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________________ ठाणं (स्थान) २४६ स्थान ३ : सूत्र ४८४-४६३ ४८४. असुरकुमाराणं तओ सरीरगा असुरकुमाराणां त्रीणि शरीरकाणि ४८४. असुरकुमारों के तीन शरीर होते हैं पण्णता, तं जहावेउदिवए, प्रशप्तानि, तद्यथा—वैक्रियं, तैजसं, १. वैक्रिय, २. तेजस, ३. कार्मण । तेयए, कस्मए। कर्मकम् । ४८५. एवं_सध्वेसि देवाणं। एवम्—सर्वेषां देवानाम् । ४८५. इसी प्रकार सभी देदों के ये तीन शरीर होते हैं। ४८६. पुढविकाइमाणं तओ सरीरगा पृथिवीकायिकानां त्रीणि शरीरकाणि ४८६. पृथ्वीकायिक जीवों के तीन शरीर होते पण्णता, तं जहा—ओरालिए, प्रज्ञप्तानि, तद्यथा—औदारिकं, तैजसं, हैं-१. औदारिक-स्थूल-पुद्गलों से तेयए, कम्मए। कर्मकम् । निष्पन्न अस्थिचर्ममय शरीर, २.तेजस, ३. कार्मण। ४८७. एवं—वाउकाइयवज्जाणं जाव एवम् वायुकायिकर्जानां यावत् ४८७. इसी प्रकार वायुकाय को छोड़कर चरिदियाणं । चतुरिन्द्रियाणाम् । चतुरिन्द्रिय तक के सभी जीवों के तीन शरीर होते हैं। पडिणीय-पदं प्रत्यनीक-पदम् प्रत्यनीक-पद ४८८. गुरुं पडुच्च तओ परिणीया गुरुं प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, ४८८. गुरु की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीकर पण्णत्ता, तं जहातद्यथा_आचार्यप्रत्यनीकः, [प्रतिकूल व्यवहार करने वाले होते आयरियपडिणीए, उपाध्यायप्रत्यनीकः, स्थविरप्रत्यनीकः। हैं-१. आचार्य प्रत्यनीक, २. उपाध्याय उवज्कायपडिणीए, थेरपडिणीए। प्रत्यनीक, ३. स्थविर प्रत्यनीक । ४८६. गति पञ्च्च तओ पडिणीया गति प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, ४८६. गति की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक होते पण्णत्ता, तं जहा- तद्यथा-इहलोकप्रत्यनीकः, हैं-१. इहलोक प्रत्यनीक, २. परलोक इहलोगपडिणीए, परलोगपरिणीए, परलोकप्रत्यनीकः, द्वयलोकप्रत्यनीकः । प्रत्यनीक, ३. उभय प्रत्यनीक [इहलोक दुहओलोगपडिणीए। और परलोक दोनों का प्रत्यनीक | ४६०. समूहं पडुच्च तओ परिणीया समूहं प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, ४६०. समूह की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक होते पण्णता, तं जहा–कुलपडिणीए, तद्यथा—कुलप्रत्यनीकः, गणप्रत्यनीक:, हैं-१. कुल प्रत्यनीक २. गण प्रत्यनीक, गणपडिणीए, संघपडिपोए। संघप्रत्यनीकः । ३. संघ प्रत्यनीक। ४६१. अणुकषं पडुच्च तओ पडिणीया अनुकम्पा प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः ४६१. अनुकम्पा की दृष्टि से तीन प्रत्यनीक पण्णत्ता, तं जहा—तवस्सिपडिणीए, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा तपस्विप्रत्यनोकः, होते हैं- १. तपस्वी प्रत्यनीक, गिलाणपडिणीए, सेहपडिणीए। ग्लानप्रत्यनोकः, शैक्षप्रत्यनीकः । २. ग्लान प्रत्यनीक, ३. शैक्ष प्रत्यनीक । ४६२. भावं पडुच्च तओ पडिणीया भावं प्रतीत्य तत्रः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, ४६२. भाव की दृष्टि से तीन प्रत्यनीक होते हैं पण्णता, तं जहा.—णाणपडिणीए, तद्यथा-ज्ञानप्रत्यनीकः, दर्शनप्रत्यनीकः, १. ज्ञान प्रत्यनीक, २. दर्शन प्रत्यनीक, दसणपडिणीए, चरित्तपडिगोए। चरित्रप्रत्यनीकः । ३. चरित्र प्रत्यनीक। ४६३. सुयं पडुच्च तओ पडिणीया श्रुतं प्रतीत्य त्रयः प्रत्यनीकाः प्रज्ञप्ताः, ४६३. श्रुत की अपेक्षा से तीन प्रत्यनीक होते पण्णत्ता, तं जहा—सुत्तपडिणीए, तद्यथा-सूत्रप्रत्यनीकः, अर्थप्रत्यनीकः, हैं-१. सूत्र प्रत्यनीक, २. अर्थ प्रत्यनीक, अत्थपडिणीए, तदुभयपडिणीए। तदुभयप्रत्यनीकः । ३. तदुभय प्रत्यनीक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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