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________________ ( १४ ) सौष्ठव -यह मणिकांचन योग है । अन्तस्तोष, भूमिका और सम्पादकीय में अन्य मुनियों के सहयोग का स्मरण हुआ है। जहाँ तक मेरी परिक्रमा का प्रश्न है, मैं तीन संतों का नामोल्लेख किए बिना नहीं रह सकता-मुनि श्री दुलहराज जी, हीरालालजी और सुमेरमलजी। मुनि श्री दुलहराजजी आरम्भ से अन्त तक अपनी अनन्य कलात्मक दृष्टि से कार्य को निहारते और निखारते रहे हैं, मुनि श्री हीरालाल जी अथक परिश्रम करते हुए अशुद्धियों के आस्रव को रोकते रहे हैं, मुनि श्री सुमेरमलजी तो ऐसे सजग प्रहरी रहे हैं जिन्होंने कभी आलस्य की नींद नहीं लेने दी। . दुरूह कार्य सम्पन्न हो पाया, इसकी आनन्दानुभूति हो रही है। प्रकाशन में सामान्य विलम्ब हुआ, उसके लिए तो क्षमा-प्रार्थना ही है। केवल इतना स्पष्ट कर दूं कि वह आलस्य अथवा प्रमाद पर आधारित नहीं है । श्री देवीप्रसाद जायसवाल मेरे अनन्य सहयोगी रहे हैं। ग्रन्थों के प्रकाशन-कार्य और प्रफ के संशोधन आदि विविध श्रमसाध्य कार्यों में उनके सहयोग से मेरा परिश्रम काफी हल्का रहा। श्री मन्नालाल जी बोरड़ भी प्रूफ-संशोधन में सहयोगी रहे हैं। माडर्न प्रिन्टर्स के निर्देशक श्री रघुवीरशरण बंसल एवं संचालक श्री अरुण बंसल के सौजन्य ने कृति को सुन्दर रूप दे पाने में जो सहयोग प्रदान किया है, उसके लिए उन्हें तथा प्रेस के सम्बन्धित कर्मचारियों के प्रति धन्यवाद व्यक्त करना नहीं भूल सकता। जैन विश्व भारती के पदाधिकारी गण भी परोक्ष भाव से मेरे सहभागी रहे हैं। उनके प्रति भी मैं कृतज्ञ हूँ। आशा है, जैन विश्व भारती का यह प्रकाशन सभी के लिए उपादेय सिद्ध होगा। दिल्ली महावीर जन्म-तिथि (चैत्र शुक्ला १३) वि० सं० २०३३ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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