________________
ठाणं (स्थान)
स्थान ५ : सूत्र २२ २२. पंर्चाह ठा!ह केवलवरणाणदंसणे पञ्चभिः स्थानः केवलवरज्ञानदर्शनं २२. पांच स्थानों से तत्काल उत्पन्न होता
समुप्पज्जिउकामे तप्पढमयाए णो समुत्पत्तुकामं तत्प्रथमतायां नो स्कभ- होता केबलवरज्ञानदर्शन अपने प्रारम्भिक खंभाएज्जा, तं जहा- नीयात्, तद्यथा
क्षणों में विचलित नहीं होता -- १. अप्पभूतं दा पुढवि पासित्ता १. अल्पभूतां वा पृथ्वीं दृष्ट्वा
१. पृथ्वी को छोटा-सा देखकर वह अपने तप्पढमयाए णो खंभाएज्जा। तत्प्रथमतायां नो स्कभनीयात् । प्रारम्भिक क्षणों में विचलित नहीं होता। २. कुंथुरासिभूतं वा पुढवि २. कुन्थुराशिभूतां वा पृथ्वी दृष्ट्वा । २. कुथु जैसे छोटे-छोटे जीवों से पृथ्वी पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभ- तत्प्रथमतायां नो स्कभ्नीयात् । को आकीर्ण देखकर वह अपने प्रारम्भिक एज्जा ।
क्षणों में विचलित नहीं होता। ३. मह तिमहालयं वा महोरगसरीरं ३. महातिमहत् वा महोरगशरीरं । ३. बहुत बड़े-बड़े महोरगों को देखकर वह पासित्ता तप्पढमयाए णो खंभा- दृष्ट्वा तत्प्रथमतायां नो स्कभनीयात् ।। अपने प्रारम्भिक क्षणों में विचलित नहीं एज्जा ।
होता। ४. देवं वा महिड्डियं महज्जुइयं ४. देवं वा महद्धिकं महाद्युतिकं महानु- ४. महद्धिक, महाद्युतिक, महानुभाग, महाणुभागं महायसं महाबलं भागं महायशसं महाबलं महासौख्यं । महान यशस्वी, महाबल तथा महासौख्पमहासोक्खं पासित्ता तप्पडमयाए दृष्ट्वा तत्प्रथमतायां नो स्कभनीयात् । वाले देवों को देखकर वह अपने प्रारम्भिक णो खंभाएज्जा।
क्षणों में विचलित नहीं होता। ५. पुरेसु वा पोराणाई उरालाई ५. पुरेषु वा पुराणानि उदाराणि महाति- ५. नगरों में बड़े-बड़े खजानों को देख कर, महतिमहालयाई महाणिहाणाई महान्ति महानिधानानि प्रहीणस्वामि- जिनके स्वामी मर चुके हैं, जिनके मार्ग पहीणसामियाइं यहीणसेउवाई कानि प्रहीणसेतुकानि प्रहीणगोत्रागा- प्राय: नष्ट हो चुके हैं, जिनके नाम और पहीणगत्तागाराई उच्छिण्णसा- राणि उच्छिन्नस्वामिकानि उच्छिन्नसेतु- संकेत विस्मृतप्राय हो चुके हैं, जिनके मियाई उच्छिण्णसेउयाई उच्छिण्ण- कानि उच्छिन्नगोत्रागाराणि यानि इमानि स्वामी उच्छिन्न हो चके हैं, जिनके मार्ग गुत्तागाराई जाई इमाइं गामागर- ग्रामागर-नगर-खेट-कर्बट-मडम्ब-द्रोण- उच्छिन्न हो चुके हैं, जिनके नाम और
गरखेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह- मुख-पत्तनाश्रम-संबाध-सन्निवेषेषु- संकेत उच्छिन्न हो चुके हैं, जो ग्राम आकर, पट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु शृङ्गाटक-त्रिक-चतुष्क-चत्वर-चतुर्मुख- नगर, खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, सिंघाडग-तिग-चउक्क-चच्चर- महापथ-पथेसु नगर-क्षालेषु श्मशान- आश्रम, संबाह, सन्निवेश आदि में तथा चउम्मह-महापहपहेसु नगर- शून्यागार-गिरिकन्दरा-शान्ति
शृङ्गाटकों, तिराहों, चौकों, चौराहों देवणिद्धमणेसु सुसाण-सुग्णागार- शैलोपस्थापन भवनगृहेषु सन्निक्षिप्तानि कुलों, राजमार्गों, गलियों, नालियों, इमगिरिकंदर-संति-सेलोवट्ठावण' तिष्ठन्ति, तानि वा दृष्ट्वा तत्प्रथमतायां शानों, शून्यगृहों, गिरिकन्दराओं, शान्तिभवणगिहेसु सण्णिक्खित्ताई चिटुंति, नो स्कमनीयात् ।
गृहों, शैलगृहों, उपस्थानगृहों और भवनताई वा पासित्ता तप्पढमयाए णो
गृहों में दबे हुए हैं, उन्हें देखकर वह खंभाएज्जा।
अपने प्रारम्भिक क्षणों में विचलित नहीं
होता। इच्चेतेहि पंचहि ठाणेहि केवल- इत्येतैः पञ्चभिः स्थानैः केवलवरज्ञान- इन पांच स्थानों से तत्काल उत्पन्न होतावरणाणदंसणे समुप्पज्जिउकामे दर्शनं समुत्पत्तुकाम तत्प्रथमतायां नो। होता के बलवरज्ञानदर्शन अपने प्रारम्भिक तप्पढमयाए° णो खंभाएज्जा। स्कभनीयात् ।
क्षणों में विचलित नहीं होता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org