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ठाणं (स्थान)
४५४
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि,
पण्णत्ता, तं जहा
तद्यथा—
असिपत्तसमाणे, करपत्तसमाणे, खुरपत्तसमाणे, कलंबचीरिया पत्तसमाणे ।
कड-पदं
५४६. चत्तारि कडा पण्णत्ता, तं जहासुंबकडे, विदलकडे, चम्मकडे, कंबलकडे ।
असिपत्रसमानः, करपत्रसमानः, क्षुरपत्रसमानः, कदम्बचीरिकापत्रसमानः ।
तद्यथा
एवामेव चत्तारि पुरिसजाया एवमेव चत्वारि पुरुषजातानि पण्णत्ता, तं जहा सुबकडसमाणे, "विदलकडसमाणे, सुम्बकटसमानः, विदलकटसमानः, चम्मकडसमाणे, कंबलकडसमाणे । चर्मकटसमानः, कम्बलकटसमानः ।
५५१. चउव्विहा पक्खी पण्णत्ता, तं जहाचम्मपक्खी, लोमपक्खी, समुग्गपक्खी, विततपक्खी।
कट-पदम्
चत्वारः कटाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथासुम्बकट: विदलकटः, चर्मकटः,
कम्बलकटः ।
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चतुर्विधाः पक्षिणः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा— चर्मपक्षिणः, लोमपक्षिणः, समुद्गपक्षिणः, विततपक्षिणः ।
स्थान ३ : सूत्र ५४६-५५१
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं
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१. असिपत्र के समान तुरन्त स्नेह-पाश को छेद देने वाला, २ . करपत्र के समान ---- बार-बार के अभ्यास से स्नेह - पाश को छेद देने वाला, ३. क्षुरपत्र के समानथोड़े स्नेह-पाश को छेद देने वाला, ४. कदम्ब चीरिका पत्र के समान स्नेह छेद की इच्छा रखने वाला " ।
तिरिय-पदं
तिर्यग्-पदम्
तिर्यग् - पद
५५०. चउव्विहा चउप्पया पण्णत्ता, तं चतुर्विधाः चतुष्पदाः प्रज्ञप्ताः, ५५०. चतुष्पद -- जानवर चार प्रकार के होते हैं
१. एक खुर वाले घोड़े, गधे आदि,
जहा - एगखुरा, सणष्कया ।
तद्यथा— दुखुरा, गंडीपदा, एकखुराः द्विखुराः गण्डिपदाः सनखपदाः ।
२. दो खुर वाले -- गाय, भैंस आदि, ३. गण्डीपद – स्वर्णकार की अहरन की तरह गोल पैर वाले हाथी, ऊंट आदि, ४. सनखपद नख सहित पैर वाले - सिंह, कुत्ते आदि ।
कट-पद
५४६. कट [ चटाई ] चार प्रकार के होते हैं
१. सुम्बकट --- घास से बना हुआ, २. विदलकट बाँस के टुकड़ों से बना हुआ, ३. चर्मकट - चमड़े से बना हुआ,
४. कम्बलकट ।
इसी प्रकार पुरुष भी चार प्रकार के होते हैं
१. सुम्बकट के समान – अल्प प्रतिबन्ध वाला, २ . विदलकट के समान, बहु प्रतिबन्ध वाला, ३. चर्मकट के समान, बहुतर प्रतिबन्ध वाला, ४. कम्बलकट के समान, बहुतम प्रतिबन्ध वाला ।
५५१. पक्षी चार प्रकार के होते हैं
१. चर्मपक्षी - जिनके पंख चमड़े के होते है, चमगादड़ आदि, २. रोमपक्षी --- जिनके पंख रोऍदार होते हैं, हंस आदि, ३. समुद्गपक्षी - जिनके पंख पेटी की तरह खुलते हैं और बन्द होते हैं, ४. विततपक्षी - जिनके पंख सदा खुले ही रहते हैं।
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