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ठाणं (स्थान)
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स्थान ३ : सूत्र ११५-१२१ ११५ जंबुद्दीवे दीवे देवकुरुउत्तरकुरासु जम्बूद्वीपे द्वीपे देवकुरूत्तरकुर्वो: मनुजाः ११५. जम्बूद्वीप द्वीप में देवकुरु और उत्तरकुरु
मणुया तिण्णि गाउआई उड्ड तिस्रः गव्यूतीः ऊर्ध्वं उच्चत्वेन प्रज्ञप्ताः। में मनुष्यों की ऊंचाई तीन गाऊ की ओर उच्चत्तेणं पण्णत्ता। तिण्णि त्रीणि पल्योपमानि परमायुः पालयन्ति। उनकी उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम की पलिओवमाई परमाउं पालयंति ।
होती है। ११६. एवं—जाव पुक्खरवरदीवद्ध- एवम्-यावत् पुष्करवरद्वीपार्ध- ११६. इसी प्रकार धातकीषंड तथा अर्धपुष्करपच्चत्थिमद्धे । पाश्चात्याधै।
वर द्वीप के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में जानना चाहिए।
सलागा-पुरिस-वंस-पदं शलाका-पुरुष-वंश-पदम्
शलाका-पुरुष-वंश-पद ११७. जंबुद्दीवे दोवे भरहेरवएसु वासेसु जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरवतयोः वर्षयोः ११७. जम्बूद्वीप द्वीप के भरत क्षेत्र तथा ऐरवत
एगमेगाए ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीए एकैकस्यां अवसपिण्युत्सपिण्यां त्रयः क्षेत्र में प्रत्येक अवसर्पिणी तथा उत्सपिणी तओ बंसाओ उपज्जिसु वा वंशाः उदपदिषत वा उत्पद्यन्ते वा में तीन वंश उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं उप्पज्जंति वा उप्पज्जिस्संति वा, उत्पत्स्यन्ते वा, तद्यथा-अर्हवंशः, तथा उत्पन्न होंगेतं जहा—अरहंतवंसे, चक्कवट्टिवंसे, चक्रवत्तिवंशः, दशारवंशः ।
१. अर्हन्त-वंश, २. चक्रवर्ती-वंश, दसारवंसे।
३. दशार-वंश । ११८. एवं...जाव पुक्खरवरदीवद्धपच्च- एवम्-यावत् पकरवरद्वीपार्ध- ११८. इसी प्रकार धातकीषण्ड तथा पुष्करवर त्थिमद्धे । पाश्चात्यार्धे।
द्वीपाधं के पूर्वार्ध और पश्चिमार्ध में तीन वंश उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न होते हैं तथा उत्पन्न होंगे।
सलागा-पुरिस-पदं शलाका-पुरुष-पदम्
शलाका-पुरुष-पद ११६. जंबुद्दोवे दीवे भरहेरवएसु वासेसु जम्बूद्वीपे द्वीपे भरतैरवतयोः वर्षयोः ११६. जम्बूद्वीप द्वीप में भरत क्षेत्र तथा ऐरवत
एगमेगाए ओसप्पिणी-उस्सप्पिणीए एकैकस्यां अवसपिण्युत्सपिण्यां त्रयः क्षेत्र में प्रत्येक अवसर्पिणी तथा उत्सपिणी तओ उत्तमपुरिसा उपज्जिसु वा उत्तमपुरुषाः उदपदिषत वा उत्पद्यन्ते में तीन उत्तम पुरुष उत्पन्न हुए थे, उत्पन्न उप्पज्जति वा उप्पज्जिस्संति वा, वा उत्पत्स्यन्ते वा, तद्यथा-अर्हन्तः, होते हैं तथा उत्पन्न होंगेतं जहा—अरहंता, चक्कवट्टी, चक्रवर्तिनः, बलदेववासुदेवाः।
१. अर्हन्त, २. चक्रवर्ती, ३. बलदेवबलदेववासुदेवा।
वासुदेव। १२०. एवं—जाव पुक्खरवरद्वीवद्धपच्च- एवम्---यावत् पुष्करवरद्वीपार्धपाश्चा- १२०. इसी प्रकार धातकीषण्ड तथा अर्धपुष्करथिमद्धे । त्याध।
वर द्वीप के पूर्वाधं और पश्चिमार्ध में जानना चाहिए।
आउय-पदं १२१. तओ अहाउयं पालयंति, तं जहा-
आयुः-पदम् त्रयः यथायु: पालयन्ति, तद्यथा-
आयुः-पद १२१. तीन अपनी पूर्ण आयु का पालन करते हैं
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