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________________ ठाणं (स्थान) १३ स्थान १ : सूत्र १९४-२०४ १६४. एगा तेउलेसाणं वग्गणा। एका तेजोलेश्यानां वर्गणा। १६४. तेजोलेश्या वाले जीवों की वर्गणा एक है। १६५. पद्मलेश्या वाले जीवों की वर्गणा १६५. एगा पम्ह[म्म ? ]लेसाणं एका पद्मलेश्यानां वर्गणा। वग्गणा। १६६. एगा सुक्कलेसाणं वग्गणा। एका शुक्ललेश्यानां वर्गणा। १६६. शुक्ललेश्या" वाले जीवों की वर्गणा १६७. एगा कण्हलेसाणं णेरइयाणं एका कृष्णलेश्यानां नैरयिकाणां १६७. कृष्णलेश्या वाले नारकीय जीवों की वग्गणा। वर्गणा। वर्गणा एक है। १९८. 'एगा णीललेसाणं णेरइयाणं एका नीललेश्यानां नैरयिकाणां वर्गणा। १९८. नीललेश्या वाले नारकीय जीवों की वरगणा। वर्गणा एक है। १६६. एगा काउलेसाणं णेरइयाणं एका कापोतलेश्यानां नैरयिकाणां १६९. कापोतलेश्या वाले नारकीय जीवों की वग्गणा। वर्गणा। वर्गणा एक है। २००. एवं-जस्स जइ लेसाओ- एवम-यस्य यति लेश्या: - २००. इसी प्रकार जिनमें जितनी लेश्याएं होती भवणवइ-वाणमंतर-पुढवि-आउ- भवनपति-वानमन्तर-पृथिव्यब्-वनस्पति- हैं (उनके अनुपात से उनकी एक-एक वणस्सइकाइयाणं च चत्तारि कायिकानां च चतसः लेश्याः, तेजोवायु- वर्गणा है)। लेसाओ, तेउ-वाउ-बेइंदिय- द्वीन्द्रिय-त्रीन्द्रिय-चतुरिन्द्रियाणां तिस: भवनपति, वानमंतर, पृथ्वी, जल और तेइंदिय-चरिदियाणं तिण्णि लेश्याः, पञ्चेन्द्रिय-तिर्यग्योनिकानां वनस्पतिकायिक जीवों में प्रथम चार लेसाओ, पंचिदिय-तिरिक्ख- मनुष्याणां षडलेश्याः, ज्योतिष्काणां लेश्याएं होती हैं। अग्नि, वायु, द्वीन्द्रिय, जोणियाणं मणुस्साणं छल्लेसाओ, एका तेजोलेश्याः, वैमानिकानां तिसः वीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवों में प्रथम जोतिसयाणं एगा तेउलेसा, उपरितनलेश्याः । तीन लेश्याएं होती हैं । पञ्चेन्द्रियवेमाणियाणं तिण्णि तिर्यग्योनिज और मनुष्यों के छहों उवरिमलेसाओ। लेश्याएं होती हैं। ज्योतिष्क देवों के एक तेजोलेश्या होती है। वैमानिक देवों के अन्तिम तीन लेश्याएं होती हैं। २०१. एगा कण्हलेसाणं भवसिद्धियाणं एका कृष्णलेश्यानां भवसिद्धिकानां २०१. कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक जीवों की वग्गणा। वर्गणा। वर्गणा एक है। २०२. एगा कण्हलेसाणं अभवसिद्धियाणं एका कृष्णलेश्यानां अभवसिद्धिकानां २०२. कृष्णलेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों की वग्गणा। वर्गणा। वर्गणा एक है। २०३. एवं-छसुवि लेसासु दो दो पयाणि एवम्-षट्ष्वपि लेश्यासु द्वौ द्वौ पदौ २०३. इसी प्रकार छहों (कृष्ण, नील, कापोत, भाणियवाणि। भणितव्यौ। तेजः, पद्म और शुक्ल) लेश्या वाले भवसिद्धिक और अभवसिद्धिक जीवों की वर्गणा एक-एक है। २०४. एगा कण्हलेसाणं भवसिद्धियाणं एका कृष्णलेश्यानां भवसिद्धिकानां २०४. कृष्णलेश्या वाले भवसिद्धिक नारकीय रइयाणं वग्गणा। नैरयिकाणां वर्गणा। जीवों की वर्गणा एक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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