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ठाणं (स्थान)
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स्थान ६ : सूत्र ६६-६८
अणसणं, ओमोदरिया,
अनशनं, अवमोदरिका, भिक्षाचर्या, १. अनशन, २. अवमोदरिका, भिक्खायरिया, रसपरिच्चाए, रसपरित्यागः, कायक्लेशः, ३. भिक्षाचर्या, ४. रस-परित्याग, कायकिलेसो, पडिसंलोणता। प्रतिसंलीनता।
५. काय-क्लेश, ६. प्रतिसंलीनता। ६६. छविहे अब्भंतरिए तवे पण्णत्ते, षड्विधं आभ्यन्तरिक तपः प्रज्ञप्तम्, ६६. आभ्यन्तरिक-तप के छह प्रकार हैं...... तं जहा
तद्यथापायच्छित्तं, विणओ, वेयावच्चं, प्रायश्चित्तं, विनयः, वैयावृत्त्यं, १. प्रायश्चित्त, २. विनय, ३. वैयावृत्त्य, सभाओ, झाणं, विउस्सग्गो। स्वाध्यायः, ध्यानं, व्युत्सर्गः। ४. स्वाध्याय, ५. ध्यान, ६. व्युत्सर्ग।
विवाद-पदं ६७. छविहे विवादे पण्णत्ते, तं जहा..
ओसक्कइत्ता, उस्सक्कइत्ता, अणुलोमइत्ता, पडिलोमइत्ता, भइत्ता, भेलइत्ता।
विवाद-पदम् षडविधः विवादः प्रज्ञप्तः. तदयथा- अवष्वष्क्य, उत्ष्वष्क्य, अनुलोम्य, प्रतिलोम्य, भक्त्वा, मिश्रीकृत्य ।
विवाद-पद ६७. विवाद के छह अंग हैं [वादी अपनी
विजय के लिए इनका सहारा लेता है]१. वादी के तर्क का उत्तर ध्यान में न आने पर कालक्षेप करने के लिए प्रस्तुत विषय से हट जाना। २. पूर्ण तैयारी होते ही वादी को पराजित करने के लिए आगे आना। ३. विवादाध्यक्ष को अपने अनुकूल बना लेना अथवा प्रतिपक्षी के पक्ष का एक बार समर्थन कर उसे अपने अनुकूल बना
लेना।
४. पूर्ण तयारी होने पर विवादाध्यक्ष तथा प्रतिपक्षी की उपेक्षा कर देना। ५. सभापति की सेवा कर उसे अपने पक्ष में कर लेना। ६. निर्णायकों में अपने समर्थकों का बहुमत करना।
खुड्डपाण-पदं क्षुद्रप्राण-पदम्
क्षुद्रप्राण-पद ६८. छव्विहा खुड्डा पाणा पण्णत्ता, तं षड्विधाः क्षुद्राः प्राणाः प्रज्ञप्ताः, ६८. क्षुद्र प्राणी छह प्रकार के होते हैंजहा
तदयथाबेइंदिया, तेइंदिया, चरिदिया, द्वीन्द्रियाः, त्रीन्द्रियाः, चतुरिन्द्रियाः, १. द्वीन्द्रिय, २. वीन्द्रिय, ३. चतुरिन्द्रिय, समुच्छिमपंचिदियतिरिक्खजोणिया, सम्मूच्छिमपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः, ४. सम्मच्छिम पञ्चेन्द्रिय तिर्यकयौनिक, तेउकाइया, वाउकाइया। तेजस्कायिकाः, वायुकायिकाः ।
५. तेजस्कायिक, ६. वायुकायिक ।
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