SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 76
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बीअं ठाणं : पढमो उद्देसो मल संस्कृत छाया हिन्दी अनुवाद दुपओआर-पदं द्विपदावतार-पदम् १. जदत्थि णं लोगे तं सव्वं यदऽस्ति लोके तत् सर्वं द्विपदावतारम्, दुपओआरं, तं जहा तद्यथाजीवच्चेव अजीवच्चेव। जीवाश्चैव अजीवाश्चैव। तसच्चेव थावरच्चेव। त्रसाश्चैव स्थावराश्चैव । सजोणियच्चेव अजोणियच्चेव। सयोनिकाश्चैव अयोनिकाश्चैव। साउयच्चेव अणाउयच्चेव। सायुष्काश्चैव अनायुष्काश्चैव । सइंदियच्चेव अणिदियच्चेव । सेन्द्रियाश्चैव अनिन्द्रियाश्चेव । सवेयगा चेव अवेयगा चेव। सवेदकाश्चैव अवेदकाश्चैव। सरूवी चेव अरूवी चेव । सरूपिणश्चैव अरू पिणश्चैव। सपोग्गला चेव अपोग्गला चेव। सपुद्गलाश्चैव अपुद्गलाश्चैव । संसारसमावण्णमा चेव संसारसमापन्नकाश्चैव असंसारसमावण्णगा चेव । असंसारसमापन्नकाश्चैव । सासया चेव असासया चेव । शाश्वताश्चैव अशाश्वताश्चैव । आगासे चेव णोआगासे चेव । आकाशं चैव नो-आकाशं चैव । धम्मे चेव अधम्मे चेव । धर्मश्चैव अधर्मश्चैव । बंधे चेव मोक्खे चेव। बंधश्चैव मोक्षश्चैव। पुण्णे चेव पावे चेव। पुण्यं चैव पापं चैव। आसवे चेव संवरे चेव। आश्रवश्चैव संवरश्चैव। वेयणा चेव णिज्जरा चेव। वेदना चैव निर्जरा चैव। द्विपदावतार-पद १. लोक में जो कुछ है, वह सब द्विपदावतार [दो-दो पदों में अवतरित होता है,जीव और अजीव। वस और स्थावर। सयोनिक और अयोनिक। आयु-सहित और आयु-रहित । इन्द्रिय-सहित और इन्द्रिय-रहित । वेद-सहित और वेद-रहित। रूप-सहित और रूप-रहित। पुद्गल-सहित और पुद्गल-रहित । संसार समापन्नक [संसारी] असंसार समापन्नक [सिद्ध] । शाश्वत और अशाश्वत। आकाश और नो-आकाश। धर्म और अधर्म। बन्ध और मोक्ष। पुण्य और पाप। आस्रव और संवर। वेदना और निर्जरा। किरिया-पदं क्रिया-पदम् २. दो किरियाओ पण्णत्ताओ, तं द्वे किये प्रज्ञप्ते, तद्यथाजहाजीवकिरिया चेव, जीवक्रिया चैव, अजीवकिरिया चेव । अजीवक्रिया चैव। क्रिया-पद २. क्रिया दो प्रकार की है जीव क्रिया-जीव की प्रवृत्ति। अजीव क्रिया-पुद्गल समुदाय का कर्म रूप में परिणत होना। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy