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________________ ठाणं (स्थान) २४८ स्थान ३ : सूत्र ४७६-४८३ दुट्ठ , मूढे, वुग्गाहिते। दुष्टः, मूढः, व्युद्ग्राहितः। १. दुष्ट, २. मूढ-गुण-दोष विवेकशून्य, ३. ब्युद्ग्राहित-कदाग्रही के द्वारा भड़ काया हुआ। ४७६. तओ सुसण्णप्पा पण्णत्ता, तं जहा- त्रयः सुसंज्ञाप्या: प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- ४७६. तीन सुसंज्ञाप्य-सुबोध्य होते हैं अदुट्ठ, अमूढे, अवुग्गाहिते। अदुष्टः, अमूढः, अव्युद्ग्राहितः । १. अदुष्ट, २. अमूढ, ३. अव्युद्ग्राहित । मंडलिय-पव्वय-पदं माण्डलिक-पर्वत-पदम् माण्डलिक-पर्वत-पद ४८०. तओ मंडलिया पव्वता पण्णत्ता, तं त्रय माण्डलिकाः पर्वता: प्रज्ञप्ता:, ४८०. मांडलिक पर्वत तीन हैं जहा—माणसुत्तरे, कुंडलवरे, तद्यथा—मानुषोत्तरः, कुण्डलवरः, १. मानुषोत्तर, २. कुण्डलवर, रुयगवरे। रुचकवरः। ३. रुचकवर। महतिमहालय-पदं महामहत्-पदम् महामहत-पद ४८१. तओ महतिमहालया पण्णत्ता, तं त्रयः महामहान्तः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-- ४८१. तीन [अपनी-अपनी कोटि में] सबसे बड़े हैं जहा-जंबुद्दीवए मंदरे मंदरेसु, जम्बूद्वीपगो मन्दरः मन्दरेषु, स्वयंभूरमण: १. मंदर पर्वतों में जम्बूद्वीप का मंदर-मेरु; सयंभूरमणे समुद्दे समुद्देसु, समुद्रः समुद्रेषु, ब्रह्मलोकः कल्पः । २. समुद्रों में स्वयंभूरमण, बंभलोए कप्पे कप्पेसु। कल्पेषु। ३. देवलोकों में ब्रह्मलोक। कप्पठिति-पदं कल्पस्थिति-पदम् कल्पस्थिति-पद ४८२.तिविधा कप्पठिती पण्णत्ता तं त्रिविधा कल्पस्थितिः प्रज्ञप्ता, तद्यथा-४८२. कल्पस्थिति [आचार-मर्यादा] तीन प्रकार जहा...सामाइयकप्पठिती, सामायिककल्पस्थितिः, की होती है?-१. सामायिक कल्पस्थिति, छेदोवढावणियकप्पठिती, छेदोपस्थापनिककल्पस्थितिः, २. छेदोपस्थापनीय कल्पस्थिति, णिव्विसमाणकप्पठिती। निविशमानकल्पस्थितिः । ३. निविशमान कल्पस्थिति। अहवा–तिविहा कप्पद्विती अथवा त्रिविधा कल्पस्थितिः प्रज्ञप्ता, अथवा-कल्पस्थिति तीन प्रकार की पण्णता, तं जहा. तद्यथा-निविष्टकल्पस्थितिः, होती है-१. निविष्ट कल्पस्थिति, णिविटुकप्पद्विती, जिणकप्पट्टिती, जिनकल्पस्थितिः, स्थविरकल्पस्थितिः । २.जिन कल्पस्थिति, थेरकप्पद्विती। ३. स्थविर कल्पस्थिति। सरीर-पदं शरीर-पदम् शरीर-पद ४८३. जरइयाणं तओ सरीरगा पण्णत्ता, नैरयिकाणां त्रीणि शरीरकाणि ४८३. नरयिकों के तीन शरीर होते हैंतं जहा प्रज्ञप्तानि, तदयथा वैक्रियं, तैजसं. १. वैक्रिय-विविध क्रिया करने में समर्थवेउब्धिए, तेयए, कम्मए। पुद्गलों से निष्पन्न शरीर, कर्मकम् । २. तेजस-जस-पुद्गलों से निष्पन्न सूक्ष्म शरीर, ३. कार्मण-कर्म-पुद्गलों से निष्पन्न सूक्ष्म शरीर। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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