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ठाणं (स्थान)
स्थान ५: सूत्र ६६-७२
६६. ईसाणस णं देविदस्स देवरण्णो ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य अभ्यन्तर- ६६. देवेन्द्र देवराज ईशान के अन्तरंग परिषद्
अभंतरपरिसाए देवीणं पंच परिषदः देवीनां पञ्च पल्योपमानि के सदस्य देवियों की स्थिति पांच पल्योपलिओवमाई ठिती पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता।
पम की है।
पडिहा-पदं प्रतिघात-पदम्
प्रतिघात-पद ७०. पंचविहा पडिहा पण्णत्ता, तं पञ्चविधा: प्रतिघाताः प्रज्ञप्ताः, ७०. प्रतिघात [स्वलन] पांच प्रकार का जहातद्यथा
होता है - गतिपडिहा, ठितिपडिहा, गतिप्रतिधात:, स्थितिप्रतिघातः, १. गति प्रतिघात–अशुभ प्रवृत्ति के द्वारा बंधणपडिहा, भोगपडिहा, बन्धनप्रतिघात:, भोगप्रतिघातः, प्रशस्त गति का अवरोध, बल-वीरिय-पुरिसयार- बल-वीर्य-पुरुषकार-पराक्रमप्रतिघातः ।
२. स्थिति प्रतिघात-उदीरणा के द्वारा
कर्म-स्थिति का अल्पीकरण, • परक्कमपडिहा।
३. बन्धन प्रतिघात-प्रशस्त औदारिक शरीर आदि की प्राप्ति का अवरोध, ४. भोग प्रतिघात-सामग्री के अभाव में भोग की अप्राप्ति, ५. बल", बीर्य, पुरुषकार और पराक्रमका प्रतिघात।
आजीव-पदं आजीव-पदम्
आजीव-पद ७१. पंचविधे आजीवे पण्णत्ते, तं जहा.- पञ्चविधः आजीवः प्रज्ञप्ताः , ७१. आजीव पांच प्रकार का होता हैतद्यथा
१. जात्याजीव-जाति से जीविका करने जातोआजीवे, कुलाजीवे, जात्याजीवः, कुलाजीव:, कर्माजीवः,
वाला, कम्माजीवे, सिप्पाजीवे, शिल्पाजीव:, लिङ्गाजीवः ।
२. कुलाजीव-कुल से जीविका करने लिंगाजीवे।
वाला, ३. कर्माजीव-कृषि आदि से जीविका करने वाला, ४. शिल्पाजीव-कला से जीविका करने वाला, ५. लिंगाजीव-वेष से जीविका करने
वाला। राय-चिध-पदं राज-चिह्न-पदम्
राज-चिह्न-पद ७२. पंच रायककुधा पण्णत्ता, तं जहा- पञ्च राजककुदानि प्रज्ञप्तानि, ७२. राजचिन्ह पांच प्रकार के होते हैं-- तद्यथा
१. खड्ग, २. छत्र, ३. उष्णीष-मुकुट, खग्गं, छत्तं, उप्फेसं, खड्ग, छत्रं, उष्णीष,
४. जूते, ५. चामर। पाणहाओ, वालवीअणी। उपानहौ, बालव्यजनी।
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