________________
ठाणं (स्थान)
५६०
स्थान ५: सूत्र ५०-५२
४. आचार्य तथा उपाध्याय गण में रोगी तथा नवदीक्षित साधुओं का वैयावृत्त्य कराने के लिए जागरूक रहें, ५. आचार्य तथा उपाध्याय गण को पूछकर क्षेत्रान्तर-संक्रम करें, बिना पूछे न करें।
४. आयरियउवज्झाए गणंसि ४. आचार्योपाध्यायः गणे ग्लानशैक्षगिलाणसेहवेयावच्चं सम्मं वैयावृत्त्यं सम्यक् अभ्युत्थाता भवति । अब्भुद्वित्ता भवति । ५. आचार्योपाध्यायः गणे आपृच्छ्यचारी ५. आयरियउवज्झाए गणंसि चापि भवति, नो अनापृच्छ्यचारी। आपुच्छियचारी यावि भवति, णो अणापुच्छियचारी। णिसिज्जा-पदं
निषद्या-पदम् ५०. पंच णिसिज्जाओ पण्णत्ताओ, तं पञ्च निषद्या: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-
जहाउक्कुड्या, गोदोहिया, उत्कृटुका, गोदोहिका, समपादपुता, समपायपुता, पलियंका, पर्यका, अर्धपयंका। अद्धपलियंका।
निषद्या-पद ५०. निषद्या पांच प्रकार की होती है
१. उत्कुटुका ---पुतों को भूमि से घुमाए बिना पैरों के बल पर बैठना, २. गोदोहिका-गाय की तरह बैठना या गाय दुहने की मुद्रा में बैठना, ३. समपादपुता—दोनों पैरों और पुतों को छुआ कर बैठना, ४. पर्यका-पद्मासन, ५. अपर्यका---अर्द्धपद्मासन ।
अज्जवट्ठाण-पदं
आर्जवस्थान-पदम् ५१. पंच अज्जवटाणा पण्णत्ता, तं जहा- पञ्च आर्जवस्थानानि प्रज्ञप्तानि,
तद्यथासाधुअज्जवं, साधुमद्दवं, साध्वार्जवं, साधुमार्दवं, साधुलाघवं, साधुलाघवं, साधुखंती, साधुक्षान्तिः, साधुमुक्तिः। साधुमुत्ती।
आर्जवस्थान-पद ५१. आर्जव--संवर के पांच स्थान है--
१. साधुआर्जव-माया का सम्यक् निग्रह, २. साधुमार्दव-अभिमान का सम्यक्
निग्रह,
३. साधुलाघव-गौरव का सम्यक् निग्रह, ४. साधुक्षांति-क्रोध का सम्यक् निग्रह, ५. साधमुक्ति-लोभ का सम्यक् निग्रह।
जोइसिय-पदं ज्योतिष्क-पदम्
ज्योतिष्क-पद ५२. पंचविहा जोइसिया पण्णत्ता, तं पञ्चविधा: ज्योतिष्काः प्रज्ञप्ताः, ५२. ज्योतिष्क पांच प्रकार के हैंजहा...तद्यथा
१. चन्द्र, २. सूर्य, ३. ग्रह, ४. नक्षत्र, चंदा, सूरा, गहा, णक्खत्ता, चन्द्राः, सूराः, ग्रहाः, नक्षत्राणि, ताराः। ५. तारा। ताराओ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org