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________________ ठाणं (स्थान) ५६० स्थान ५ : सूत्र १५४-१५८ महादह-पदं महाद्रह-पदम् महाद्रह-पद १५४. जम्बुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य दक्षिणे १५४. जम्बूद्वीप द्वीप में मन्दर पर्वत के देवकुरु दाहिणे णं देवकुराए कुराए पंच देवकुरौ कुरौ पञ्च महाद्रहाः प्रज्ञप्ताः, नामक कुरुक्षेत्र में पांच महाद्रह हैंमहदहा पण्णत्ता, तं जहा- तद्यथाणिसहदहे, देवकुरुदहे, सूरदहे, निषधद्रहः, देवकुरुद्रहः, सूरद्रहः, १. निषधद्रह, २. देवकुरुद्रह, ३. सूरद्रह, सुलसदहे, विज्जुप्पभदहे। सुलसद्रहः, विद्युत्प्रभद्रहः । ४. सुलसद्रह, ५. विद्युत्प्रभद्रह । १५५. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे १५५. जम्बूद्वीप द्वीप मन्दर पर्वत के उत्तरभाग उत्तरे णं उत्तरकुराए कुराए पंच उत्तरकुरौ कुरौ पञ्च महाद्रहाः प्रज्ञप्ताः, । में उत्तरकुरु नामक कुरुक्षेत्र में पांच महामहादहा पण्णत्ता, तं जहा.- तद्यथा १. नीलवत्द्रह, २. उत्तरकुरुद्रह, णीलवंतदहे, उत्तरकुरुदहे, चंददहे, नीलवद्हः , उत्तरकुरुद्रहः, चन्द्रद्रहः, ३. चन्द्रद्रह ४. ऐरावणद्रह, एरावणदहे, मालवंतदहे। ऐरावणद्रहः, माल्यवद्महः । ५. माल्यवत्द्रह। वक्खारपव्वय-पद वक्षस्कारपर्वत-पदम् वक्षस्कारपर्वत-पद १५६. सब्वेवि णं वक्खारपध्वया सीया- सर्वेपि वक्षस्कारपर्वता: शीताशीतोदे १५६. सभी वक्षस्कार पर्वत सीता, सीतोदा सीओयाओ महाणईओ मंदरं वा महानद्यौ मन्दरं वा पर्वतं पञ्च महानदी तथा मन्दर पर्वत की दिशा में पव्वत पंच जोयणसताई उडू योजनशतानि ऊवं उच्चत्वेन, पञ्च- पांच सौ योजन ऊंचे तथा पांच सौ कोस उच्चत्तेणं, पंचगाउसताई उव्वेहेणं। गव्यूतिशतानि उद्वेधेन। गहरे हैं। धायइसंड-पुक्खरवर-पदं धातकीषण्ड-पुष्करवर-पदम् धातकीषण्ड-पुष्करवर-पद शायद दीवे परस्थिमण धातकीपण्डे द्वीपे पौरस्त्याध मन्दरस्य १५७. धातकीपण्ड द्वीप के पूर्वार्ध में, मन्दर पर्वत मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिमे णं पर्वतस्य पूर्वस्मिन् शीतायाः महानद्या: के पूर्व में तथा सीता महानदी के उत्तर में पांच वक्षस्कार पर्वत हैं -- सीयाए महाणदीए उत्तरे णं पंच उत्तरे पञ्च वक्षस्कारपर्वताः प्रज्ञप्ताः, १. माल्यवान्, २. चित्रकूट, ३. पश्मकूट, वक्खारपन्वता पण्णत्ता, तं जहा... तद्यथा--- ४. नलिनकूट, ५. एकशैल। इसी प्रकार धातकीषण्ड द्वीप के पश्चिमालवंते, एवं जहा जंबुद्दीवे तहा माल्यवान्, एवम् यथा जम्बूद्वीपे तथा मार्ध में तथा अर्धपुष्करवर द्वीप के पूर्वार्ध जाव पुक्खरवरदीवड्ड पच्चत्थि- यावत् पुष्करवरद्वीपाधू पाश्चात्यार्धे और पश्चिमार्ध में भी जम्बूद्वीप की तरह पांच-पांच वक्षस्कार पर्वत, महानदियां मद्धे वक्खारपव्वया दहा य वक्षस्कारपर्वताः द्रहाश्च उच्चत्वं तथा द्रह और वक्षस्कार पर्वतों की ऊंचाई उच्चत्तं भाणियध्वं। भणितव्यम्। समयक्खेत्त-पदं समयक्षेत्र-पदम् समयक्षेत्र-पद १५८. समयक्खेत्ते णं पंच भरहाई, पंच समयक्षेत्रे पञ्चभरतानि, पञ्चै रवतानि, १५८. समयक्षेत्र में पांच भरत और पांच ऐरवत एरवताई, एवं जहा चउट्ठाणे एवं यथा चतुःस्थाने, द्वितीयोद्देशे तथा बितीयउद्देसे तहा एत्थवि भाणि- अत्रापि भणितव्यं यावत् पञ्च मन्दराः शेष वर्णन के लिए देखें [४/३३७] । यव्वं जाव पंच मंदरा पंच मंदर- पञ्च मंदरचूलिकाः, नवरं इषुकाराः विशेष यह है कि वहां इपुकार पर्वत नहीं चूलियाओ, णवरं उसुयारा णत्थि। न सन्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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