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________________ ठाणं (स्थान) ७४ स्थान २ : सूत्र २४८-२५६ २४८. दो पडिमाओ पण्णत्ताओ, तं द्वे प्रतिमे प्रज्ञप्ते, तद्यथा जहा—जवमझा चेव चंदपडिमा, यवमध्या चैव चंद्रप्रतिमा, वइरमज्झा चेव चंदपडिमा। वज्रमध्या चैव चंद्रप्रतिमा। २४८. प्रतिमा दो प्रकार की है यवमध्याचन्द्रप्रतिमा वज्रमध्याचन्द्रप्रतिमा।०८ सामाइय-पदं २४६. दुविहे सामाइए पण्णत्ते, तं जहा अगारसामाइए चेव, अणगारसामाइए चेव। सामायिक-पदम् सामायिक-पद द्विविध: सामायिकः प्रज्ञप्तः, तदयथा- २४६. सामायिक दो प्रकार का हैअगारसामायिकश्चैव, अगारसामायिक अनगारसामायिकश्चैव। अनगारसामायिक । जन्म-मरण-पदं जन्म-मरण-पदम् जन्म-मरण-पद २५०. दोण्हं उववाए पण्णत्ते, तं जहा- द्वयोरुपपातः प्रज्ञप्तः, तद्यथा २५०. दो का उपपात होता हैदेवाणं चेव, गेरइयाणं चेव। देवानाञ्चैव, नारकाणाञ्चैव । देवताओं का, नैरयिकों का। २५१. दोण्हं उव्वट्टणा पण्णत्ता, तं जहा- द्वयोरुद्वर्तना प्रज्ञप्ता, तद्यथा- २५१. दो का उद्वर्तन" होता हैरइयाणं चेव, नैरयिकाणाञ्चैव, नरयिकों का भवणवासीणं चेव। भवनवासिनाञ्चैव। भवनवासी देवताओं का। २५२. दोण्हं चयणे पण्णत्ते, तं जहा- द्वयोश्च्यवनं प्रज्ञप्तं, तद्यथा- २५२. दो का च्यवन" होता हैजोइसियाणं चेव, ज्योतिष्काणाञ्चैव, ज्योतिष्कदेवों का वेमाणियाणं चेव। वैमानिकानाञ्चैव । वैमानिकदेवों का। २५३. दोण्हं गब्भवक्कंती पण्णत्ता, द्वयोर्गर्भावक्रान्तिः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा- २५३. दो की गर्भ-अवक्रान्ति होती हैतं जहा—मणुस्साणं चेव, मनुष्याणाञ्चैव, मनुष्यों की पंचें दियतिरिक्खजोणियाणं चेव। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्चैव। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की। गब्भत्थ-पदं गर्भस्थ-पदं गर्भस्थ-पद २५४. दोण्हं गब्भत्थाणं आहारे पण्णत्ते, द्वयोर्गर्भस्थयोराहारः प्रज्ञप्तः, २५४. दो गर्भ में रहते हुए आहार लेते हैंतं जहा.-मणुस्साणं चेव, तद्यथा—मनुष्याणञ्चैव, मनुष्य पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्चैव । पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च। २५५. दोण्हं गब्भत्थाणं वुड्डी पण्णत्ता, तं द्वयोर्गर्भस्थयोवृद्धिः प्रज्ञप्ता, २५५. दो की गर्भ में रहते हुए वृद्धि होती हैजहा...मगुस्साणं चेव, तद्यथा-मनुष्याणाञ्चैव, मनुष्यों की पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्चैव। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की। २५६. 'दोण्हं गब्भत्थाणं -णिवुड्डी द्वयोर्गर्भस्थयो:-निवृद्धिः विकरणम् २५६. दो की गर्भ में रहते हुए हानि, विक्रिया, विगुव्वणा गतिपरियाए समुग्धाते गतिपर्यायः समुद्घातः कालसंयोगः । गतिपर्याय, समुद्घात, कालसंयोग, गर्भ कालसंजोगे आयाती मरणे° आयाति मरणं प्रज्ञप्तम्, तद्यथा- से निर्गमन और मृत्यु होती हैपण्णत्ते, तं जहा—मणुस्साणं चेव, मनुष्याणाञ्चैव, मनुष्यों की पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं चेव। पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानाञ्चैव । पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003598
Book TitleAgam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Thanam Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages1094
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_sthanang
File Size23 MB
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