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________________ ४४० पुत्रमांसोपमः। ठाणं (स्थान) स्थान ४ : सूत्र ५११-५१४ ५११. तिरिक्खजोणियाणं चउम्विहे तिर्यगयोनिकानां चतुर्विधः आहारः ५११. तिर्यचों का आहार चार प्रकार का होता आहारे पण्णत्ते, तं जहाप्रज्ञप्तः, तद्यथा है.---१. कंकोपम---सुख भक्ष्य और सुजीर्ण, कंकोवमे, बिलोवमे, कङ्कोपमः, बिलोपमः, पाणमांसोपमः, २. विलोपम—जो चबाये बिना निगल पाणमंसोवमे, पुत्तमंसोवमे। लिया जाता है, ३. पाणमांसोपमचण्डाल के मांस की भान्ति घृणित, ४. पुवमांसोपम-पुत्र मांस की भांति दुःख भक्ष्य १३ ॥ ५१२. मणुस्साणं चउन्विहे आहारे पण्णत्ते, मनुष्याणां चतुर्विधः आहारः प्रज्ञप्तः, ५१२. मनुष्यों का आहार चार प्रकार का होता तं जहा तदयथा... असणे, पाणे, खाइमे, साइमे। अशनं, पानं, खाद्यं, स्वाद्यम्। १. अशन, २. पान, ३. खाद्य, ४.स्वाद्य । ५१३. देवाणं चउविहे आहारे पण्णत्ते, देवानां चतुर्विधः आहारः प्रज्ञप्तः, ५१३. देवताओं का आहार चार प्रकार का होता तं जहा तद्यथावण्णमंते, गंधमंते, वर्णवान्, गन्धवान्, रसवान् स्पर्शवान् ।। १. वर्णवान्, २. गंधवान्, ३. रसवान्, रसमंते, फासमते। ४. स्पर्शवान् । आसीविस-पदं आशीविष-पदम् आशीविष-पद ५१४. चत्तारि जातिआसीविसा पण्णत्ता, चत्वारः जात्याशीविषाः प्रज्ञप्ताः, ५१४. जाति-आशीविष चार होते हैंतं जहातद्यथा १. जाती-आशीविष वृश्चिक, २. जातीविच्छ्यजातिआसीविसे, वृश्चिकजात्याशीविषः, आशीविष मेंढक, ३. जाती-आशीविष मंडुक्कजातिआसीविसे, मण्डुकजात्याशीविषः, सर्प, ४. जाती-आशीविष मनुष्य । उरगजातिआसीविसे, उरगजात्याशीविषः, मणुस्सजातिआसीविसे। मनुष्यजात्याशीविषः । विच्छ्यजातिआसीविसस्स णं वृश्चिकजात्याशीविषस्य भगवन् ! भगवन् ! जाती-आशीविष वृश्चिक के भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते? कियान् विषयः प्रज्ञप्तः? विष का प्रभाव कितने क्षेत्र में होता है? पभू णं विच्छ्यजातिआसीविसे प्रभुः वृश्चिकजात्याशीविषः अर्धभरत- गौतम ! जाती-आशीविष वृश्चिक अपने अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोदि विसेणं प्रमाणमात्रां बोन्दि विषेण विषपरिणतां विष के प्रभाव से अर्धभरतप्रमाण शरीर को (लगभग दो सौ तिरेसठ योजन) विसपरिणयं विसट्टमाणि करित्तए। विकसन्तीं कर्तुम् । विषयः तस्य विषपरिणत तथा विदलित कर सकता विसए से विसट्ठताए, णो चेव णं विषार्थतायाः, नो चैव संप्राप्त्या अकार्षुः है। यह उसकी विषात्मक क्षमता है, पर इतने क्षेत्र में उसने अपनी क्षमता का न संपत्तीए करेंसु वा करेंति वा वा कुर्वन्ति वा करिष्यन्ति वा। तो कभी उपयोग किया है, न करता है करिस्संति वा। और न कभी करेगा। मंडुक्कजातिआसीविसस्स 'णं मण्डुकजात्याशीविषस्य भगवन्। कियान् भगवन् ! जाती-आशीविष मंडक के विष भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?° विषयः प्रज्ञप्तः ? का प्रभाव कितने क्षेत्र में होता है ? पभू णं मंडुक्कजातिआसीविसे प्रभुः मण्डु कजात्याशीविषः भरतप्रमाण- गौतम ! जाती-आशीविष मंडुक अपने भरहप्पमाणमेत्तं बोंदि विसेणं मात्रां बोन्दि विषेण विषपरिणतां विष के प्रभाव से भरतप्रमाण शरीर को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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