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________________ ठाणं (स्थान) ५१५ स्थान ४ :टि०८६-६० ८६ (सू० ३६४) राशि के दो भेद होते हैं.....युग्म और ओज । समसंख्या (२,४,६,८) को युग्म और विषमसंख्या (१,३,५,७,६) को ओज कहा जाता है। युग्म के दो भेद हैं--कृतयुग्म और द्वापरयुग्म। ओज के दो भेद हैं-त्योज और कल्योज। इनकी व्याख्या इस प्रकार है कृतयुग्म-राशि में से चार-चार घटाने पर शेष चार रहे, जैसे----८,१२,१६,२०.....। द्वापरयुग्म–राशि में से चार-चार घटाने पर शेष दो रहे, जैसे-६,१०,१४,१८..."। त्योज-राशि में से चार-चार घटाने पर शेष तीन रहे, जैसे-७,११,१५,१६....। कल्योज-राशि में से चार-चार घटाने पर एक शेष रहे, जैसे---५,६,१३,१७,२१.....। ८७ (सू० ३८६) आकुलि का पुष्प सुन्दर होता है, किन्तु सुरभियुक्त नहीं होता । बकुल का पुष्प सुरभियुक्त होता है, किन्तु सुन्दर नहीं होता। जूही का पुष्प सुन्दर भी होता है और सुरभियुक्त भी होता है। बदरी का पुष्प न सुन्दर ही होता है और न सुरभियुक्त ही होता है।' ८८ (सू० ४११) प्रस्तुत सूत्र के दृष्टान्त में माधुर्य की तरतमता बतलाई गई है। आंवला ईषत्मधुर, द्राक्षा बहुमधुर, दुग्ध बहुतरमधुर और शर्करा बहुतममधुर होती है। आचार्यों के उपशम आदि प्रशान्त गुणों की माधुर्य के साथ तुलना की गई है। माधुर्य की भांति उपशम आदि में भी तरतमता होती है। किसी का उपशम (शांति) ईषत्, किसी का बहु, किसी का बहुतर और किसी का बहुतम होता है ।' ८६ (सू० ४१२) १. स्वार्थी या आलसी मनुष्य अपनी सेवा करते हैं, दूसरों की नहीं करते। २. स्वार्थ-निरपेक्ष मनुष्य दूसरों की सेवा करते हैं, अपनी नहीं करते। ३. संतुलित मनोवृत्ति वाले मनुष्य अपनी सेवा भी करते हैं और दूसरों की भी करते हैं। ४. आलसी, उदासीन, निरपेक्ष, निराश मा अवधूत मनोवृत्ति वाले मनुष्य न अपनी सेवा करते हैं और न दूसरों की करते हैं। ६० (सू० ४१३) १. निस्पृह मनुष्य दूसरों को सेवा देते हैं, किन्तु लेते नहीं। २. रुग्ण, वृद्ध, अशक्त या विशिष्ट साधना, शोध अथवा प्रवृत्ति में संलग्न मनुष्य दूसरों की सेवा लेते हैं किन्तु देते नहीं। १. क-स्थानांगवृत्ति, पत्र २२६ : गणितपरिभाषायां समराशि युग्ममच्यते विषमस्तु ओज इति । ख-कोटलीयार्थशास्त्र, २ अधिकरण, ३ अध्याय, २१ प्रकरण पृष्ठ ५८ । २. स्थानांगवृत्ति, पत्र २२६ । ३. स्थानांगवृत्ति, पन्न २२० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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