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ठाणं (स्थान)
धम्म-पदं
४१६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं
जहा—
रूवं णाम मेगे जहति णो धम्मं, धम्मं णामगे जहति णो रूवं, एगे रूवंपि जहति, धम्मंपि, एगे जो रूवं जहति णो धम्मं ।
जहाधम्मं णाममे जहति णो गणसंठिति,
गणसंठिति णाममेगे जहति, णो धम्मं, एगे धम्मंवि जहति, गणसं ठितिवि, एगे णो धम्मं जहति णो गणसं ठिति ।
१. कुछ पुरुष देश का त्याग कर देते हैं, धर्म का त्याग नहीं करते, २. कुछ पुरुष धर्म का त्याग कर देते हैं, वेश का त्याग नहीं करते, ३. कुछ पुरुष वेश कभी त्याग कर देते हैं और धर्म का भी त्याग कर देते हैं, ४. कुछ पुरुष न वेश का त्याग करते हैं और न धर्म का त्याग करते हैं ।
४२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४२०. पुरुष चार प्रकार के होते हैं---
९. कुछ पुरुष धर्म का त्याग कर देते हैं, गण-संस्थिति [गण-मर्यादा] का त्याग नहीं करते, २. कुछ पुरुष गण संस्थिति का त्याग कर देते हैं, धर्म का त्याग नहीं करते, ३. कुछ पुरुष धर्म का भी त्याग कर देते हैं और गण संस्थिति का भी त्याग करते हैं, ४. कुछ पुरुष न धर्म का त्याग करते हैं और न गण-संस्थिति का त्याग करते हैं ।
४२१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि ४२१. पुरुष चार प्रकार के होते हैं
१. कुछ पुरुष प्रियधर्मा होते हैं, दृढधन नहीं होते, २. कुछ पुरुष दृदुधर्मा होते हैं, प्रियधर्मा नहीं होते, ३. कुछ पुरुष प्रिय धर्मा भी होते हैं और दृढ़वर्मा भी होते हैं, ४. कुछ पुरुष न प्रियधर्मा होते हैं और न दृढधर्मा होते हैं" ।
जहा -
furerमे णाममेगे, णो दढधम्मे, दधम्मे णाममेगे, जो पियधम्मे, एगे पियधम्मेवि, दढधम्मेवि, एगे जो पियधम्म, णो दढधम्मे ।
आयरिय-पदं
४२२. चत्तारि आयरिया पण्णत्ता, तं जहापव्वावणायरिए णाममेगे, tagावणारिए,
४०८
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धर्म-पद
धर्म-पदम्
चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि ४१६ पुरुष चार प्रकार के होते हैं
तद्यथा—
रूपं नामैक: जहाति, नो धर्म, धर्मं नामकः जहाति, नो रूपं, एक: रूपमपि जहाति, धर्ममपि, एक: नो रूपं जहाति, नो धर्मम् ।
तद्यथा-धर्म नामकः जहाति, नो गणसंस्थिति, गणसंस्थिति नामकः जहाति, नो धर्म, एक: धर्ममपि जहाति, गणसंस्थितिमपि, एक: नो धर्मं जहाति, नो गणसंस्थितिम् ।
स्थान ४ : सूत्र ४१६-४२२
तद्यथा---
प्रियधर्मा नामैकः, नो दृढधर्मा, धर्मा नामैकः, नो प्रियधर्मा, एक: प्रियधर्मापि दृढधर्मापि, एक: नो प्रियधर्मा, नो दृढधर्मा ।
आचार्य-पदम्
आचार्य-पद
चत्वारः आचार्याः प्रज्ञप्ताः तद्यथा— ४२२. आचार्य चार प्रकार के होते हैंप्रवाजनाचार्यः नामैकः,
नो
उपस्थापनाचार्यः,
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१. कुछ आचार्य प्रव्रज्या देने वाले होते
हैं, किन्तु उपस्थापना [ महाव्रतों में आरोपित ] करने वाले नहीं होते,
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