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________________ ठाणं (स्थान) स्थान १ : सूत्र १०६-१३८ अट्ठारसपाव-वेरमण-पदं १०६. एगे पाणाइवाय-वेरमणे। ११०. 'एगे मसावाय-वेरमणे। १११. एगे अदिण्णादाण-वेरमणे। ११२. एगे मेहुण-वेरमणे। ११३. एगे परिग्गह-वेरमणे । ११४. एगे कोह-विवेगे। ११५. 'एगे माण-विवेगे। ११६. एगे माया-विवेगे। ११७. एगे लोभ-विवेगे। ११८. एगे पेज्ज-विवेगे। ११६. एगे दोस-विवेगे। १२०. एगे कलह-विवेगे। १२१. एगे अब्भक्खाण-विवेगे। १२२. एगे पेसुण्ण-विवेगे। १२३. एगे परपरिवाय-विवेगे। १२४. एगे अरतिरति-विवेगे। १२५. एगे मायामोस-विवेगे। १२६. एगे मिच्छादसणसल्ल-विवेगे। अष्टादशपाप-विरमण-पदम् एक प्राणातिपात-विरमणम् । एक मृषावाद-विरमणम् । एकं अदत्तादान-विरमणम् । एक मैथुन-विरमणम्। एकं परिग्रह-विरमणम् । एकः क्रोध-विवेकः । एको मान-विवेकः । एको माया-विवेकः । एको लोभ-विवेकः । एकः प्रेयो-विवेकः । एको दोष-विवेकः। एकः कलह-विवेकः । एकोऽभ्याख्यान-विवेकः । एकः पैशुन्य-विवेकः। एक: परपरिवाद-विवेकः । एकोऽरतिरति-विवेकः। एको मायामृषा-विवेकः । एको मिथ्यादर्शनशल्य-विवेकः । अष्टादशपाप-विरमण-पद १०६. प्राणातिपात-विरमण एक है। ११०. मृषावाद-विरमण एक है। १११. अदत्तादान-विरमण एक है। ११२. मैथुन-विरमण एक है। ११३. परिग्रह-विरमण एक है। ११४. क्रोध-विवेक एक है। ११५. मान-विवेक एक है। ११६. माया-विवेक एक है। ११७. लोभ-विवेक एक है। ११८. प्रेम-विवेक एक है। ११६. द्वेष-विवेक एक है। १२०. कलह-विवेक एक है। १२१. अभ्याख्यान-विवेक एक है। १२२. पैशुन्य-विवेक एक है। १२३. परपरिवाद-विवेक एक है। १२४. अरति-रति-विवेक एक है। १२५. मायामृषा-विवेक एक है। १२६. मिथ्यादर्शनशल्य-विवेक एक है। ओसप्पिणी-उस्सप्पिणी-पदं १२७. एगा ओसप्पिणी। १२८. एगा सुसम-सुसमा। १२६. 'एगा सुसमा। . १३०. एगा सुसम-दूसमा। १३१. एगा दूसम-सुसमा। १३२. एगा दूसमा । १३३. एगा दूसम-दूसमा। १३४. एगा उस्स प्पिणी। १३५. एगा दुस्सम-दुस्समा। १३६. 'एगा दुस्समा। १३७. एगा दुस्सम-सुसमा। १३८. एगा सुसम-दुस्समा। अवपिणी-उत्सर्पिणी-पदम् एका अवसप्पिणी। एका सुषम-सुषमा। एका सुषमा। एका सुषम-दुष्षमा। एका दुष्षम-सुषमा। एका दुष्षमा। एका दुष्षम-दुष्षमा। एका उत्सर्पिणी। एका दुष्षम-दुष्षमा। एका दुष्षमा। एका दुष्षम-सुषमा। एका सुषम-दुष्षमा। अवसर्पिणी-उत्सपिणी-पद १२७. अवसर्पिणी एक है। १२८. सुषमसुषमा एक है। १२६. सुषमा एक है। १३०. सुषमदुषमा एक है। १३१. दुषमसुषमा एक है। १३२. दुषमा एक है। १३३. दुषमदुषमा एक है। १३४. उत्सपिणी एक है। १३५. दुषमदुषमा एक है। १३६. दुषमा एक है। १३७. दुषमासुषमा एक है। १३८. सुषमदुषमा एक है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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