________________
ठाणं (स्थान)
४५८. दोसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा पण्णत्ता, तं जहाबंभलोगे चेव, लंतगे चेव ।
४५. दो कप्पे देवा सद्दपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा - महासुक्के चेव, सहस्सारे चेव ।
४६०. दो इंदा मणपरियारगा पण्णत्ता, तं जहा-- पाणए चेव, अच्चु चेव ।
पावकस्म -पदं
४६१. जीवाणं दुट्ठाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए चिणिसु वा चिणंति वा चिणिस्संति वा, तं जहा तसकायणिव्वत्तिए चेव, थावर काय णिव्वत्तिए चेव ।
४६२. 'जीवा णं दुद्वाणणिव्वत्तिए पोग्गले पावकम्मत्ताए - उवचिणि वा उवचिति वा उवचिणिस्संति वा, बंधिसु वा बंधेति वा बंधिस्संति वा, उदीरिंसु वा उदीरेति वा उदीरिस्संति वा, वेद वा वेदेति वा वेदिति वा, णिज्जरसु वा णिज्जरेंति वा णिज्ज रिस्संति वा, "तं जहातसकायव्वित्तिए चेव, थावर काय णिव्वत्तिए चेव ।
Jain Education International
११०
स्थान २: सूत्र ४५८-४६२
द्वयोः कल्पयोः देवाः रूपपरिचारकाः ४५८. दो कल्पों में देव रूप- परिचारक [देवी का रूप देखकर वासना पूर्ति करने वाले ] होते हैं
प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
ब्रह्मलोके चैव, लान्तके चैव ।
ब्रह्मलोक में, लांतक में ।
द्वयोः कल्पयोः देवाः शब्दपरिचारकाः ४५६. दो कल्पों में देव शब्द-परिचारक [M शब्द सुनकर वासना पूर्ति करने वाले ] होते हैं-
प्रज्ञप्ताः, तद्यथा
महाशु चैव, सहस्रारे चैव ।
द्वौ इन्द्रौ मनः परिचारकौ प्रज्ञप्तौ तद्यथा— प्राणते चैव, अच्युते चैव ।
पापकर्म-पदम्
जीवाः द्विस्थाननिर्वर्तितान् पुद्गलान् पापकर्मतया अचैषुः वा चिन्वन्ति वा चेष्यन्ति वा तद्यथात्रसकायनिर्वत्ततांश्च, स्थावर कायनिवृत्तितांश्च ।
महाशुक्र में, सहस्रार में ।
४६०. दो इन्द्र मनः परिचारक [ संकल्प मात्र से वासना पूर्ति करने वाले ] होते हैंप्राणत, अच्युत ।
For Private & Personal Use Only
पापकर्म-पद
४६१. जीवों ने द्वि-स्थान निर्वर्तित पुद्गलों का पाप कर्म के रूप में चय किया है. करते हैं। और करेंगे
aसकाय निर्वर्तित-तसकाय के रूप में उपार्जित पुद्गलों का,
स्थावरकाय निर्वर्तित— स्थावरकाय के रूप में उपार्जित पुद्गलों का ।
जीवाः द्विस्थाननिर्वत्तितान् पुद्गलान् ४६२. जीवों ने द्वि-स्थान निर्वर्तित पुद्गलों का पापकर्मतया— पाप-कर्म के रूप में
उपाचैषुः वा उपचिन्वन्ति वा उपचेष्यन्ति वा अभान्त्सुः वा बध्नन्ति वा बन्त्स्यन्ति वा, उदैरिषुः वा उदीरयन्ति वा उदीरयिष्यन्ति वा अवेदिषुः वा वेदयन्ति वा वेदयिष्यन्ति वा निरजरिषुः वा निर्जरयन्ति वा निर्जरयिष्यन्ति वा, तद्यथा—त्रसकायनिर्वत्तितांश्च, स्थावरकायनिर्वत्तितांश्च ।
उपचय किया है, करते हैं और करेंगे । बन्धन किया है, करते हैं और करेंगे । उदीरण किया है, करते हैं और करेंगे। वेदन किया है, करते हैं और करेंगे। निर्जरण किया है, करते हैं और करेंगेaeकाय निर्वर्तित स्थावरकाय निर्वर्तित।
www.jainelibrary.org