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________________ ३३२ ठाणं (स्थान) स्थान ४ : सूत्र १७२-१८१ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं तद्यथा-भुजगा, भुजगवती, महाकक्षा, २. भुजगवती, ३. कक्षा, ४. स्फूटा। जहा.-भुयगा, भुयगावती महा- स्फुटा । कच्छा , फुडा। १७२. एवं_महाकायस्सवि। एवम् —महाकायस्यापि । १७२. इसी प्रकार महाकाय के भी चार अन महिषियां होती हैं। १७३. गीतरतिस्स णं गंधव्यिदस्स गीतरतेः गन्धर्वेन्द्रस्य[गन्धर्वराजस्य? ] १७३. गन्धर्वेन्द्र, गन्धर्वराज, गीतरति के चार [गंधव्वरण्णो ?] चत्तारि अग्ग- चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- अग्रमहिषियाँ होती हैं-१. सुघोषा, महिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- सुघोषा, विमला, सुस्वरा, सरस्वती। २. विमला, ३. सुस्वरा, ४. सरस्वती। सुघोसा, विमला, सुस्सरा, सरस्सती। १७४. एवं...गीयजसस्सवि। एवम्—गीतयशसोऽपि । १७४. इसी प्रकार गीतयश के भी चार अग्र महिषियां होती हैं। १७५. चंदस्स णं जोतिसिंदस्स जोतिस- चन्द्रस्य ज्योतीरिन्द्रस्य ज्योतीराजस्य १७५. ज्योतिषेन्द्र, ज्योतिषराज चन्द्र के चार रण्णो चत्तारि अग्गमहिसीओ चतस्रः, अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः तद्यथा- अग्रमहिषियां होती हैं---१. चन्द्रप्रभा, पण्णत्ताओ, तं जहा—चंदप्पभा, चन्द्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अचिमालिनी, २. ज्योत्स्नाभा, ३. अचिमालिनी, दोसिणाभा, अच्चिमाली, पभंकरा। प्रभंकरा। ४. प्रभंकरा। १७६. एवं—सूरस्सवि, णवरं- एवम्-सूरस्यापि, नवरं-सूरप्रभा, १७६. इसी प्रकार ज्योतिपेन्द्र ज्योतिषराज सूर्य सूरप्पभा, दोसिणाभा, अच्चिमाली, ज्योत्स्नाभा, अचिमालिनी, प्रभंकरा। के चार अग्रमहिषियां होती हैंपभंकरा। १. सूर्यप्रभा, २. ज्योत्स्नाभा, ३. अचिमालिनी, प्रभंकरा। १७७. इंगालस्स णं महागहस्स चत्तारि अङ्गारस्य महाग्रहस्य चतस्रःअग्रमहिष्यः १७७. अंगार महाग्रह के चार अग्रमहिषियां अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-विजया, वैजयन्ती, होती हैं--१. विजया, २. वैजयंती, जहा—विजया, वेजयंती, जयंती, जयंती, अपराजिता। ३. जयंती, ४. अपराजिता। अपराजिया। १७८. एवं—सव्वेसि महगहाणं जाव एवम्-सर्वेषां महाग्रहाणां यावत् १७८. इसी प्रकार भावकेतु तक के सभी महाग्रहों भावकेउस्स। भावकेतोः । के चार-चार अग्रमहिषियां होती हैं। १७९. सक्कस्स णं देविदस्स देबरण्णो शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्य १७६. देवेन्द्र, देवराज, शक्र के लोकपाल महा सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्ग- महाराजस्य चतस्रः अनमहिष्यः प्रज्ञप्ता, राज सोम के चार अग्रमहिषियां होती हैंमहिसीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- तद्यथा १. रोहिणी, २. मदना, ३. चित्रा, रोहिणी, मयणा, चित्ता, सामा। रोहिणी, मदना, चित्रा, श्यामा। ४. सोमा । १८०. एवं. जाव वेसमणस्स। एवम्-यावत् वैश्रमणस्य। १८०. इसी प्रकार वैश्रमण तक के भी चार-चार अग्रमहिषियां होती हैं। १८१. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य सोमस्य १८१. देवेन्द्र, देवराज ईशान के लोकपाल महा सोमस्स महारण्णो चत्तारि अग्ग- महाराजस्य चतस्रः अग्रमहिष्यः प्रज्ञप्ताः, राज सोम के चार अग्रमहिषियां होती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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