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ठाणं (स्थान)
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स्थान ३ : सूत्र १०४-११५
जोणिए तिविहा उत्तमपुरिसा गभं उत्तमपुरुषा: गर्भ अवक्रामन्ति, वक्कमंति, तं जहा—अरहंता, तद्यथा—अर्हन्तः, चक्रवर्तिनः, चक्कवट्टी, बलदेववासुदेवा। बलदेववासुदेवाः ।
२. संखावत्ता णं जोणी २. शंखावर्ता योनिः स्त्रीरत्नस्य । इत्थीरयणस्स । संखावत्ताए णं शंखावर्तीयां योनौ बहवो जीवाश्च जोणीए बहवे जीवा य पोग्गला य पुद्गलाश्च अवक्रामन्ति, व्युतकामन्ति, वक्कमंति, विउक्कमंति, चयंति, च्यवन्ते, उत्पद्यन्ते, नो चैव निष्पद्यन्ते । उववज्जति, णो चेवणं णिप्फज्जति। ३. वंसीवत्तित्ता णं जोणी ३. वंशीपत्रिका योनिः पृथग्जनस्य ।। पिहज्जणस्स । वंसीवत्तिताए णं वंशीपत्रिकायां योनौ बहवः पृथग्जनाः । जोणीए बहवे पिहज्जणा गभं गर्भ अवक्रामन्ति। वक्कमंति।
बांस की जाली के पत्रों के आकार वाली। १. कूर्मोन्नत योनि उत्तम पुरुषों की मात्रा के होती है। कूर्मोन्नत योनि से तीन प्रकार के उत्तम पुरुष पैदा होते हैं१. अर्हन्त, २. चक्रवर्ती, ३. बलदेववासुदेव। २. शंखावर्त योनि स्त्री-रत्न की होती है। शंखावर्त योनि में अनेक जीव तथा पुद्गल उत्पन्न और नष्ट होते हैं तथा नष्ट और उत्पन्न होते हैं, किन्तु निष्पन्न नहीं होते। ३. वंशीपत्रिका योनि सामान्य-जनों की माता के होती है। वंशीपत्रिका योनि में अनेक सामान्य-जन पैदा होते हैं।
तणवणस्सइ-पदं तृणवनस्पति-पदम्
तृणवनस्पति-पद १०४. तिविहा तणवणस्सइकाइया त्रिविधाः तृणवनस्पतिकायिकाः १०४. तृणवनस्पतिकायिक जीव तीन प्रकार
पण्णत्ता,तं जहा-संखेज्जजीविका, प्रज्ञप्ताः, तद्यथा—संख्येयजीविकाः, के होते हैं-१. संख्यात जीव वाले ताल असंखज्जजीविका, अणंतजीविका। असंख्येयजीविकाः, अनन्तजीविकाः । से बंधे हुए फूल, २. असंख्यात जीव
वाले-वृक्ष के मूल, कंद, स्कंध, त्वक् शाखा और प्रबाल। ३. अनंत जीव वाले-फफूंदी आदि।
तित्थ-पदं १०५. जबुद्दीवे दीवे भारहे वासे तओ
तित्था पण्णत्ता, तं जहा—मागहे,
वरदामे, पभासे। १०६. एवं एरवएवि।
तीर्थ-पदम्
तीर्थ-पद जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे त्रयः तीर्थाः १०५. जम्बूद्वीप द्वीप के भारत क्षेत्र में तीन प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
तीर्थ हैंमागधः, वरदाम, प्रभासः ।
१. मागध, २. वरदाम, २. प्रभास । एवम्-ऐरवतेऽपि ।
१०६. इसी प्रकार ऐरवत क्षेत्र में भी तीन
तीर्थ हैं
१. मागध, २. वरदाम, ३. प्रभास । जम्बूद्वीपे द्वीपे महाविदेहे वर्षे एकैकस्मिन् १०७. जम्बूद्वीप द्वीप के महाविदेह क्षेत्र में एकचक्रवत्तिविजये त्रयः तीर्थाः प्रज्ञप्ताः, एक चक्रवर्ती-विजय में तीन-तीन तीर्थ हैंतद्यथा—मागधः, वरदामः, प्रभासः । १. मागध, २. वरदाम, ३. प्रभास ।
१०७. जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे
एगमेगे चक्कवट्टिविजये तओ तित्था पण्णत्ता, तं जहामागहे, वरदामे, पभासे।
जहा
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