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________________ ठाणं (स्थान) ३२४ स्थान ४ : सूत्र १२३-१२६ देव-पदम् देव-पदं देव-पद १२३. चउव्विहा वाउकुमारा पण्णता, चतुर्विधाः वायुकुमाराः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १२३. वायुकुमार चार प्रकार के होते हैंतं जहा कालः, महाकालः, वेलम्ब, प्रभजनः। १. काल, २. महाकाल, ३. वेलम्ब, काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे। ४. प्रभञ्जन। १२४. चउन्विहा देवा पण्णत्ता, तं जहा- चतुर्विधाः देवाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- १२४. देवता चार प्रकार के होते हैं भवणवासी, वाणमंतरा, जोइसिया, भवनवासिनः, वानमन्तराः, ज्योतिष्काः, १. भवनवासी, २. वानमन्तर, विमाणवासी। विमानवासिनः। ३. ज्योतिष्क, ४. विमानवासी। पमाण-पदं प्रमाण-पदम् १२५. चउन्विहे पमाणे पण्णत्ते, तं जहा- चतुर्विधं प्रमाणं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- दवप्पमाणे, खेत्तप्पमाणे, द्रव्यप्रमाणं, क्षेत्रप्रमाणं, कालप्रमाणं, कालप्पमाणे, भावप्पमाणे। भावप्रमाणं। प्रमाण-पद १२५. प्रमाण चार प्रकार का होता है १. द्रव्य-प्रमाण-द्रव्य की माप, २. क्षेत्र-प्रमाण-क्षेत्र की माप, ३. काल-प्रमाण-काल की माप, ४. भाव-प्रमाण-प्रत्यक्ष आदि प्रमाण। महत्तरिया-पदं महत्तरिका-पदम् महत्तरिका-पद १२६. चत्तारि दिसाकुमारिमहत्तरियाओ चतस्रः दिशाकुमारीमहत्तरिकाः प्रज्ञप्ताः, १२६. दिक्कुमारियों की महत्तरिकाएं चार हैंपण्णत्ताओ, तं जहातद्यथा १. रूपा, २. रूपांशा, ३. सुरूपा, रूया, रूयंसा, सुरुवा, रूयावती। रूपा, रूपांशा, सुरूपा, रूपवती। ४. रूपवती। १२७. चत्तारि विज्जुकुमारिमहत्तरि- चतस्रः विद्युत्कुमारीमहत्तरिकाः १२७. विद्युत्कुमारियों की महत्तरिकाएं चार याओ पण्णत्ताओ, तं जहा- प्रज्ञप्ताः, तद्यथा हैं-१.चित्रा, २.चित्रकनका, चित्ता, चित्तकणगा, सतेरा, चित्रा, चित्रकनका, शतेरा, सौदामिनी। ३. सतेरा, ४. सौदामिनी। सोतामणी। देव-ठिति-पदं देव-स्थिति-पदम् देव-स्थिति-पद १२८. सक्कस्स णं देविंदस्स देवरण्णो शत्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य मध्यम- १२८. देवेन्द्र देवराज शकेन्द्र के मध्यम-परिषद् मझिमपरिसाए देवाणं चत्तारि परिषदः देवानां चत्वारि पल्योपमानि के देवों की स्थिति चार पल्योपम की पलिओवमाई ठिती पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। होती है। १२६. ईसाणस्स णं देविदस्स देवरण्णो ईशानस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य मध्यम- १२६. देवेन्द्र देवराज ईशानेन्द्र के मध्यम-परिषद् मज्झिमपरिसाए देवीणं चत्तारि परिषदः देवीनां चत्वारि पल्योपमानि की देवियों की स्थिति चार पल्योपम की पलिओवमाइं ठिती पण्णत्ता। स्थितिः प्रज्ञप्ता। होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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