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________________ ठाणं (स्थान) २४० स्थान ३: सूत्र ४४३-४४६ ४४३. तिविधे अणायारे पण्णत्ते, तं जहा- त्रिविधः अनाचार: प्रज्ञप्त:, तद्यथा- ४४३. अनाचार" तीन प्रकार का होता हैणाणअणायारे, दंसणअणायारे, ज्ञानानाचारः, दर्शनानाचारः, १. ज्ञान अनाचार, २. दर्शन अनाचार, चरित्तअणायारे। चरित्रानाचारः। ३. चरित्र अनाचार। ४४४. तिहमतिकमाणं आलोएज्जा त्रीन् अतिक्रमान्—आलोचयेत् प्रति- ४४४. तीन प्रकार के अतिक्रमों की पडिक्कमेज्जा णिदेज्जा गरहेज्जा क्रामेत् निन्देत् गहेंत व्यावर्तेत विशो- आलोचना करनी चाहिए 'विउद्देज्जा विसोहेज्जा धयेत् अकरणतया अभ्युत्तिष्ठेत यथार्ह । प्रतिक्रमण करना चाहिए अकरणयाए अन्शुट्ठज्जा प्रायश्चित्तं तपःकर्म प्रतिपद्येत, तदयथा- निन्दा करनी चाहिए अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° ज्ञानातिक्रम, दर्शनाति क्रम, गर्दा करनी चाहिए पडिवज्जेज्जा, तं जहा- चरित्रातिक्रमम् । व्यावर्तन करना चाहिए णाणातिक्कमस्स, सणातिक्कमस्सा विशोधि करनी चाहिए चरित्तातिक्कमस्स। फिर वैसा नहीं करने का संकल्प करना चाहिए यथोचित प्रायश्चित्त तथा तपःकर्म स्वीकार करना चाहिए१. ज्ञानातिक्रम की, २. दर्शनातिक्रम की, ३. चरित्रातिक्रम की। ४४५. तिण्हं वइक्कमाणं-आलोएज्जा त्रीन् व्यतिक्रमान्—आलोचयेत् प्रति- ४४५. तीन प्रकार के व्यतिक्रमों की पडिक्कमेज्जा णिदेज्जा गरहेज्जा कामेत् निन्देत् गर्हेत व्यावर्तेत विशोधयेत् आलोचना करनी चाहिए विउदृज्जा विसोहेज्जा अकरणतया अभ्युत्तिष्ठेत यथार्ह प्रतिक्रमण करना चाहिए अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा प्रायश्चित्तं तपःकर्म प्रतिपद्येत, तद्यथा- निन्दा करनी चाहिए अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं ज्ञानव्यतिक्रम, दर्शनव्यतिक्रम, गर्दा करनी चाहिए पडिवज्जेज्जा, तं जहा- चरित्रव्यतिक्रमम्। व्यावर्तन करना चाहिए णाणवइक्कमस्स, सणवइक्कमस्स, विशोधि करनी चाहिए चरित्तवइक्कमस्स। फिर वैसा न करने का संकल्प करना चाहिए यथोचित प्रायश्चित्त तथा तपःकर्म स्वीकार करना चाहिए१. ज्ञान व्यतिक्रम की, २. दर्शन व्यतिक्रम की, ३. चरित्र व्यतिक्रम की। ४४६. तिहमतिचाराणं त्रीन् अतिचारान्—आलोचयेत् प्रति- ४४६. तीन प्रकार के अतिचारों कीआलोएज्जा पडिक्कमेज्जा क्रामेत् निन्देत् गर्हेत व्यावर्तेत विशोधयेत् आलोचना करनी चाहिए णिदेज्जा गरहेज्जा अकरणतया अभ्युत्तिष्ठेत यथार्ह प्राय- प्रतिक्रमण करना चाहिए विउट्टेज्जा विसोहेज्जा श्चित्तं तपःकर्म प्रतिपद्येत, तद्यथा- निन्दा करनी चाहिए अकरणयाए अब्भुट्ठज्जा ज्ञानातिचारं, दर्शनातिचारं, गर्दा करनी चाहिए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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