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________________ ठाणं (स्थान) ७०८ परस्पर अविरुद्ध विकल्पों के आधार पर इसके १५ भेद होते हैं इसका विस्तार इस प्रकार है - उदय, क्षयोपशम और परिणाम से निष्पन्न सान्निपातिक के चार विकल्प औदयिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक चारों गतियों में एक-एक - ४ विकल्प क्षायिक चारों गतियों में४ विकल्प औपशमिक चारों गतियों में४ विकल्प उपशम श्रेणी का - [ यह केवल एक मनुष्य गति में ही होता है ]केवली का --- [ केवल मनुष्य में ही ] -१ विकल्प सिद्ध का १ विकल्प Jain Education International ० नरक - औदयिक - नारकत्व, क्षायोपशमिक इन्द्रियां, पारिणामिक जीवत्व । ० तिर्यञ्च - औदयिक - तिर्यञ्चत्व, क्षायोपशमिक इन्द्रियां, पारिणामिक जीवत्व । ● मनुष्य – औदयिक - मनुष्यत्व, क्षायोपशमिक-इन्द्रियां, पारिणामिक जीवत्व । • देव - औदयिक देवत्व, क्षायोपशमिक- इन्द्रियां, पारिणामिक जीवत्व । क्षय के योग से निष्पन्न सान्निपातिक के चार विकल्प -- ० नरक - औदयिक-नारकत्व, क्षायोपशमिक इन्द्रियां, क्षायिक सम्यक्त्व, पारिणामिक जीवत्व । इसी प्रकार अन्य तीन गतियों में योजना करनी चाहिए । उपशम के योग से निष्पन्न सान्निपातिक के चार विकल्प ० नरक-- औदयिक- नारकत्व, क्षायोपशमिक-इन्द्रियां, औपशमिक सम्यक्त्व, पारिणामिक जीवत्व | इसी प्रकार अन्य तीन गतियों में योजना करनी चाहिए। • उपशम श्रेणी से निष्पन्न सान्निपातिक का एक विकल्प केवल मनुष्य के ही होता है । औदयिक मनुष्यत्व, क्षायोपशमिक इन्द्रियां, उपशान्त कषाय, पारिणामिक जीवत्व । • केवली से निष्पन्न सान्निपातिक का एक विकल्प --- स्थान ६ : टि०४२ औदयिक मनुष्यत्व, क्षायिक सम्यक्त्व, पारिणामिक जीवत्व । • सिद्ध से निष्पन्न सान्निपातिक का एक विकल्प - क्षायिक सम्यक्त्व, पारिणामिक जीवत्व । इन विकल्पों की समस्त संख्या १५ है । पांचों भावों के ५३ भेद भी किए गए हैं १. औपशमिक भाव के दो भेद - औपशमिक सम्यक्त्व और औपशमिक चारित्र । २. क्षायिक भाव के नौ भेद - दर्शन, ज्ञान, दान, लाभ, उपभोग, भोग, वीर्य, क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक चारित्र । ३. क्षायोपशमिक भाव के अठारह भेद--चार ज्ञान, तीन अज्ञान, तीन दर्शन, पांच लब्धि, क्षायोपशमिक सम्यक्त्व, क्षायोपशमिक चारित्र और संयमासंयम । ४. औदयिकभाव के २१ भेद --चार गति, चार कषाय, तीन लिंग, छह लेश्या, अज्ञान, मिथ्यात्व, असिद्धत्व और असंयम । ५. पारिणामिक भाव के तीन भेद - जीवत्व, भव्यत्व और अभव्यत्व' । १. अनुयोगद्वार सूत्र २७१-२६७ । | -१ विकल्प For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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