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________________ स्थान ४: सूत्र १ ठाणं (स्थान) २६० तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति, तस्य तथाप्रकारं तपो भवति, तहप्पगारा वेयणा भवति। तथाप्रकारा वेदना भवति । तहप्पगारे पुरिसजाते णिरुद्धणं तथाप्रकारः पुरुषजातः निरुद्धेन पर्यायेण परियाएणं सिझति 'बुज्झति सिध्यति बुद्ध्यते मुच्यते परिनिर्वाति मुच्चति परिणिव्वाति सव्व- सर्वदुःखानां अन्तं करोति, यथा-स दुक्खाणमंतं करेति, जहा- गजसुकुमालः अनगार:से गयसूमाले अणगारे द्वितीया अन्तक्रिया। दोच्चा अंतकिरिया। ३. अहावरा तच्चा अंतकिरिया- ३. अथापरा तृतीया अन्तक्रियामहाकम्मपच्चायाते यावि भवति। महाकर्मप्रत्यायातश्चापि भवति । स से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां अणगारियं पव्वइए 'संजमबहुले प्रव्रजितः संयमबहुलः संवरबहुलः संवरबहुले समाहिबहुले लूहे समाधिबहुलः रूक्षः तीरार्थी उपधानवान् तोरट्ठी उवहाणवं दुक्खक्खवे दुःखक्षपः तपस्वी। तबस्सी। वाला और तपस्वी होता है। उसके तथाप्रकार का धोर तप और तथाप्रकार की घोर वेदना होती है। इस श्रेणि का पुरुष अल्पकालीन मुनिपर्याय के द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वात होता है तथा सब दुखों का अन्त करता है। इसका उदाहरण गजसुकुमाल' है। यह दूसरी महाकर्म के साथ आए हुए तथा अल्पकालीन मुनिपर्याय वाले पुरुष की अन्तक्रिया है। ३. तीसरी अन्तक्रियाकोई पुरुष बहुत कर्मों के साथ मनुष्य-जन्म को प्राप्त होता है। वह मुण्ड होकर घर छोड़ अनगार रूप में प्रवजित होता है। वह संयम-बहुल, संवर-बहुल और समाधिबहुल होता है। वह रूखा, तीर का अर्थी, उपाधान करने वाला, दुःख को खपाने वाला और तपस्वी होता है। उसके तथाप्रकार का घोर तप और तथा प्रकार की घोर वेदना होती है। इस श्रेणिका पुरुष दीर्घकालीन मुनिपर्याय के द्वारा सिद्ध, बुद्ध, मुक्त और परिनिर्वात होता है तथा सब दुःखों का अन्त करता है। इसका उदाहरण चातुरन्त चक्रवर्ती सम्राट सनत्कुमार है। यह तीसरी महाकर्म के साथ आए हुए तथा दीर्घकालीन मुनिपर्याय वाले पुरुष की अन्तक्रिया है। ४. चौथी अन्तक्रियाकोई पुरुष अल्प कर्मों के साथ मनुष्य-जन्न को प्राप्त होता है। वह मुण्ड होकर घर छोड़ अनगार रूप में प्रजित होता है। वह संयम-बहुल, संवर-बहुल और समाधि तस्स णं तहप्पगारे तवे भवति, तस्य तथाप्रकारं तपो भवति, तहप्पगारा वेयणा भवति, तथाप्रकारा वेदना भवति। तहप्पगारे पुरिसजाते. दोहेणं तथाप्रकारः पुरुषजातः दीर्पण पर्यायेण परियाएणं सिझति' बुज्झति सिध्यति बुद्ध्यते मुच्यते परिनिर्वाति मुच्चति परिणिव्वाति सव्व- सर्वदुःखानां अन्तं करोति, यथा—स दुक्खाणमंतं करेति, जहा—से सनत्कुमारः राजा चातुरन्तचक्रवर्तीसणंकुमारे राया चाउरंतचक्कवट्टी- तृतीया अन्तक्रियातच्चा अंतकिरिया। ४. अहावरा चउत्था अंतकिरिया- ४. अथापरा चतुर्थी अन्तक्रियाअप्पकम्मपच्चायाते यावि भवति। अल्पकर्मप्रत्यायातश्चापि भवति। स । से णं मुंडे भवित्ता अगाराओ मुण्डो भूत्वा अगाराद् अनगारितां । अणगारियं° पव्वइए संजमबहुले प्रव्रजितः संयमबहुलः संवरबहुल: 'संवरबहुले समाहिबहुले लूहे समाधिवहुलः रूक्षः तीरार्थी उपधानवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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