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ठाणं (स्थान)
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से णं भंते! णाणे किंफले ?
तद् भदन्त ! ज्ञानं किंफलम् ? विज्ञानफलम् ।
विण्णाणफले ।
● से णं भंते ! विष्णाणे किंफले ? तद् भदन्त ! विज्ञानं किंफलम् ?
पचखाणफले ।
से णं भंते ! पच्चक्खाणे किंफले ? संजमफले ।
से णं भंते ! संजमे किंफले ?
से णं भंते! अणण्हए किफले ?
तवफले ।
से णं भंते! तवे किंफले ?
वोदाफले ।
से णं भंते! वोदाणे किफले ? अकिरियफले ।
पडिमा - पदं
४१६. पडिमाप डिवण्णस्स णं अणगारस्स कष्पति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा -
अहे आगमण हिंसि वा
अहे विsहिंसि वा अहे मूल हंस वा ।
प्रत्याख्यानफलम् ।
तद् भदन्त ! प्रत्याख्यानं किफलम् ? संयमफलम् ।
स भदन्त ! संयमः ! किंफलः ? अनाश्रवफलः ।
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स भदन्त ! अनाश्रवः किंफलः ?
तपः फलः ।
तद् भदन्त ! तपः किंफलम् ?
साणं भंते ! अकिरिया किफला ? सा भदन्त ! अक्रिया किंफला ?
णिवाणफला ।
निर्वाणफला ।
से णं भंते ! णिव्वाणे किफले ? सिद्धिगइ-गमण- पज्जवसाण - फले समणाउसो !
तद् भदन्त ! निर्वाणं किंफलम् ? सिद्धिगति-गमन - पर्यवसान- फलं आयुष्मन् ! श्रमण !
व्यवदानफलम् ।
तद् भदन्त ! व्यवदानं किंफलम् ? अक्रियाफलम् ।
उत्थो उद्देसी
प्रतिमा-पदम्
प्रतिमाप्रतिपन्नस्य अनगारस्य कल्पन्ते त्रयः उपाश्रयाः प्रतिलेखितुम्, तद्यथाअधः आगमनगृहे वा अधः विकटगृहे वा
अधः रुक्षमुलगृहे वा ।
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स्थान ३ : सूत्र ४१६-४२०
भंते! ज्ञान का क्या फल है ? आयुष्मन् ! ज्ञान का फल है विज्ञान । भंते! विज्ञान का क्या फल है ? आयुष्मन् ! विज्ञान का फल है प्रत्याख्यान । भंते! प्रत्याख्यान का क्या फल है ? आयुष्मन् ! प्रत्याख्यान का फल है। संयम भंते! संयम का क्या फल है ? आयुष्मन् ! संयम का फल है अनाश्रव - कर्म निरोध । भंते ! अनाश्रव का क्या फल है ! आयुष्मन् ! अनाश्रव का फल है तप । भंते! तप का क्या फल है ? आयुष्मन् ! तप का फल है व्यवदान - निर्जरा |
भते ! व्यवदान का क्या फल है ?
आयुष्मन् ! व्यवदान का फल है अक्रियामन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का पूर्ण निरोध |
भंते! अक्रिया का क्या फल है ?
आयुष्मन् ! अक्रिया का फल है निर्वाण । भंते! निर्वाण का क्या फल है ? आयुष्मन् ! श्रमणो ! निर्वाण का फल है सिद्धिगति गमन ।
प्रतिमा-पद
४१६. प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार तीन प्रकार के आवासों का प्रतिलेखन [गवेषणा] कर सकता है
१. आगमन गृह - सभा, पौ आदि में,
२. विवृतगृह - खुले घर में,
३. वृक्ष के नीचे ।'
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