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ठाणं (स्थान)
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स्थान ४: सूत्र ३४०
संगहणी-गाहा संग्रहणी-गाथा
संग्रहणो-गाथा १. पुब्वे असोगवणं, १. पूर्वे अशोकवनं,
पूर्व में अशोकवन, दाहिणओ होइ सत्तवण्णवणं ।। दक्षिणे भवति सप्तपर्णवनम् । दक्षिण में सप्तपर्णवन, अवरे णं चंपगवणं, अपरे चम्पकवनं,
पश्चिम में चम्पकवन, चूतवणं उत्तरे पासे ॥ चूतवनमुत्तरे पावें ॥
उत्तर में आम्रवन। ४०. तत्थ णं जे से पुरथिमिल्ले अंजण- तत्र योसौ पौरस्त्यः अञ्जनकपर्वतः, ३४०. पूर्व के अञ्जन पर्वत की चारों दिशाओं
गपवते, तस्स णं चउद्दिसि चत्तारि तस्य चतुर्दिशि चतस्रः नन्दाः पुष्करिण्यः में चार नन्दा पुष्करिणियां हैंगंदाओ पुक्खरिणीओ पण्णताओ, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
१. नन्दोत्तरा, २. नन्दा, ३. आनन्दा, तं जहा
नन्दोत्तरा, नन्दा, आनन्दा, नन्दिवर्धना। ४. नन्दिवर्धना। णंदुत्तरा, णंदा, आणंदा, णंदिवद्धणा। ताओ णं णंदाओ पुक्खरिणीओ ताः नन्दाः पुष्करिण्यः एक योजनशत- वे नन्दा पुष्करिणियां एक लाख योजन एग जोयणसयसहस्सं आयामेणं, सहस्र आयामेन, पञ्चाशत् योजन- लम्बी, पचास हजार योजन चौड़ी और पण्णासं जोयणसहस्साई विक्खंभेणं, सहस्राणि विष्कम्भेण, दशयोजनशतानि हजार योजन गहरी हैं। दसजोयणसताइं उन्वेहेणं। उद्वेधेन। तासि णं पुक्खरिणीणं पत्तेयं- तासां पुष्करिणीनां प्रत्येक प्रत्येक उन नंदा पुष्करिणियों में से प्रत्येक के पत्तेयं चउद्दिसि चत्तारि तिसो- चतुर्दिशि चत्वारि त्रिसोपानप्रतिरूप- चार दिशाओं में चार त्रि-सोपान पंक्तियां वाणपडिरूवगा पण्णत्ता। काणि प्रज्ञप्तानि । तेसि णं तिसोवाणपडिरूवगाणं तेषां त्रिसोपानप्रतिरूपकाणां पूरत: उन त्रि-सोपान पंक्तियों के आगे चार पुरतो चत्तारि तोरणा पण्णत्ता, चत्वारि तोरणानि प्रज्ञप्तानि,
तोरण द्वार हैंतं जहातद्यथा
१. पूर्व में, २. दक्षिण में, ३. पश्चिम में, पुरत्थिमे णं, दाहिणे णं, पौरस्त्ये, दक्षिणे, पाश्चात्ये, उत्तरे। ४. उत्तर में। पच्चत्थिमे णं, उत्तरे थे। तासि णं पुबखरिणीणं पत्तेयं-पत्तेयं तासां पुष्करिणीनां प्रत्येक प्रत्येक उन नन्दा पुष्करिणियों में से प्रत्येक चउद्दिसि चत्तारि वणसंडा पण्णत्ता, चतुर्दिशि चत्वारि वनषण्डानि प्रज्ञप्तानि, के चारों दिशाओं में चार वनषण्ड हैंतं जहातद्यथा
पूर्व में, दक्षिण में, पश्चिम में, उत्तर में। पुरतो, दाहिणे णं, पुरतः, दक्षिणे, पाश्चात्ये, उत्तरे । पच्चत्थिमे णं, उत्तरे णं।
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