________________
ठाणं (स्थान)
२८८
स्थान ४: आमुख
भगवान महावीर सत्य के साधक थे। उन्होंने जनता को सत्य की साधना दी, किन्तु बाहरी उपकरणों का अभिनिवेश नहीं दिया। प्रस्तुत स्थान में उनकी सत्य-संधित्सा के स्फुलिंग आज भी सुरक्षित हैं
(१) कुछ पुरुष वेश का त्याग कर देते हैं पर धर्म का त्याग नहीं करते। (२) कुछ पुरुष धर्म का त्याग कर देते हैं पर वेश का त्याग नहीं करते । (३) कुछ पुरुष धर्म का भी त्याग कर देते हैं और वेश का भी त्याग कर देते हैं। (४) कुछ पुरुष न धर्म का त्याग करते हैं और न वेश का ही त्याग करते हैं। (१) कुछ पुरुष धर्म का त्याग कर देते हैं पर गणसंस्थिति का त्याग नहीं करते। (२) कुछ पुरुष गणसंस्थिति का त्याग कर देते हैं पर धर्म का त्याग नहीं करते। (३) कुछ पुरुष धर्म का भी त्याग कर देते हैं और गणसंस्थिति का भी त्याग कर देते हैं। (४) कुछ पुरुष न धर्म का त्याग करते हैं और न गणसंस्थिति का ही त्याग करते हैं।'
साधारणतया सत्य का संबंध वाणी से माना जाता है, किन्तु व्यापक धारणा में उसका संबंध मन, वाणी और काय तीनों से होता है। प्रस्तुत स्थल में सत्य का ऐसा ही व्यापक स्वरूप मिलता है, जैसे
काया की ऋजुता भाषा को ऋजुता भावों की ऋजुता अविसंवादिता-कथनी और करनी की समानता।
प्रस्तुत स्थान में व्यावहारिक विषयों का भी यथार्य चित्रण मिलता है। इस जगत् में विभिन्न मनोवृत्ति वाले लोग होते हैं। यह विभिन्नता किसी युग-विशेष में ही नहीं होती, किन्तु प्रत्येक युग में मिलती है। सूत्रकार के शब्दों में पढ़िए
कुछ पुरुष आम्रप्रलम्वकोरक के समान होते हैं जो सेवा करने वाले का उचित समय में उचित उपकार करते हैं।
कुछ पुरुष तालप्रलम्वकोरक के समान होते हैं जो दीर्घकाल से सेवा करने वाले का उचित उपकार करते हैं परन्तु बड़ी कठिनाई से।
कुछ पुरुष वल्लीप्रलम्बकोरक के समान होते हैं जो सेवा करने वाले का सरलता से शीघ्र ही उपकार कर देते हैं।
कुछ पुरुष मेषविषाणकोरक के समान होते हैं जो सेवा करने वाले को केवल मधुर वचनों के द्वारा प्रसन्न रखना चाहते हैं, लेकिन उपकार कुछ नहीं करते।'
इस प्रकार विविध विषयों से परिपूर्ण यह स्थान वास्तव में ही ज्ञान-सम्पदा का अक्षय कोश है।
३.४१५५
१. ४।४१९, ४२० २. ४११०२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org