SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 396
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठाणं (स्थान) ३५५ स्थान ४ : सूत्र २६०-२६३ पुरिस-भेद-पदं पुरुष-भेद-पदम् पुरुष-भेद-पद २६०. चत्तारि पुरिसजाया पप्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, २६०. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहा. तद्यथा १. तथा-आदेश को मानकर चलने वाला, तहे णाममेगे, णोतहे णाममेगे, तथा नामैकः, नोतथो नामकः, २. नो तथ-अपनी स्वतन्त्र भावना से सोवत्थी णाममेगे, पधाणे णाममेगे। सौवस्तिको नामैक:, प्रधानो नामकः । चलने वाला, ३. सौवस्तिक-मंगल पाठक, ४. प्रधान-स्वामी। आय-पर-पदं आत्म-पर-पदम् आत्म-पर-पद २६१. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, २६१. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष अपना अंत करते हैं, किन्तु आयंतकरे णाममेगे, णो परंतकरे, आत्मान्तकरः नामैकः, नो परान्तकरः, दूसरे का अंत नहीं करते, २. कुछ पुरुष परंतकरे णाममेगे, णो आयंतकरे, परान्तकरः नामकः, नो आत्मान्तकरः, दूसरे का अंत करते हैं, किन्तु अपना अंत एगे आयंतकरेवि, परंतकरेवि, एकः आत्मान्तकरोऽपि, परान्तकरोऽपि, नहीं करते, ३. कुछ पुरुष अपना भी अंत एगे णो आयंतकरे, णो परंतकरे। एकः नो आत्मान्तकरः, नो परान्तकरः। करते हैं और दूसरे का भी अंत करते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपना अंत करते हैं और न किसी दूसरे का अंत करते हैं। २६२. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, २६२. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष अपने-आप को खिन्न करते हैं आयंतमे णाममेगे, णो परंतमे, आत्मतमः नामकः, नो परतमः, किन्तु दूसरे को खिन्न नहीं करते, २. कुछ परंतमे णाममेगे, णो आयंतमे, परतमः नामकः, नो आत्मतमः, पुरुष दूसरे को खिन्न करते हैं, किन्तु अपनेएगे आयंतमेवि, परंतमेवि, एकः आत्मतमोऽपि, परतमोऽपि, आप को खिन्न नहीं करते, ३. कुछ पुरुप एगे णो आयंतमे, णो परंतमे। एकः नो आत्मतमः, नो परतमः । अपने-आप को भी खिन्न करते हैं और दूसरे को भी खिन्न करते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपने को खिन्न करते हैं और न किसी दूसरे को खिन्न करते हैं। २६३. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, २६३. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष अपना दमन करते हैं, किन्तु आयंदमे णाममेगे, णो परंदमे, आत्मदमो नामैकः, नो परदमः, दूसरे का दमन नहीं करते, २. कुछ पुरुष परंदमे णाममेगे, णो आयंदमे, परदमो नामैकः, नो आत्मदमः, दूसरे का दमन करते हैं, किन्तु अपना दमन एगे आयंदमेवि, परंदमेवि, एक: आत्मदमोऽपि, परदमोऽपि, नहीं करते, ३. कुछ पुरुष अपना भी दमन एगे णो आयंदमे, णो परंदमे । एक: नो आत्मदमः, नो परदमः । करते हैं और दूसरे का भी दमन करते हैं, ४. कुछ पुरुष न अपना दमन करते हैं और न किसी दूसरे का दमन करते हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy