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________________ आमुख स्थानांग संख्या-निबद्ध आगम है। इसमें समग्र प्रतिपाद्य का समावेश एक से दस तक की संख्या में हुआ है। इसी आधार पर इसके दस अध्ययन हैं। प्रथम अध्ययन में एक से सम्बन्धित विषय प्रतिपादित हैं। प्रतिपादन और नयदृष्टि एक और अनेक सापेक्ष हैं। इनकी विचारणा नयदृष्टि से की जाती है। संग्रहनय अभेददृष्टि है। उसके द्वारा जब हम वस्तुतत्त्व का विचार करते हैं, तब भेद अभेद से आवृत हो जाता है । व्यवहारनय भेददृष्टि है। उसके द्वारा वस्तुतत्त्व का विचार करने पर अभेद भेद से आवृत हो जाता है। प्रस्तुत अध्ययन में वस्तुतत्त्व का संग्रहनय की दृष्टि से विचार किया गया है। तीसरे अध्ययन में दण्ड के तीन प्रकार बतलाए गए हैं और प्रस्तुत अध्ययन के अनुसार दण्ड एक है। ये दोनों सूत्र परस्पर विरोधी नहीं हैं, किन्तु सापेक्ष दृष्टि से प्रतिपादित हैं। आत्मा एक है। यह एकत्व द्रव्य की दृष्टि से है । जम्बूद्वीप एक है। यह एकत्व क्षेत्र की दृष्टि से है। एक समय में एक ही मन होता है। यह काल-सापेक्ष एकत्व का प्रतिपादन है। एक समय में मन की दो प्रवृत्तियां नहीं होती, इसलिए यह एकत्व काल की दृष्टि से है । शब्द एक है। यह एकत्व भाव (पर्याय, अवस्था-भेद) की दृष्टि से है। शब्द पुद्गल का एक पर्याय है। प्रस्तुत अध्ययन में द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-इन चारों दृष्टियों से वस्तुतत्त्व का विमर्श किया गया है। विषय-वस्तु प्रस्तुत अध्ययन का मुख्य प्रतिपाद्य तत्त्ववाद (द्रव्यानुयोग) है। कुछ सूत्र आचार (चरण-करणानुयोग) से भी सम्बन्धित हैं। भगवान महावीर अकेले ही निर्वाण को प्राप्त हुए थे। इस ऐतिहासिक तथ्य को सूचना भी प्रस्तुत अध्ययन में मिलती है। इसमें कालचक्र और ज्योतिश्चक्र सम्बन्धी सूत्र भी उपलब्ध हैं। इस प्रकार प्रस्तुत अध्ययन में अनेक विषय संगृहीत हैं। रचना-शैली प्रस्तुत अध्ययन के अधिकांश सूत्र विशेषण और वर्णन रहित हैं। जम्बूद्वीप का लम्बा वर्णन किया है। वह समूचे अध्ययन के रचनाक्रम से भिन्न-सा प्रतीत होता है। किन्तु प्रस्तुत स्थान में वर्णन अनावश्यक नहीं है। अभयदेव सूरी ने उसकी सार्थकता बतलाते हुए लिखा है-"उक्त वर्णन वाला जम्बूद्वीप एक ही है। इस वर्णन से भिन्न आकार वाले जम्बूद्वीप बहुत हैं।"११ १.११३ २. १२ ३. १२४८ ४. ११४१ ५. ११५५ ६.११०६-१२६ ७. १२४३ ८. १११२७-१४० ६. १५२५१-२५३ १०. १।२४८ ११. स्थानांगवृत्ति,पन्न ३३: उत्तरविशेषणश्च जम्बूद्वीप एक एव, अन्यथा अनेकेपि ते सन्तीति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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