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________________ ४०६ ठाणं (स्थान) एवामेव चत्तारि आयरिया एवमेव चत्वारः आचार्याः प्रज्ञप्ताः, पण्णत्ता, तं जहा तद्यथाआमलगमहुरफलसमाणे, आमलकमधुरफलसमानः, 'मुद्दियामहुरफलसमाणे, मृद्वीकामधुरफलसमान:, खीरमहुरफलसमाणे, क्षीरमधुरफलसमानः, खंडमहुरफलसमाणे। खण्डमधुरफलसमानः । स्थान ४ : सूत्र ४१२-४१४ इसी प्रकार आचार्य भी चार प्रकार के होते हैं१. आमलक-मधुर फल के समान, २. द्राक्षा-मधुर फल के समान, ३. दूध-मधुर फल के समान, ४. शर्करा-मधुर फल के समान"। वेयावच्च-पदं वैयावृत्त्य-पदम् वैयावृत्त्य-पद ४१२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४१२. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष अपनी सेवा करते हैं, दूसरों आतवेयावच्चकरे णाममेगे, आत्मवैयावृत्त्यकरः नामकः, की नहीं करते, २. कुछ पुरुष दूसरों की णो परवेयावच्चकरे, नो परवैयावृत्त्यकरः, सेवा करते हैं, अपनी नहीं करते, ३. कुछ परवेयावच्चकरे णाममेगे, परवैयावृत्त्यकरः नामैकः, पुरुष अपनी सेवा भी करते हैं और दूसरों णो आतवेयावच्चकरे, नो आत्मवैयावृत्त्यकरः, की भी करते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपनी एगे आतवेयावच्चकरेवि, एक: आत्मवैयावृत्त्यकरोऽपि, सेवा करते हैं और न दूसरों की करते परवेयावच्चकरेवि, परवैयावृत्त्यकरोऽपि, एगे णो आतवेयावच्चकरे, एक: नो आत्मवैयावृत्त्यकरः, णो परवेयावच्चकरे। नो परवैयावृत्त्यकरः। ४१३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४१३. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष दूसरों को सेवा देते हैं, लेते करेति णाममेगे वेयावच्चं, करोति नामैकः वैयावृत्त्यं, नो प्रतीच्छति, नहीं, २. कुछ पुरुष दूसरों को सेवा नहीं णो पडिच्छइ, प्रतीच्छति नामैक: वैयावृत्त्यं, देते, लेते हैं, ३. कुछ पुरुष दूसरों को सेवा पडिच्छइ णाममेगे वेयावच्चं, नो करोति, देते भी हैं और लेते भी हैं, ४. कुछ पुरुष णो करेति, एकः करोत्यपि वैयावृत्त्यं, प्रतीच्छत्यपि, न दूसरों को सेवा देते हैं, और न लेते एगे करेति विवेयावच्चं, पडिच्छइवि, एकः नो करोत्यपि वैयावृत्त्यं, एगे णो करेति वेयावच्चं, नो प्रतीच्छति। णो पडिच्छइ। अट्ठ-माण-पदं अर्थ-मान-पदम् अर्थ-मान-पद ४१४. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ४१४. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष अर्थकर [कार्यकर्ता] होते अट्टकरे णाममेगे, णो माणकरे, हैं, अभिमानी नहीं होते, २. कुछ पुरुष अर्थकरः नामैकः, नो मानकरः, अभिमानी होते हैं, अर्थकर नहीं होते, माणकरे णाममेगे, णो अट्टकरे, मानकरः नामैकः, नो अर्थकरः, ३. कुछ पुरुष अर्थकर भी होते हैं और एगे अटुकरेवि, माणकरेवि, एकः अर्थकरोऽपि, मानकरोऽपि, अभिमानी भी होते हैं,४. कुछ पुरुष न अर्थएगे णो अट्टकरे, णो माणकरे। एकः नो अर्थकरः, नो मानकरः । कर होते हैं और न अभिमानी होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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