________________
ठाणं (स्थान)
३७४
स्थान ४ : सूत्र ३२८-३२६ घणदंतदीवे, लट्ठदंतदीवे, घनदन्तद्वीपः, लष्टदन्तद्वीपः,
उनमें चार प्रकार के मनुष्य रहते हैंगूढदंतदीवे, सुद्धदंतदीवे। गूढदन्तद्वीपः, शुद्धदन्तद्वीपः ।
१. घनदन्त--सघन दांत वाले, तेसु णं दीवेसु चउ विवहा मणुस्सा तेषु द्वीपेषु चतुर्विधा: मनुष्याः । २. लष्टदन्त-कमनीय दांत वाले, परिवसंति, तं जहापरिवसन्ति, तं जहा...
३. गूढदन्त-गूढ दांत वाले, घणदंता, लट्ठदंता, घनदन्ताः, लष्टदन्ताः, गढदन्ताः, ४. शुद्धदन्त-स्वच्छ दाँत वाले। गूढदंता, सुद्धदंता।
शुद्धदन्ताः । ३२८. जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरे ३२८. जम्बूद्वीप द्वीप के भन्दर पर्वत के उत्तर में
उत्तरे णं सिहरिस्स वासहरपव्वयस्स शिखरिणः वर्षधरपर्वतस्य चतसृषु । शिखरी वर्षधर पर्वत के चारों दिक्कोणों चउसु विदिसासु लवणसमुह तिण्णि- विदिशासु लवणसमुद्रं त्रीणि-त्रीणि की ओर लवण-समुद्र में तीन-तीन सौ तिण्णि जोयणसयाई ओगाहेत्ता, योजनशतानि अवगाह्य, अत्र चत्वारः योजन जाने पर चार अन्तर्वीप हैंएत्थ णं चत्तारि अंतरदीवा अन्तीपा: प्रज्ञप्ताः, तदयथा
१. एकोरुकद्वीप, २. आभाषिकद्वीप, पण्णत्ता, तं जहा-
एकोरुकट्टीपः, शेषं तथैव निरवशेष ३. वैषाणिकद्वीप, ४. लांगुलिकद्वीप। एगरुयदीवे, सेसं तहेव णिरवसेसं भणितव्यं यावत् शुद्धदन्ताः ।
जितने अन्तर्वीप और जितने प्रकार के भाणियव्वं जाव सुद्धदंता।
मनुष्य दक्षिण में हैं, उतने ही अन्तीप और उतने ही प्रकार के मनुष्य उत्तर में
महापायाल-पदं महापाताल-पदम्
महापाताल-पद ३२६. जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स बाहि- जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य बाह्यात् ३२६. जम्बूद्वीप द्वीप की बाहरी वेदिका के अंतिम
रिल्लाओ वेइयंताओ चउदिसि वेदिकान्तात् चतुर्दिशि लवणसमुद्र भाग से चारों दिक्कोणों की ओर लवण लवणसमुदं पंचाणउई जोयण- पञ्चनवति योजनसहस्राणि अवगाह्य, समुद्र में पिचानबे हजार योजन जाने पर सहस्साई ओगाहेत्ता, एत्थ णं अत्र महातिमहान्तः महालञ्जरसंस्थान- चार महापाताल हैं। वे बहुत विशाल हैं महतिमहालता महालंजरसंठाण- संस्थिताः चत्वारः महापातालाः और उनका आकार बड़े घड़े जैसा है। संठिता चत्तारि महापायाला प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
उनक नाम ये हैपण्णत्ता, तं जहा
वडवामुख:, केतुकः, यूपकः, ईश्वरः। १. वड़वामुख (पूर्व में), वलयामहे, केउए,
२. केतुक (दक्षिण में), जूवए, ईसरे।
३. यूपक (पश्चिम में),
४. ईश्वर (उत्तर में)। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया तत्र चत्वारः देवाः महद्धिका यावत् । उनमें पल्योपम की स्थिति वाले चार जाव पलिओवमद्वितीया परि- पल्योपमस्थितिकाः परिवसन्ति, महद्धिक देव रहते हैंवसंति, तं जहातद्यथा
१. काल, २. महाकाल, काले, महाकाले, कालः, महाकाल:,
३. वेलम्ब, ४.प्रभञ्जन। वेलंबे, पभंजणे।
बेलम्बः, प्रभञ्जनः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org