SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 591
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ५५० स्थान ५: सूत्र २१ अइसेस-णाण-दसण-पदं अतिशेष-ज्ञान-दर्शन-पदम् अतिशेष-ज्ञान-दर्शन-पद २१. पंचाह ठाोह ओहिदसणे समुप्प- पञ्चभिः स्थानः अवधिदर्शनं समुत्पत्तु- २१. पांच स्थानों से तत्काल उत्पन्न होता होता ज्जिउकामेवि तप्पढमयाए खंभा- काममपि तत्प्रथमतायां एकभनीयात्, । अवधि-दर्शन अपने प्रारम्भिक क्षणों में ही एज्जा, तं जहा.- तद्यथा विचलित हो जाता है१. अप्पभूतं वा पुढवि पासित्ता १. अल्पभूतां वा पृथ्वीं दृष्ट्वा तत् १. पृथ्वी को छोटा-सा देखकर वह अपने तप्पढमयाए खंभाएज्जा। प्रथमतायां स्कभनीयात् । प्रारम्भिक क्षणों में हो विचलित हो जाता प्रथा २. कुंथुरासिभूतं वा पुढवि पासित्ता २. कुन्थुराशिभूतां वा पृथ्वीं दृष्ट्वा तप्पढमथाए खंनाएज्जा। तत्प्रथमतायां स्कमनीयात् । ३. महतिमहालयं वा महोरग- ३. महातिमहत् वा महोरगशरीरं दृष्ट्वा सरीरं पासित्ता तप्पढमयाए खंभा- ततप्रथमतायां स्कभनीयात् । एज्जा । ४. देवं वा महिड्डियं 'महज्जुइयं ४. देवं वा महद्धिकं महाद्युतिकं महानुभागं महाणभाग महायसं महाबलं महायशसं महाबलं महासौख्यं दष्टवा महासोक्खं पासित्ता तप्पढमयाए तत्प्रथमतायां स्कमनीयात् । खंभाएज्जा। ५. पुरेसु वा पोराणाई उरालाई ५. पुरेषु वा पुराणानि उदाराणि महतिमहालयाई महाणिहाणाई महातिमहान्ति महानिधानानि प्रहीणपहीणसामियाइं पहीणसेउयाइं स्वामिकानि प्रहीणसेतुकानि प्रहीणपहीणगुत्तागाराइं उच्छिण्णसामि- गोत्रागाराणि उच्छिन्नस्वामिकानि याइं उच्छिण्णसेउयाइं उच्छिण्ण- उच्छिन्नसेतुकानि उच्छिन्नगोत्रागाराणि गुत्तगाराइं जाइं इमाइं गामागर- यानि इमानि ग्रामाकर-नगरखेट-कर्बटणगरखेड-कब्बड-मडंब-दोणमुह- मडम्ब-द्रोणमुख-पत्तनाऽश्रम-संवाधपट्टणासम-संबाह-सण्णिवेसेसु सिंघा- सन्निवेशेषु गृङ्गाटक-त्रिक-चतुष्कडग-तिग-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह- चत्वर-चतुर्मुख-महापथपथेषु नगरमहापहपहेसु णगर-णिद्धमणेसु क्षालेषु श्मशान-शून्यागार-गिरिकन्दरासुसाण-सुण्णागार-गिरिकंदर-संति- शान्ति-शैलोपस्थापन-भवनगृहेषु सन्निसेलोवट्ठावण-भवणगिहेसु संणिक्खि- क्षिप्तानि तिष्ठन्ति, तानि वा दृष्ट्वा ताई चिट्ठति, ताई वा पासित्ता तत्प्रथमतायां स्कभनीयात्... तप्पडमताए खंभाएज्जा। इच्छेतेहि पंचहि ठाहिं ओहि- इत्येतैः पञ्चभिः स्थानः अवधिदर्शनं दंसणे समुपज्जिउकामे तप्पढ- समुत्पत्तुकाम तत्प्रथमतायां मयाए खंभाएज्जा। स्कभ्नीयात् । २. कुंथु जैसे छोटे-छोटे जीवों से पृथ्वी को आकीर्ण देखकर वह अपने प्रारम्भिक क्षणों में ही विचलित हो जाता है। ३. बहुत बड़े महोरगों-सर्पो को देखकर वह अपने प्रारम्भिक क्षणों में ही विचलित हो जाता है। ४. महद्धिक, महाद्युतिक, महानुभाग, महान् यशस्वी, महाबल तथा महासौख्यवाले देवों को देखकर वह अपने प्रारम्भिक क्षणों में ही विचलित हो जाता है। ५. नगरों में बड़े-बड़े खजानों को देख कर, जिनके स्वामी मर चुके हैं, जिनके मार्ग प्रायः नष्ट हो चुके हैं, जिनके नाम और संकेत विस्मृतप्राय हो चुके हैं, जिनके स्वामी उच्छिन्न हो चुके हैं, जिनके मार्ग उच्छिन्न हो चुके हैं, जिनके नाम और संकेत उच्छिन्न हो चुके हैं, जो ग्राम, आकर, नगर, खेट, कर्बट, मडंब. दोशमुख, पत्तन, आश्रम, संबाह, सन्निवेश आदि में तथा शृङ्गाटकों, तिराहों', चौकों'', चौराहों", देवकूलों, राजमार्गों, गलियों", नालियों५, श्मशानों, शून्यगृहों, गिरिकन्दराओं, शान्तिगृहों, शैलगृहों, उपस्थानगृहों और भवन-गृहों में दबे हुए हैं, उन्हें देखकर वह अपने प्रारम्भिक क्षणों में ही विचलित हो जाता है। इन पांच स्थानों से तत्काल उत्पन्न होताहोता अवधि-दर्शन अपने प्रारम्भिक क्षणों में ही विचलित हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy