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स्थान ३ : टि० १०४-१०५
ठाणं (स्थान) १०४-मल्ली (सू० ५३२) :
देखें-७।७५ का टिप्पण।
१०५–सर्वाक्षरसन्निपाती (सू० ५३४) :
अक्षरों के सन्निपात [संयोग] अनन्त होते हैं । जिसका श्रुतज्ञान प्रकृष्ट हो जाता है, वह अक्षरों के सव सन्निपातों को जानने लग जाता है। इस प्रकार का ज्ञानी व्यक्ति सर्वाक्षरसन्निपाती कहलाता है। इसका तात्पर्य होता है सम्पूर्णवाङमय का ज्ञाता या सम्पूर्ण प्रतिपाद्य विषयों का परिज्ञाता।
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