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ठाणं (स्थान)
स्थान ६ : सूत्र ३५-३६ ३५. छविहा कुलारिया मणुस्सा षड्विधाः कुलार्याः मनुष्याः प्रज्ञप्ताः, ३५. कुल से आर्य मनुष्य छह प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथाउग्गा, भोगा, राइण्णा, उग्राः, भोजाः, राजन्याः,
१. उग्र, २. भोज, ३. राजन्य ४. इक्ष्वाकु, इक्खागा, णाता, कोरवा। इक्षाकाः, ज्ञाता:, कौरव्याः ।
५. ज्ञात, ६. कौरव। लोगद्विती-पदं लोकस्थिति-पदम
लोकस्थिति-पद ३६. छव्विहा लोगद्विती पण्णत्ता, तं जहा- षड्विधा लोकस्थितिः प्रज्ञप्ताः,तद्यथा- ३६. लोक-स्थिति छह प्रकार की हैआगासपतिद्वते वाए, आकाशप्रतिष्ठितो वातः,
१. आकाश पर वायुप्रतिष्ठित है, वातपतिढते उदही, वातप्रतिष्ठित उदधिः ,
२. वायु पर उदधिप्रतिष्ठित है, उदधिपतिट्टिता पुढवी, उदधिप्रतिष्ठिता पृथिवी,
३. उदधि पर पृथ्वीप्रतिष्ठित है, पुढविपतिद्विता तसाथावरापाणा, पृथिवीप्रतिष्ठिताः त्रसाः स्थावरा:प्राणाः. ४. पृथ्वी पर त्रस-स्थावर जीवप्रतिष्ठित हैं, अजीवा जीवपतिहिता, अजीवाः जीवप्रतिष्ठिताः,
५. अजीव जीव पर प्रतिष्ठित है। जीवा कम्मपतिहिता। जीवाः कर्मप्रतिष्ठिताः ।
६. जीव कर्मों पर प्रतिष्ठित है। दिसा-पदं दिशा-पदम्
दिशा-पद ३७. छद्दिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा- पड्दिशः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
३७. दिशाएं छह हैं१४ -- पाईणा, पडीणा, दाहिणा, प्राचीना, प्रतीचीना, दक्षिणा,
१. पूर्व, २. पश्चिम, ३. दक्षिण, ४. उत्तर, उदीणा, उड्डा, अधा। उदीचीना, ऊवं, अधः ।
५. ऊव, ६. अधः। ३८. छहि दिसाहिं जीवाणं गति पवत्तति, षट्सु दिक्षु जीवानां गतिः प्रवर्तते, ३८. छहों ही दिशाओं में जीवों की गति
(वर्तमान भव से अग्रिम भव में जाना] तं जहातद्यथा
होती हैपाईणाए, 'पडीणाए, दाहिणाए, प्राचीनायां, प्रतीचीनायां, दक्षिणायां, १. पूर्व में, २. पश्चिम में, ३. दक्षिण में, उदीणाए, उड्डाए, अधाए। उदीचीनायां, ऊष, अधः ।
४. उत्तर में, ५. ऊर्ध्वदिशा में,
६. अधो दिशा में। ३६. 'हिं दिसाहि जीवाणं - षट्सु दिक्षु जीवानां
३६. छहों ही दिशाओं में जीवों केआगई, वक्कंती, आहारे, वुड्डी, आगतिः, अवक्रान्तिः, आहारः,
आगति---पूर्व भव से प्रस्तुत भव में आना
अवक्रान्ति-उत्पत्ति स्थान में जाकर णिवुड्डी, विगुव्वणा, गतिपरियाए, वृद्धि: निवृद्धिः, विकरणं,
उत्पन्न होना। समुग्घाते, कालसंजोगे, गतिपर्याय:, समुद्धात:, कालसंयोगः,
आहार-प्रथम समय में जीवनोपयोगी दसंणाभिगमे, णाणाभिगमे,
पुद्गलों का संचय करना। दर्शनाभिगमः, ज्ञानाभिगमः,
वृद्धि-शरीर की वृद्धि। जीवाभिगमे, अजीवाभिगमे, जीवाभिगमः, अजीवाभिगमः
हानि-शरीर की हानि। 'पण्णत्ते, तं जहा
विक्रिया--विकुर्वणा करना। प्रज्ञप्तः, तद्यथा
गति-पर्याय-गमन करना। यहां इसका पाईणाए, पडीणाए, दाहिणाए, प्राचीनायां, प्रतीचीनायां, दक्षिणायां, अर्थ परलोकगमन नहीं है। उदीणाए, उडाए, अधाए। उदीचीनायाः ऊर्ध्व, अधः।
समुद्घात५-वेदना आदि में तन्मय होकर आत्मप्रदेशों का इधर-उधर प्रक्षेप करना। काल-संयोग-सूर्य आदि द्वारा कृत कालविभाग। दर्शनाभिगम-अवधि आदि दर्शन के द्वारा वस्तु का परिज्ञान। ज्ञानाभिगम---अवधि आदि ज्ञान के द्वारा वस्तु का परिज्ञान।
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