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________________ ठाणं (स्थान) २३६ से णं भंते! णाणे किंफले ? तद् भदन्त ! ज्ञानं किंफलम् ? विज्ञानफलम् । विण्णाणफले । ● से णं भंते ! विष्णाणे किंफले ? तद् भदन्त ! विज्ञानं किंफलम् ? पचखाणफले । से णं भंते ! पच्चक्खाणे किंफले ? संजमफले । से णं भंते ! संजमे किंफले ? से णं भंते! अणण्हए किफले ? तवफले । से णं भंते! तवे किंफले ? वोदाफले । से णं भंते! वोदाणे किफले ? अकिरियफले । पडिमा - पदं ४१६. पडिमाप डिवण्णस्स णं अणगारस्स कष्पति तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा - अहे आगमण हिंसि वा अहे विsहिंसि वा अहे मूल हंस वा । प्रत्याख्यानफलम् । तद् भदन्त ! प्रत्याख्यानं किफलम् ? संयमफलम् । स भदन्त ! संयमः ! किंफलः ? अनाश्रवफलः । Jain Education International स भदन्त ! अनाश्रवः किंफलः ? तपः फलः । तद् भदन्त ! तपः किंफलम् ? साणं भंते ! अकिरिया किफला ? सा भदन्त ! अक्रिया किंफला ? णिवाणफला । निर्वाणफला । से णं भंते ! णिव्वाणे किफले ? सिद्धिगइ-गमण- पज्जवसाण - फले समणाउसो ! तद् भदन्त ! निर्वाणं किंफलम् ? सिद्धिगति-गमन - पर्यवसान- फलं आयुष्मन् ! श्रमण ! व्यवदानफलम् । तद् भदन्त ! व्यवदानं किंफलम् ? अक्रियाफलम् । उत्थो उद्देसी प्रतिमा-पदम् प्रतिमाप्रतिपन्नस्य अनगारस्य कल्पन्ते त्रयः उपाश्रयाः प्रतिलेखितुम्, तद्यथाअधः आगमनगृहे वा अधः विकटगृहे वा अधः रुक्षमुलगृहे वा । For Private & Personal Use Only स्थान ३ : सूत्र ४१६-४२० भंते! ज्ञान का क्या फल है ? आयुष्मन् ! ज्ञान का फल है विज्ञान । भंते! विज्ञान का क्या फल है ? आयुष्मन् ! विज्ञान का फल है प्रत्याख्यान । भंते! प्रत्याख्यान का क्या फल है ? आयुष्मन् ! प्रत्याख्यान का फल है। संयम भंते! संयम का क्या फल है ? आयुष्मन् ! संयम का फल है अनाश्रव - कर्म निरोध । भंते ! अनाश्रव का क्या फल है ! आयुष्मन् ! अनाश्रव का फल है तप । भंते! तप का क्या फल है ? आयुष्मन् ! तप का फल है व्यवदान - निर्जरा | भते ! व्यवदान का क्या फल है ? आयुष्मन् ! व्यवदान का फल है अक्रियामन, वचन और शरीर की प्रवृत्ति का पूर्ण निरोध | भंते! अक्रिया का क्या फल है ? आयुष्मन् ! अक्रिया का फल है निर्वाण । भंते! निर्वाण का क्या फल है ? आयुष्मन् ! श्रमणो ! निर्वाण का फल है सिद्धिगति गमन । प्रतिमा-पद ४१६. प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार तीन प्रकार के आवासों का प्रतिलेखन [गवेषणा] कर सकता है १. आगमन गृह - सभा, पौ आदि में, २. विवृतगृह - खुले घर में, ३. वृक्ष के नीचे ।' www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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