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ठाणं (स्थान)
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स्थान : ४ टि० १०१-१०४
तृतीय प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं उद्दिष्ट संस्तार यदि शय्यातर के घर में होगा तो ग्रहण करूंगा, अन्यथा नहीं ।
चतुर्थ प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं उद्दिष्ट संस्तार यदि यथासंसृत [ सहज ही बिछा हुआ ] मिलेगा, उसको ग्रहण करूंगा, दूसरा नहीं ।
१०१ वस्त्र प्रतिमाएं ( सू० ४८८ )
वस्त्र प्रतिमा का अर्थ है-वस्त्र विषयक प्रतिज्ञा ।
प्रथम प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं उद्दिष्ट [ नामोल्लेखपूर्वक संकल्पित ] वस्त्र की ही याचना करूंगा ।
द्वितीय प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं दृष्ट वस्त्रों की ही याचना करूंगा ।
तृतीय प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं शय्यातर के द्वारा भुक्त वस्त्रों की ही याचना
करूंगा |
प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं छोड़ने योग्य वस्त्रों की ही याचना करूंगा ।'
१०२ पात्र प्रतिमाएं (सूत्र ४८६ ) :
पात्र प्रतिमा का अर्थ है - पात्र विषयक प्रतिज्ञा ।
प्रथम प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं उद्दिष्ट पात्र की याचना करूंगा। द्वितीय प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं दृष्ट पान की याचना करूंगा । तृतीय प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं काम में लिए हुए पात्र की याचना करूंगा। चतुर्थ प्रतिमा को पालन करने वाला मुनि निश्चय करता है कि मैं छोड़ने योग्य पात्र की याचना करूंगा।
१०३-१०४ (सू० ४६१, ४६२) :
शरीर पांच हैं -औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कर्मण । भिन्न-भिन्न अपेक्षाओं से इनके अनेक वर्गीकरण
होते हैं।
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स्थूलता और सूक्ष्मता की दृष्टि से ---
स्थूल औदारिक
वैक्रिय
आहारक
कारण और कार्य की दृष्टि से ----
कारण कार्मण
१. क - स्थानांगवृत्ति, पत्र २३६ ।
ख - आयारचूला २०६२-६६ ।
२. क — स्थानांगवृत्ति पत्र २३६ ।
सूक्ष्म
तंजस
कार्मण
कार्य
औदारिक
वैक्रिय
आहारक
तैजस
ख - आयारचूला ५।१६-२० । ३. क - स्थानांगवृत्ति, पत्र २३९ ।
ख - आधारचूला - ६ । १५-१६ ।
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