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________________ ठाणं (स्थान) ३२२ स्थान ४ : सूत्र ११६-१२२ एगे पुच्छइ वि, पुच्छावेइ वि, एकः पृच्छत्यपि, प्रच्छयत्यपि, हैं, और करवाते भी हैं, ४. कुछ पुरुष न एगे णो पुच्छइ, णो पुच्छावेइ। एकः नो पृच्छति, नो प्रच्छयति । प्रश्न करते हैं और न करवाते हैं। ११६. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, ११६. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष व्याकरण [उत्तरदाता] वागरेति णाममेगे, णो वागरावेति, व्याकरोति नामकः, नो व्याकारयति, करते हैं, किन्तु करवाते नहीं, २. कुछ वागरावेति णाममेगे, णो वागरेति, व्याकारयति नामैकः, नो व्याकरोति, पुरुष व्याकरण करवाते हैं, किन्तु करते एगे वागरेति वि, वागरावेति वि, एकः व्याकरोत्यपि, व्याकारयत्यपि, नहीं, ३. कुछ पुरुष व्याकरण करते भी हैं एगे णो वागरेति, णो वागरा- एकः नो व्याकरोति, नो व्याकारयति । और करवाते भी हैं, ४. कुछ पुरुष न वेति । व्याकरण करते हैं और न करवाते हैं। १२०. चत्तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं चत्वारि पुरुषजातानि प्रज्ञप्तानि, १२०. पुरुष चार प्रकार के होते हैंजहातद्यथा १. कुछ पुरुष सूत्रधर होते हैं, किन्तु अर्थसुत्तधरे गाममेगे, णो अत्थधरे, सूत्रधरः नामैकः, नो अर्थधरः, धर नहीं होते, २. कुछ पुरुष अर्थधर होते अत्थधरे णाममेगे, णो सुत्तधरे, अर्थधर: नामकः, नो सूत्रधरः, हैं, किन्तु सूत्रधर नहीं होते, ३. कुछ पुरुष एगे सुतधरे वि, अत्थधरे वि, एक: सूत्रधरोऽपि, अर्थधरोऽपि, सूत्रधर भी होते हैं और अर्थधर भी होते एगे णो सुत्तधरे, णो अत्थधरे। एकः नो सूत्रधरः, नो अर्थधरः । हैं, ४. कुछ पुरुष न सूत्रधर होते हैं और न अर्थधर होते हैं। लोगपाल-पदं लोकपाल-पदम् लोकपाल-पद १२१. चमरस्स णं असुरिंदस्स असुर- चमरस्य असुरेन्द्रस्य असुरकुमारराजस्य १२१. असुरेन्द्र, असुरकुमारराज चमर के चार कुमाररण्णो चत्तारि लोगपाला चत्वारः लोकपालाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-- लोकपाल होते हैं--१. सोम, २. यम, पण्णता, तं जहासोमः, यमः, वरुणः, वैश्रमणः । ३. वरुण, ४. वैश्रवण। सोमे, जमे, वरुणे, वेसमणे। १२२. एवं बलिस्सवि_सोमे, जमे, एवम्—बलेरपि—सोमः, यमः, वैश्रमणः, १२२. इसी प्रकार बलि आदि के भी चार-चार वेसमणे, वरुणे। . वरुणः। लोकपाल होते हैं बलि के-सोम, यम, वैश्रवण, वरुण । धरणस्स-कालपाले कोलपाले धरणस्य-कालपाल:, कोलपाल:, धरण के-कालपाल, कोलपाल, सेलसेलपाले संखपाले। शैलपालः, शङ्खपालः । पाल, शंखपाल। भूयाणंदस्स...कालपाले, कोलपाले, भूतानन्दस्य—कालपालः, कोलपालः, भूतानन्द के-कालपाल, कोलपाल, शंखसंखपाले, सेलपाले। शङ्खपालः, शैलपाल: । पाल, सेलपाल। वेणुदेवस्स-चित्ते, विचित्ते, चित्त- वेणुदेवस्य-चित्रः ,विचित्रः, चित्रपक्षः, वेणुदेव के-चित्र, विचित्र, चित्रपक्ष, पक्ख, विचित्तपक्खे। विचित्रपक्षः । विचित्रपक्ष। वेणुदालिस्स-चित्ते, विचित्ते, वेणुदाले:-चित्रः, विचित्रः, वेणुदालि के-चित्र, विचित्र, विचित्रविचित्तपक्खे, चित्तपक्खे। विचित्रपक्षः, चित्रपक्षः। पक्ष, चित्रपक्ष। हरिकंतस्स...पभे, सुप्पभे, पभकते, हरिकान्तस्य-प्रभः, सुप्रभः, प्रभकान्तः, हरिकान्त के-प्रभ, सुप्रभ, प्रभकान्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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