नो यथावादी तथाकारी चापि भवति । भवति । har - पदं केवली -पदम् २६. सतह ठाणेह केवली जाणेज्जा, सप्तभिः स्थानैः केवलिनं जानीयात्, तं जहा - तद्यथा णी पाणे अइवाइत्ता भवति । ● जो मुसं वइत्ता भवति । जो अदिण्णं आदित्ता भवति । सफरिस रस रूवगंधे आसादेत्ता भवति । नो प्राणान् अतिपातयिता भवति । नो मृषा वदिता भवति । भवति । नो अदत्तमादाता नो शब्दस्पर्श र सरूपगन्धानास्वादयिता भवति । । यासकार अणुवहेत्ता भवति इमं सावज्जंति पण्णवेत्ता णो पडिसेवेत्ता भवति । ° नो पूजासत्कारं अनुबू हयिता भवति । इदं सावद्यमिति प्रज्ञाप्य नो प्रतिषेवयिता भवति । जहावादी तहाकारी यावि भवति । यथावादी तथाकारी चापि भवति । Jain Education International For Private & Personal Use Only स्थान ७ : सूत्र २८ - २६ ४. अकस्मात् भय -- किसी वाह्य निमित्त के बिना ही उत्पन्न होने वाला भय, अपने ही विकल्पों से होने वाला भय । ५. वेदना भय - पीड़ा आदि से उत्पन्न भय । ६. मरण भय मृत्यु का भय । ७. अश्लोक भय - अकीति का भय । छदमस्थ-पद २८. सात हेतुओं से छद्मस्थ जाना जाता है १. जो प्राणों का अतिपात करता है । २. जो मृषा बोलता है । ३. जो अदत्त का ग्रहण करता है। ४. जो शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का आस्वादक होता है। ५. जो पूजा और सरकार का अनुमोदन करता है । ६. जो 'यह सावध – सपाप हैं ऐसा कहकर भी उसका आसेवन करता है। ७. जो जैसा कहता है वैसा नहीं करता । केवली - पद २६. सात हेतुओं से केवली जाना जाता है १. जो प्राणों का अतिपात नहीं करता। २. जो मृषा नहीं बोलता | ३. जो अदत्त का ग्रहण नहीं करता । ४. जो शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध का आस्वादक नहीं होता । ५. जो पूजा और सत्कार का अनुमोदन नहीं करता । ६. जो 'यह सावध - सपाप है' ऐसा कहकर उसका सेवन नहीं करता । ७. जो जैसा कहता है वैसा करता है । www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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